'५०२ पूंजीवादी उत्पादन . . मिलों के जुलने और उसके साथ-साथ खेतीयोग्य जमीन के धीरे-धीरे भेड़ों की परागाहों में बदल जाने के फलस्वरूप लेती के मजदूरों की एक बड़ी संख्या फालतू हो गयी है, जिसके कारण मजदूरों को बड़ी तादाद में शहरों की ओर भाग जाना पड़ा है। पिछले बीस वर्ष में पापरलंड की पाबाबी घटते-घटते लगभग पापी रह गयी है, और इस बात वहां के रहने बालों की संख्या को और भी घटा देने की क्रिया जारी है, ताकि वह ठीक-ठीक उस स्तर पर पहुंच जाये, जिसकी मापरलस के बीवारों और इंगलैड के ऊनी मिल-मालिकों को मावश्यकता है। मम की विषय-वस्तु को उत्पादन-क्रिया के सम्पूर्ण होने के पहले जिन प्रारम्भिक प्रवा पन्तकालीन अवस्थामों में से गुजरना पड़ता है, जब उनमें से किन्हीं अवस्थामों में मशीनों का उपयोग किया जाता है, तब उनमें पहले से प्रषिक सामग्री तैयार होने लगती है और उसके साथ-साथ उन वस्तकारियों या हस्तनिर्माणों में श्रम की मांग बढ़ जाती है, जिनको इन मशीनों की पैदावार की भावश्यकता होती है। मिसाल के लिये, जब कताई मशीनों से होने लगी, उससे इतना सस्ता और इतनी बहुतायत के साथ सूत तैयार हुमा कि शुरू-शुरू में हाप का करवा इस्तेमाल करने वाले बुनकर पूरे समय काम करने लगे और उनके खर्च में भी कोई वृद्धि नहीं हुई। पुनांचे इन बुनकरों की कमाई पहले से बढ़ गयी। उसका नतीजा यह हमा कि कपास की कताई के धंधे में लोगों की संख्या बराबर बढ़ती गयी, और यह क्रिया उस बात तक जारी रही, जब तक कि पाजिर शक्ति से चलने वाले करघे ने उन ८,००,००० बुनकरों को कुचल नहीं दिया, जिनको जेनी, जौसल और म्यूल ने जन्म दिया था। इसी तरह अब मशीनों के कारण पोशाकों के कपड़े बहुतायत से तैयार होने लगे, तो बर्षियों, वर्जिनों और सोने-पिरोने का काम करने वाली औरतों की संख्या में वृद्धि होने लगी, और वह उस बस्त तक होती रही, जब तक कि सीने की मशीन बाजार में नहीं मा गयी। मजदूरों की अपेक्षाकृत कम संख्या की मदद से मशीनों से जो कच्चे माल, अन्तरकालीन पैदावार और श्रम के पोबार मादि तैयार किये जाते हैं, उनकी मात्रा जिस अनुपात में बढ़ती है, उसी अनुपात में इन कच्चे मालों तथा अन्तरकालीन पैदावार की प्रागे की तैयारी असंख्य शालाबों में बंट जाती है। सामाजिक उत्पादन की विविधता बढ़ जाती है। हस्तनिर्माण सामाजिक अम-विभाजन को जितना मागे ले गया पा, फैक्टरी-व्यवस्था उसको उससे कहीं अधिक मागे ले जाती है, क्योंकि वह जिन खोगों पर भी अधिकार कर लेती है, उनकी उत्पादकता में हस्तनिर्माण की अपेक्षा कहीं अधिक वृद्धि कर देती है। मशीनों का तात्कालिक परिणाम यह होता है कि अतिरिक्त मूल्य में और पैदावार की उस राशि में वृद्धि हो जाती है, जिसमें अतिरिक्त मूल्य निहित होता है। और जैसे-जैसे उन तमाम बीजों की बहुतायत होती जाती है, जिनको पूंजीपति और उनपर मामित व्यक्ति इस्तेमाल करते हैं, वैसे-वैसे समाज की इन मेणियों की संख्या भी बढ़ती जाती है। एक मोर, इन लोगों की दौलत बढ़ती जाती है। दूसरी ओर, बीवन के लिये प्रावश्यक वस्तुओं को तैयार करने के . . 1"पिछली शताब्दी के अन्त में पोर वर्तमान शताब्दी के प्रारम्भ में चार वयस्क व्यक्तियों का परिवार, जो दो बच्चों से सूत लपेटवाने का काम लेता था, रोजाना इस घण्टे का श्रम करके एक सप्ताह में ४ पाण्ड कमा लेता था। यदि काम बहुत जरूरी होता था, तो थोड़ी ज्यादा मामदनी हो जाती थी उसके पहले इन लोगों के पास हमेशा सूत की कमी रहती थी।" (Gaskell, उप. पु., १० २५-२७।)
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