पूंजीवादी उत्पादन के दिन के अपेक्षाकृत अधिक सरंभ घण्टे की अपेक्षा अधिक मम होता है, अर्थात् उसमें मन शक्ति की अधिक मात्रा पर्च होती है। इसलिये इस प्रकार के एक घण्टे की पैदावार में उतना ही या उससे भी अधिक मूल्य होता है, जितना दूसरे प्रकार के ? घन्टे की पैदावार में होता ५ है। मम की बढ़ी हुई उत्पादकता से पैदावार में बो वृद्धि होती है, उसके अलावा प्रब यह अन्तर भी पा जाता है कि पहले चार घण्टे के अतिरिक्त भम और पाठ घण्टे के पावश्यक मम से मूल्य की जितनी मात्रा पैदा होती थी, अब उतनी ही मात्रा, मिसाल के लिये, घण्टे ३ ३ २ ३ - के अतिरिक्त श्रम और घण्टे के प्रावश्यक मम से पूंजीपति के लिये तैयार हो जाती है। अब हम इस प्रश्न पर पाते हैं कि श्रम को तीन कैसे किया जाता है? काम के दिन को छोटा करने का पहला प्रभाव इस स्वतःस्पष्ट नियम के कारण पैदा होता है कि श्रम-शक्ति की कार्यक्षमता उसके खर्च की अवधि के प्रतिलोम अनुपात में होती है। इसलिये अवधि को कम करने से जो कुछ नुकसान होता है, वह कुछ सीमानों के भीतर श्रम-शक्ति के बढ़ते हुए तनाव के फलस्वरूप पूरा हो जाता है। मजदूर सचमुच पहले से अधिक श्रम-शक्ति सर्च करेगा, पूंजीपति उसको मजदूरी देने की विशेष पति के द्वारा उसे सुनिश्चित कर देता है।' मिट्टी के बर्तन बनाने के और ऐसे ही अन्य उद्योगों पर, जिनमें मशीनों की कोई भूमिका नहीं होती और पनि होती है, तो बहुत कम, फेक्टरी-कानून के लागू होने से यह बात सिड हो गयी है कि महज काम के दिन को छोटा कर देने से मम की नियमितता, एकम्पता, कार्य-व्यवस्था, निरन्तरता और ऊर्जा प्राश्चर्यजनक रूप से बढ़ जाती हैं। लेकिन जिसको सचमुच फैक्टरी कहा जा सकता है और जहां मशीनों की निरन्तर एवं एकल्प गति पर निर्भर रहने के कारण मजदूर में पहले से ही कठोरतम अनुशासन पैरा हो जाता है, वहां भी काम के दिन को छोटा कर देने का यही प्रभाव हुमा होगा, इसमें काफी सन्देह बा । इसीलिये, १४ में जब काम के दिन को छोटा करके बारह पटे से कम का कर देने के सवाल पर बहस चल रही थी, तो मालिकों ने लगभग एक मावास से यह ऐलान किया था कि "अलग-अलग कमरों में उनके फोरमन इस बात का पूरा खयाल रखते हैं कि मजदूर बरा भी बात वाया न करें" तथा "मवर पाजकल जिस सतर्कता और ध्यान के साथ काम करते हैं ( the extent of vigilance and attention on the part of the workmen), उसमें मुश्किल से ही कोई वृद्धि हो सकती है" और इसलिये, जब तक मशीनों की रफ्तार और अन्य परिस्थितियों में कोई परिवर्तन नहीं किया जाता, तब तक "किसी भी सुव्यवस्थित फेक्टरी में यह माशा करना कि मजदूरों के स्यावा ध्यान देने से ही कोई महत्वपूर्ण परिणाम निकल पायेगा, बिल्कुल बेतुकी बात है।""परन्तु विभिन्न प्रयोगों ने इस कपन को मूग सिद्ध कर बास तौर पर कार्यानुसार मजदूरी की प्रणाली के द्वारा। इस पति का मध्ययन हम इस पुस्तक के भाग ६ में करेंगे। 'देखिये "Rep. of Insp. of Fact. for sist October, 1865" ('फैक्टरियों के इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट, ३१ अक्तूबर १९६५')।
- "Rep. of Insp. of Fact. for 1844 and the quarter ending 30th April,
18450 ('फ्रक्टरियों के इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट, १४ की पौर ३० प्रल १८४५ को समाप्त होने वाले विमास की'), पृ. २०-२१ । .