मशीनें और प्राधुनिक उद्योग ४५५ पर फैला दी जाती है . . . मिसाल के लिये, एक दिन की हाजिरी सुबह ८ से ११ बजे तक की हो सकती है, दूसरे दिन की १ बजे बोपहर से शाम के ४ बजे तक की, और फिर मुमकिन है कि कई रोल तक बच्चा स्कूल में मुंह न विलाये, उसके बाद वह तीसरे पहर के ३ बजे से शाम के ६ बजे तक स्कूल में बैठ सकता है। इस तरह ३ या ४ दिन तक या एक सप्ताह तक लगातार स्कूल में पाने के बाद वह ३ सप्ताह या एक महीने तक गैरहातिर रह सकता है; और उसके बाद जब कभी उसका मालिक उसे काम कम होने पर छुट्टी के दे, वह कभी-कभार स्कूल में जा सकता है। और जब तक १५० घण्टे का वह हिस्सा पूरा नहीं हो जाता, तब तक बच्चा कभी स्कूल से कारखाने में और कभी कारखाने से स्कूल में इसी तरह पक्के लाता रहता है।"1 स्त्रियों और बच्चों को प्रत्यधिक संख्या में मजदूरों में भर्ती करके मशीनें प्राबिर पुरुष मजदूरों के उस प्रतिरोध को तोड़ देती हैं, जिसका पूंजी के निरंकुश शासन को हस्तनिर्माण के काल में लगातार सामना करना पड़ा था।' मि. व्हाइट go tota; “Reports of Inspectors of Factories for 31st October, 1857" ('फैक्टरियों के इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट, ३१ अक्तूबर १८५७'), पृ० ४१-४२। जिन उद्योगों पर खास फैक्टरी-कानून (कपड़ा छापने के कारखानों का वह विशेष कानून [Print Works Act] नहीं, जिसका यहां जिक्र किया गया है) कुछ समय से लागू है, उनमें शिक्षा सम्बंधी धाराओं के रास्ते की रुकावटों को हाल के कुछ वर्षों में दूर कर दिया गया है। जिन उद्योगों पर यह कानून लागू नहीं है, उनमें अब भी कांच के कारखाने के मालिक मि० जे० गेड्डेज के विचारों का ही दौर-दौरा है। इन सज्जन ने जांच-पायोग के एक सदस्य, से कहा था : “जहां तक में देख सकता हूं, पिछले कुछ वर्षों से मजदूर-वर्ग का एक भाग जो पहले से अधिक शिक्षा प्राप्त कर रहा है, वह एक बड़ी भारी बुराई है। यह एक ख़तरनाक चीज है, क्योंकि वह मजदूरों को आजाद बना देती है।" ("Children's Empl. Comm., Fourth Report" ['art-harta yrity it atat foute'], London, 1865, पृ० २५३।) ३"मि० ई० नामक एक कारखानेदार ने...मुझे यह सूचना दी कि वह शक्ति से चलने वाले अपने करघों पर काम करने के लिये केवल स्त्रियों को ही नौकर रखते हैं ... और उनमें भी विवाहित स्त्रियों को वह ज्यादा तरजीह देते हैं, खास तौर पर उन स्त्रियों को, जिनके परिवार अपनी जीविका के लिये उन्हीं पर निर्भर होते हैं। ये स्त्रियां अविवाहित स्त्रियों की तुलना में अधिक ध्यान लगाकर काम करती है, अधिक विनयी होती है और जीवन की पावश्यकतामों को प्राप्त करने के लिये उनको मजबूर होकर ज्यादा से ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। इस प्रकार, नारी के गुणों को,- उसके विशिष्ट गुणों को,-ऐसा रूप दे दिया जाता है कि वे खुद उसी के लिये घातक बन जाते हैं। इस प्रकार नारी के स्वभाव में जो कुछ भी अत्यन्त कर्तव्य-पालन की भावना और ममता से भरा है, उसे उसके लिये दासता का साधन और यातनाओं का कारण To feet " (Ten Hours' Factory Bill. The Speech of Lord Ashley, 15th March" ['वस घण्टे का फ़ैक्टरी-बिल, लार्ड ऐशले का भाषण, १५ मार्च'], London, 1844, पृ. २०) -
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