भाग १ माल और मुद्रा पहला अध्याय माल अनुभाग १ - माल के दो तत्त्व : उपयोग-मूल्य और मूल्य (मूल्य का सार और मूल्य का परिमाण) जिन समाज-व्यवस्थामों में उत्पादन की पूंजीवादी प्रणाली प्रमुख रूप से पायी जाती है, उनमें धन "मालों के विशाल संचय के रूप में सामने प्राता है और उसकी इकाई होती है एक माल। इसलिए हमारी सोब अवश्य ही माल के विश्लेषण से प्रारम्भ होनी चाहिए। माल के बारे में सबसे पहली बात यह है कि वह हमसे बाहर की कोई वस्तु होती है। वह अपने गुणों से किसी न किसी प्रकार की मानवीय मावश्यकतामों को पूरा करती है। इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता कि इन पावश्यकतामों का क्या स्वल्प है, - उदाहरण के लिए, पेट से पैदा हुई है या कल्पना से। न ही हम यहां यह जानना चाहते हैं कि कोई वस्तु इन पावश्यकतामों को किस तरह पूरा करती है: सीधे-सीधे, जीवन-निर्वाह के साधन के रूप में, या अप्रत्यक्ष ढंग से, उत्पादन के साधन के रूप में। लोहा, कापब मावि प्रत्येक उपयोगी वस्तु को गुण और परिमाण की दो दृष्टिमों से देखा जा सकता है। प्रत्येक उपयोगी वस्तु बहुत से गुणों का समावेश होता है और इसलिए . - Karl Marx, "Zur Kritik der Politischen Oekonomie". (कार्ल मार्क्स, अर्थशास्त्र की समीक्षा का एक प्रयास'), Berlin, 1859, पृ० ३। इच्छा का मतलब है मावश्यकता का होना। वह दिमाग की क्षुधा होती है और उतनी ही स्वाभाविक है, जितनी शरीर की भूख... अधिकतर (चीजों) का मूल्य इसलिए होता है कि वे दिमाग की आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं।" Nicholas Barbon: "A Dis- course Concerning Coining the New Money Lighter. In Answer to Mr. Locke's Considerations, etc." (निकोलस बार्बोन, 'नयी मुद्रा के सिक्के हलके बनाने के विषय में एक निबन्ध । मि० लॉक के विचारों के जवाब में, मादि'), London, 1696, पृ० २, ३। 45 -
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