पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/५००

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मशीनें और माधुनिक उद्योग ४६७ . उन को भी मुक्त कर देती है। इसलिये, इस साधारण तव्य का-बो कोई नया तव्य कदापि नहीं है-कि मशीनें मजदूरों को उनके जीवन-निर्वाह के साधनों से अलग कर देती हैं, अर्थशास्त्र की भाषा में यह पर्व होता है कि मशीनें मजदूर के जीवन-निर्वाह के साधनों को माबाद कर देती हैं, या इन साधनों को मजबूर को नौकरी देने के लिये पूंजी में बदल देती हैं। इसलिये, जैसा कि पाप खुद देख सकते है, असली महत्व बात का नहीं, बात करने के ढंग का होता है। Nominibus mollire licet mala (बुरी चीजों को अच्छे नामों की रामनामी उदायी जानी चाहिये। इस सिद्धान्त का पर्व यह है कि १,५०० पौण्ड के मूल्य के जीवन-निर्वाह के साधन वह पूंजी थे, जिसका विस्तार उन ५० भादमियों के बम के द्वारा हो रहा था, जिनको जवाब में दिया गया है। और इसलिये जैसे ही इन मजदूरों की जबर्दस्ती की छुट्टी पारम्भ होती है, वैसे ही इस पूंजी का उपयोग में माना बन्द हो जाता है, और जब तक उसे कोई ऐसा नया क्षेत्र नहीं मिल जाता, जहां वह फिर उन्हीं ५० भादमियों के द्वारा उत्पादक ढंग से खर्च की जा सके, तब तक उसे चैन नहीं पाता। और इसलिये देर या सबेर इस पूंजी का और उन मजदूरों का फिर से इकट्ठा होना जरूरी है, और उनके इकट्ठा होने पर ही पूरी पति-पूर्ति हो सकती है। चुनांचे, मशीनें जिन मजदूरों को विस्थापित कर देती हैं, उनके कष्ट उतने ही भण-भंगुर होते हैं जितनी मण-भंगुर इस दुनिया की बोलत होती है। जहां तक नौकरी से हटाये गये मजदूरों का सम्बंध है, १,५०० पार के मूल्य के ये जीवन-निर्वाह के साधन कभी पूंजी नहीं थे। इन मजदूरों के सामने जो चीज पूंजी बनकर पायी थी, वह पी १,५०० पान की रकम, जो बाद को मशीनों पर खर्च कर दी गयी। बरा और ध्यान से देखने पर पाप पायेंगे कि यह रकम उन कालीनों के एक भाग का प्रतिनिधित्व करती है, जिनको वे ५० प्रादमी, जिनको प्रब जवाब मिल गया है, साल भर में तैयार करते थे। यह राम उन कालीनों के उस भाग का प्रतिनिधित्व करती है, जो मजदूरों को अपने मालिक से कालीनों के बजाय मुद्रा की शकल में बतौर मजदूरी के मिल जाता था। मुद्रा की शकल में इन कालीनों से मजदूर १,५०० पौण के मूल्य के जीवन-निर्वाह के साधन बरीद लेते थे। इसलिये, जहां तक इन मजदूरों का सम्बंध है, जीवन-निर्वाह के ये साधन पूंजी नहीं, बल्कि माल बे, और इन मालों के सिलसिले में मजदूर मजदूरी लेकर मेहनत करने वाले नहीं, बल्कि खरीदार थे। अब चूंकि उनको मशीनों ने खरीदने के साधनों से "मुक्त" कर दिया है, इसलिये वे खरीदारों से न खरीदने वालों में बदल जाते हैं। पुनांचे उन मालों की मांग में कमी हो जाती है-ौर voila tout (बस, बात खतम हो जाती है) । यदि किसी अन्य क्षेत्र में मांग की वृद्धि से इस कमी की पति-पूर्ति नहीं हो जाती, तो मालों का बाजार-भाव गिर जाता है। यदि कुछ समय तक यही स्थिति बनी रहती है और उसका विस्तार कुछ और बढ़ जाता है, तो इन मालों के उत्पादन में लगे हुए मजदूरों को काम से जवाब मिल जाता है। जो पूंजी पहले जीवन-निर्वाह के प्रावश्यक साधनों के उत्पादन में लगी हुई थी, उसका किसी और रूप में पुनवत्पावन होना मावश्यक हो जाता है। पर वाम गिरते हैं और पूंजी विस्थापित होती है, उबर बीवन-निर्वाह के प्रावश्यक साधनों के उत्पादन में लगे मजदूरों को उनकी मजबूरी के एक भाग से "मुक्त कर दिया जाता है। इसलिये, यह साबित करने के बजाय कि जब मशीनें मजदूर को उसके पीवन-निर्वाह के साधनों से मुक्त कर देती है, तब वे उसके साप-साथ इन साधनों को ऐसी पूंजी में बदल देती है, दो मजदूर को फिर नौकर रख सकती है, पूंजीवादी . . . 82_45