मशीनें और माधुनिक उद्योग ४८५ , के, और ये क्रीते पहले से बेहतर किस्म के होते थे। चुनांचे स्थानीय पैमाने पर अनेक उपाय होने लगे, बुनकरों ने शोर मचाया, और पाखिर शहर की कौंसिल ने इस प्रोचार के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया")। १६३२, १६३९ मावि में इस करघे पर न्यूनाधिक रूप में प्रतिबंध लगाने वाले अनेक पादेश जारी करने के बाद हालग की स्टेट्स-जनरल ने प्रातिर १५ दिसम्बर १६६१ के प्रावेश के परिये कुछ शतों के साथ उसके उपयोग की इजाजत देवी। १६७६ में कोलोन में भी इस प्रोवार पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इंगलम में इसी समय उसके उपयोग के फलस्वरूप मजदूरों के उपाय हो रहे थे। १९ फरवरी १६८५ के एक शाही फरमान के परिये सारे जर्मनी में उसके इस्तेमाल की मनाही कर दी गयी। हैम्बर्ग में सेनेट के हुक्म पर उसे सार्वजनिक रूप से बलाया गया। सम्राट् चार्ल्स छठे ने फरवरी १७१६ को १६८५ के मावेश को फिर से जारी किया, और सैक्सोनी की एलेक्टोरट में १७६५ तक उसका खुल्लमखुल्ला इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं दी गयी। यह मशीन, जिसने योरप की नींव हिला वी, असल में म्यूल की पौर शक्ति से चलने वाले करघे की पौर १८ वीं सदी की प्रौद्योगिक क्रान्ति की पूर्वज थी। उसकी मदद से एक सर्वधा अनुभवहीन लड़का केवल कर की मूठ को पागे-पीछे करके उसकी सारी हरकियों सहित पूरे करघे में गति पैदा कर सकता था, और इस मशीन का सुपरा हुमा कम एक बार में ४० से ५० दुकड़े तक तैयार कर गलता था। लन्दन के नबवीक एक ग्ब व्यक्ति ने हवा से चलने वाली लकड़ी चीरने की एक मशीन लगा रखी थी। १६३० के लगभग उसे लोगों ने नष्ट कर गला। यहां तक कि १८ वीं सदी के शुरू में भी पानी से चलने वाली लकड़ी चीरने की मशीन बहुत मुश्किल से ही संसद का समर्थन पाने वाली जनता के विरोध पर काबू पा सकी। १७५८ में एवेरेट ने पानी की शक्ति से चलने वाली मन कतरने की पहली मशीन बनाकर बड़ी ही की थी कि १ लाल ऐसे व्यक्तियों ने, बो बेकार हो गये थे, उसमें भाग लगा दी। पचास हजार मजदूरों ने, जो पहले ऊन पुनकर बीविका कमाया करते थे, मार्कराइट की बनायी हुई धुनने और तमने की मशीनों के खिलाफ संसद को एक बरखास्त भेषी । वर्तमान शताब्दी के पहले पनाह वर्षों में इंगलैग के कल-कारखानों वाले रिस्ट्रिक्टों में मुस्पतया शक्ति से चलने वाले कर का उपयोग पारम्भ हो जाने के कारण बड़े विशाल पैमाने पर मशीनों को नष्ट किया गया था। यही पान्दोलन खुलाइट प्रान्दोलन के नाम से प्रसिद्ध हुमा था। उससे सिउमाउब, कैसलरीह और उन सरीले व्यक्तियों की कोविन- विरोधी सरकारों को बल-प्रयोग के प्रत्यन्त प्रतिक्रियावादी कदम उठाने का बहाना मिल गया। काफी समय बीत जाने और बहुत कुछ अनुभव प्राप्त करने के बाद ही मजदूर यह समझ पाये कि मशीनों में और पूंजी के द्वारा मशीनों के उपयोग में मेव होता है और उन्हें उत्पादन के भौतिक प्राचारों पर नहीं, बल्कि उनके उपयोग की प्रणाली पर अपने प्रहार करने - हस्तनिर्माण में मजदूरी के सवाल पर होने वाले भगड़े हस्तनिर्माण के अस्तित्व को पहले से मान लेते थे, और उनका ोल्य किसी भी पर्व में हस्तनिर्माण के अस्तित्व पर प्रहार करना नहीं होता था। नये हस्तनिर्माणों की स्थापना का विरोध शिल्पी संघों तथा विशेषाधिकार 'पुराने ढंग के उद्योगों में मशीनों के खिलाफ मजदूरों के बलवे माज भी यदा-कदा बर्वर स्वरूप धारण कर लेते है। मसलन १९६५ में शेफ़ील के रेती बनाने वालों के उपद्रव का रूप भी ऐसा ही हो गया था।
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