पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/४६१

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४५८ पूंजीवादी उत्पादन , कम-उन्न और जिन्दगी से भरी-पूरी हो, उसका मूल्य तब इस बात से निर्धारित नहीं होगा कि उसमें कितने भम ने सचमुच भौतिक रूप धारण किया है, बल्कि इस बात से निर्धारित होगा कि उसके पुनवत्पादन के लिये या उससे बेहतर मशीन के उत्पादन के लिये कितना श्रम-काल आवश्यक होता है। इसलिये ऐसी हालत में मशीन के मूल्य में न्यूनाधिक कमी प्रा जाती है। उसके कुल मूल्य के पुनरुत्पादन में जितना कम समय लगेगा, उतना ही उसके नैतिक मूल्प-हास का कम खतरा रहेगा; और काम का दिन जितना अधिक लम्बा होगा, मशीन के कुल मूल्य के पुनरुत्पादन में उतना ही कम समय लगेगा। जब किसी उद्योग में मशीन का इस्तेमाल पहले-पहल शुरू होता है, तो उसका अधिक सस्ते में पुनरुत्पादन करने का एक के बाद दूसरा तरीका ईजाद होने लगता है और न केवल मशीन के अलग-अलग हिस्सों और कल-पुणे में, बल्कि उसकी पूरी बनावट में नये-नये सुधार होते रहते हैं। इसलिये मशीनों के जीवन के एकदम प्रारम्भिक दिनों में काम के दिन को लम्बा खींचने की इच्छा पैदा करने वाला यह विशिष्ट कारण सबसे अधिक खोर दिलाता है।' यदि काम के दिन की लम्बाई पहले से मालूम हो और अन्य सब परिस्थितियां समान रहें, तो पहले से दुगुनी संख्या में मजदूरों का शोषण करने के लिये स्थिर पूंजी के न केवल मशीनों और मकानों में लगे भाग को, बल्कि उस भाग को भी बुगुना करना पड़ता है, जो कच्चे माल और सहायक पदार्थों में लगाया जाता है। दूसरी पोर, काम के बिन को लम्बा करने पर मशीनों और मकानों में लगी हुई पूंजी में बिना कोई परिवर्तन किये हुए ही पहले से बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जा सकता है। इसलिये, वैसी हालत में न सिर्फ अतिरिक्त मूल्य बढ़ जाता . 11 विषय में यह लिखा है : इसका (यानी “मशीनों के खराब हो जाने के लिये पहले से ही पैसा निकालकर अलग रख देने" का) यह उद्देश्य भी होता है कि मशीनें चूंकि घिसने के पहले ही नयी और बेहतर बनावट की मशीनों का आविष्कार हो जाने के फलस्वरूप पुरानी पड़ जाती हैं, इसलिये इससे निरन्तर होने वाले नुकसान को पूरा करने की पहले से व्यवस्था कर दी जाये।" 1" मोटे तौर पर यह अनुमान लगाया गया है कि जब किसी नयी मशीन का आविष्कार होता है, तो उस प्रकार की पहली मशीन बनाने में वैसी ही दूसरी मशीन की अपेक्षा लगभग पांच- गुना खर्चा लग जाता है।" (Babbage, उप० पु०, पृ. २११।) "अभी बहुत दिन नहीं हुए है, जब कि पेटेण्ट-शुदा जाली बनाने के ढांचों में इतने बड़े- बड़े सुधार कर दिये गये थे कि जिस मशीन में १,२०० पौण्ड की लागत लगी थी, वह अच्छी हालत में होते हुए भी उसके चन्द साल बाद ही केवल ६० पौण्ड में बिकती थी एक के बाद दूसरा सुधार इतनी जल्दी-जल्दी हो रहा था कि मशीनें तैयार नहीं हो पाती थीं और उसके पहले ही खरीदार उन्हें उनको बनाने वालों के पास छोड़कर खुद अलग हो जाते थे, क्योंकि इस बीच नये सुधार उनकी उपयोगिता को कम कर देते थे।" (Babbage, उप० पु०, पृ. २३३ ।) चुनांचे, तरक्की के इन तूफ़ानी दिनों में रेशमी जाली बनाने वाले कारखानेदारों ने शीघ्र ही मजदूरों की दो पालियों से काम लेना शुरू कर दिया और इस तरह काम के दिन को पाठ घण्टे से चौबीस घण्टे का कर दिया। यह बात स्वतःस्पष्ट है कि मंडियों के उतार-चढ़ाव और मांग के बारी-बारी से बढ़ने- घटने के बीच वारस्वार ऐसे अवसर पाते हैं, जब कारखानेदार अतिरिक्त प्रचल पूंजी लगाये विना ही अतिरिक्त चल पूंजी का उपयोग कर सकता है,.. बशर्ते कि मकानों और मशीनों पर -