मशीनें और माधुनिक उद्योग . पौर कहीं-कहीं पर तो इससे भी अधिक मात्रा में बम (amount. of labour) की पावश्यकता होती है... १८४२ में एक और बस्तावेज मेरे पास प्रापी, जिसमें लिखा पा कि भम अधिकाधिक बढ़ता जा रहा है, और वह केवल इसलिये नहीं कि मजदूर को पहले से अधिक दूरी तक चलना पड़ता है, बल्कि इसलिये भी कि अब पहले से कहीं अधिक मात्रा में पैरावार तैयार होती है और उसके अनुपात में मजदूरों की संख्या पहले से बहुत कम रह गयी है। इसके अलावा, इसका यह कारण भी है कि अब अक्सर पहले से घटिया किस्म की कपास की कताई की जाती है, जिसके साथ काम करना अधिक कठिन होता है... पुनाई-विभाग के मम में भी बहुत वृद्धि हो गयी है। वहां जो काम पहले दो व्यक्तियों के बीच बंटा रहता था, उसे प्रब एक व्यक्ति करता है। बुनाई-विभाग में, जहां बहुत बड़ी तादाद में मादमी काम करते हैं पौर उनमें भी लियों की संख्या अधिक होती है,.. पिछले बन्द सालों में कताई करने वाली मशीन की बढ़ी हुई रप्तार के कारण श्रम में पूरे १० प्रतिशत की वृद्धि हो गयी है। १८३८ में हर हप्ते १८,००० hanks (लच्छे) सूत काता जाता था, १८४३ में २१,००० hanks (लच्छे) सूत काता जाने लगा था। १८१९ में शक्ति से चलने वाले करबे से बो बुनाई की बाती थी उसमें प्रति मिनट ६० फन्वे गले जाते थे,-१८४२ में १४० फंदे गले जाने लगे थे, जिससे पता चलता है कि मन में कितनी भारी वृद्धि हो गयी थी। बारह घण्टों के कानून के मातहत १४ में ही श्रम की तीव्रता जिस ऊंचे स्तर पर पहुंच गयी थी, उसे देखते हुए अंग्रेच कारखानेवारों का यह कवन उचित प्रतीत होता था कि इस दिशा में प्रब और प्रगति करना असम्भव है और इसलिये अब यदि बम के घण्टों में और कमी की जायेगी, तो हर कमी का मतलब होगा पहले से कम उत्पादन । उनकी दलीलें स्पष्टतया कितनी सही मालूम होती की, यह कारखानेवारों पर सदैव कड़ी निगाह रखने वाले. कैपटरी-संस्पेक्टर लेगोनाई होर्नर के उसी काल के निम्नलिखित वक्तव्य से प्रकट हो जाता है: 'प्रब कि पैदावार की मात्रा मुख्यतया मशीनों की रफ्तार पर निर्भर करती है, इसलिये मिल-मालिक के हित में यह है कि वह मशीनों को ज्यादा से ज्यादा तेब रफ्तार से चलाये, पर निम्नलिखित बातों का सदा ध्यान रखे : मशीनों को बहुत जल्दी खराब हो जाने से बचाया जाये; को सामान तैयार किया जा रहा हो, उसका स्तर न गिरे, और मजदूर मशीन की गति का अनुसरण करने में लगातार जितनी ताकत सर्च कर सकता है, उसे उससे स्यावा ताकत न खर्च करनी पड़े। इसलिये, किसी भी फैक्टरी के मालिक को दिन सबसे महत्वपूर्ण समस्याओं को हल करना पड़ता है उनमें से एक यह मालूम करना होता है कि ऊपर बतायी गयी बातों का पाल रखते हुए वह ज्यादा से ज्यादा किस रफ्तार से अपनी मशीनों को चला सकता है। अक्सर बह पाता है कि वह अपनी मशीनों को हर से प्यावा तेव रस्तार पर चलाने लगा है और उनकी बढ़ी हुई रस्तार से बो फायदा होता है, दूट-फूट और खराब काम के फलस्वरूप उससे कहीं ज्यावा नुकसान हो जाता है, और इसलिये उसे रक्तार कम करने के लिये मजबूर होना पड़ता है। पुनांचे में इस नतीजे पर पहुंचा कि चूंकि एक झ्यिाशील एवं बुद्धिमान मिल-मालिक यह पता लगा लेगा कि मशीनों की स्यादा से ज्यादा क्या रप्तार हो 1 "Ten Hours' Factory Bill. The Speech of Lord Ashley, 15th March" ('दस घण्टे का फैक्टरी-बिल, लाई ऐशले का भाषण, १५ मार्च'), London, 1844, पृ. ६-१, विभिन्न स्थानों पर। 300
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