४६० पूंजीवादी उत्पादन . . बनाकर अप्रत्यक्ष स से खुद उसको भी सस्ता बना देती हैं, बल्कि इस तरह भी कि जब किसी उद्योग में कहीं एकाध जगह पर मशीनों का उपयोग होने लगता है, तब इन मशीनों का मालिक जिस भम से काम लेता है, वह अपेक्षाहत ऊंचे बर्वे और ऊंची कार्य-क्षमता का श्रम बन जाता है, पैदावार का सामाजिक मूल्य उसके व्यक्तिगत मूल्य से कुछ अधिक हो जाता है और इस प्रकार पूंजीपति इस स्थिति में होता है कि एक दिन की बम-शक्ति का मूल्य दिन भर की पैदावार के पहले से कम भाग से पूरा कर है। परिवर्तन के इस काल में, जब मशीनों के इस्तेमाल पर एक तरह से किन्हीं इने-गिने पूंजीपतियों का इनारा होता है, असाधारण डंग के मुनाफ़े होते हैं और पूंजीपति काम के दिन को भरसक लम्बा करके "अपने इस पहले प्यार के बसन्त से" अधिक से अधिक लाभ उठाने का प्रयत्न करता है। मुनाना जितना ज्यादा होता है, उसकी मुनाफ़ा पाने की भूल भी उतनी ही बढ़ जाती है। जैसे-जैसे किसी खास उद्योग में मशीनों का उपयोग अधिकाधिक सामान्य होता जाता है, वैसे-वैसे पैावार का सामाजिक मूल्य उसके व्यक्तिगत मूल्य के स्तर के निकट माता जाता है और यह नियम अपना बोर दिलाता है कि अतिरिक्त मूल्य उस श्रमशक्ति से पैदा नहीं होता, जिसका स्थान मशीनों ने ले लिया है, बल्कि वह उस भन-शक्ति से उत्पन्न होता है, जो सचमुच मशीनों से काम लेने के लिये नौकर रखी गयी है। अतिरिक्त मूल्य एकमात्र अस्थिर पूंजी से ही उत्पन्न होता है। और हम यह देख चुके हैं कि अतिरिक्त मूल्य की मात्रा को बातों पर निर्भर करती है, यानी एक तो अतिरिक्त मूल्य की बर पर पौर, दूसरे, जिन मजदूरों से एक साथ काम लिया जा रहा है, उनकी संख्या पर। यदि काम के दिन की लम्बाई पहले से मालूम हो, तो अतिरिक्त मूल्य की बर इस बात से निर्धारित होती है कि एक दिन में प्रावश्यक भम तपा अतिरिक्त श्रम की तुलनात्मक अवधि कितनी है। उधर, जिन मजदूरों से एक साथ काम लिया जा रहा है, उनकी संख्या स्थिर पूंजी के साथ अस्थिर पूंजी के अनुपात पर निर्भर करती है। प्रब मशीनों के उपयोग से मन की उत्पादकता बढ़ जाने के फलस्वरूप प्रावश्यक श्रम के मुकाबले में अतिरिक्त मम चाहे जितना बढ़ जाये, यह बात साफ है कि यह केवल इसी तरह सम्पन्न होता है कि पूंजी की एक निश्चित मात्रा मजदूरों की जिस संस्था से काम लेती है, उस में कमी मा जाती है। जो पहले पस्थिर पूंची वा पौर श्रम-शक्ति पर खर्च किया गया था, वह अब मशीनों में बदल दिया जाता है, और मशीनें स्थिर पूंजी होने के कारण प्रतिरिक्त मूल्य पैदा नहीं करतीं। मिसाल के लिये, २४ मजदूरों में से जितना अतिरिक्त मूल्य चूसा जा सकता है, २ मजदूरों में से उतना सम्भव नहीं। यदि इन २४ भादमियों में से हरेक १२ घण्टे में केवल १ घण्टा अतिरिक्त मम करता है, तो २४ पारमी कुल मिलाकर २४ घण्टों के बराबर अतिरिक्त बम करेंगे, जब कि २४ घन्टे का भम दो प्रारमियों का कुल मम है। इसलिये, अतिरिक्त मूल्य के उत्पादन में मशीनों के उपयोग में एक भीतरी विरोष निहित होता है, क्योंकि पूंजी की एक निश्चित मात्रा द्वारा पैरा किया गया अतिरिक्त मूल्य जिन दो बातों पर निर्भर करता है, उनमें से एक को-पानी अतिरिक्त मूल्य की पर को- उस वक्त तक नहीं बढ़ाया जा सकता, पब तक कि दूसरी को-पानी मजदूरों की संख्या को-घटा न दिया जाये। जैसे ही किसी खास उद्योग में मशीनों का पान तौर पर उपयोग होने के फलस्वल्म मशीन से तैयार होने वाले माल का मूल्य उसी प्रकार के अन्य सब मानों के मूल्य का नियमन करने लगता है, वैसे ही यह भीतरी विरोष सामने पापाता है। और फिर यह विरोष ही पूंजीपति को इस बात के लिये मजबूर . , .
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