पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/५१९

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५१६ पूंजीवादी उत्पादन १ बगह पर सूरत की कपास और शुट कपास की जगह पर सूरत की कपास तवा रही कपात को मिलाकर इस्तेमाल किया जाने लगा था। सूरत की कपास का रेशा छोटापा और यह काफी गन्दी हालत में पाती थी। उसका पागा ज्यादा कमजोर होता था। ताने में माडी लगाने के लिये वो पाटा इस्तेमाल होता था, उसकी जगह पर तरह-तरह के दूसरे मोटे तत्व इस्तेमाल किये जाने लगे। इन सब कारणों से मशीनों की रफ्तार कम हो गयी थी, या एक बुनकर अब पहले जितने करों की देखभाल नहीं कर पाता था, और मशीनों में पाये जाने वाले दोषों के कारण वो बम करना पड़ता था, उसमें भी वृद्धि हो गयी थी। इन सब कारणों से पहले से कम मात्रा में पैदावार होने लगी थी और उसके फलस्वरूप कार्यानुसार मिलने वाली मजदूरी कम हो गयी पी। जब सूरती कपास इस्तेमाल की जाती थी, तब पूरे समय काम करने वाले मजदूरों को २० प्रतिशत, ३० प्रतिशत या उससे भी अधिक का नुकसान होता था। किन्तु, इसके अलावा, अधिकतर कारखानेदारों ने वैसे भी कार्यानुसार मजदूरी की बर में ५,७ और १० प्रतिशत तक की कटौती कर दी थी। इसलिये हम उन मजदूरों की रक्षा की कल्पना कर सकते हैं। जिनसे सप्ताह में केवल ३ दिन, ३ दिन या ४ दिन अथवा दिन भर में केवल ६ घरे काम कराया जाता था। १८६३ तक स्थिति में कुछ सुधार हो गया था। पर उस वर्ष भी कताई करने वाले मजदूरों और बुनकरों की साप्ताहिक मजदूरी ३ शिलिंग ४ पेंस, ३ शिलिंग १० ४ शिलिंग ६ पेंस और ५ शिलिंग १ पैस पी। लेकिन इस प्रत्यन्त शोचनीय स्थिति में भी मिल-मालिक की प्राविकारक प्रतिमा में कमी विमान नहीं किया। वह निरन्तर मजदूरी में कटौती करने की नयी-नयी तरकीबें निकालता रहा। ये कटौतियां कुछ हद तक तैयार वस्तु में पायी जाने वाली खराबियों के बहाने से की जाती थी, हालांकि, असल में, ये बरावियां मिल- मालिक को खराब कपास और अनुपयुक्त मशीनों के कारण पैदा होती थीं। इसके अलावा, वहां कहीं मजदूरों के रहने के घरों का मालिक भी कारखानेदार ही होता था, वहां वह उनकी तुच्छ मजदूरी में से पैसे काटकर अपना किराया वसूल कर लेता था। मि० रेल्व बताते हैं कि स्वचालित म्यूलों की एक बोड़ी की देखरेख करने वाले मजदूर (self-acting minders) "पूरे एक पक्षबारे तक काम करके शिलिंग ११ पेंस कमाते थे और इस रूम में से घर का किराया काट लिया जाता पा। लेकिन कारखानेदार उनपर मेहरबानी करके पाषा किराया नोटा देता था। मजदूरों को ६ शिलिंग ११ पेंस की कम मिलती थी। बहुत सी जगहों में १८६२ के अन्तिम दिनों में स्वचालित म्यूलों की बोड़ी की देखरेख करने वाले मजदूरों की मामदनी ५ शिलिंग से लेकर शिलिंग प्रति सप्ताह तक और बुनकरों की २ शिलिंग से लेकर शिलिंग तक बैठती थी। मजबूर पब कम समय काम करते थे, तब भी उनकी मजदूरी में से किराये की राम प्रसर काट ली जाती थी। इसलिये कोई पाश्चर्य नहीं, यदि नकाशापर के कुछ हिस्सों में भूल से पैदा होने वाले एक तरह के बुखार ने महामारी का रूप धारण कर - . 1 "Rep. Insp. of Fact., 31st October, 1869" (fuefcat pret रिपोर्ट, ३१ अक्तूबर १८६३'), पृ. ४१-४५। 'उप० पु०, पृ. ४१-४२। 'उप.पु., पृ. ५७।