मशीनें और प्राधुनिक उद्योग ४५३ . . अक्सर यह होता था कि स्कूल में बच्चों की हाजिरी के प्रमाण-पत्र पर स्कूल का मास्टर या मास्टरानी हस्ताक्षर नहीं करते थे, बल्कि सिर्फ एक चिन्ह बना देते थे, क्योंकि वे खुब लिखना नहीं जानते थे। लेमोनार होर्नर ने लिखा है : "एक बार में एक ऐसा स्थान देखने गया, स्कूल कहलाता था और वहां से बच्चों की हानिरी के प्रमाण-पत्र भी जारी हुए थे। मुझे इस स्कूल के मास्टर का प्रमान देखकर इतना पाश्चर्य हुमा कि मैं उससे यह पूछ ही बैन कि 'कहिये, जनाव, माप पढ़ना तो जानते हैं ?' उसने बवाब दिया 'हां, कुछ मुछ (summat)।' और फिर मानो प्रमाण-पत्र देने के अपने अधिकार का पौचित्य सिद्ध करने के लिए उसने कहा: 'बहरहाल, मैं अपने विद्यार्षियों से तो पहले हूं ही।'"जब १४ का बिल तैयार हो रहा पा, उस समय फेक्टरी-इंस्पेक्टरों ने उन स्थानों का सवाल उठाया, जो स्कूल कहलाते थे और जिनकी स्थिति बहुत लन्चाजनक बी तथा जिनके प्रमाण-पत्रों को उन्हें कानून के प्रावेश-पालन के रूप में स्वीकार करना पड़ता था। परन्तु उनकी तमाम कोशिशों का केवल इतना ही परिणाम हमा कि १८ के कानून के पास हो जाने के बाद यह नियम बन गया कि " प्रमाण-पत्र में खुब स्कूल-मास्टर की लिखावट में अंक होने चाहिए, जिसे अपना पूरा नाम, पिता का नाम और कुल का नाम भी अपने हाथ से लिखना होगा। स्कोटलेट के फैक्टरी स्पेक्टर सर जान किनकेट ने भी इसी प्रकार के एक अनुभव का वर्णन किया है। "हम जो पहला स्कूल देखने गये, उसका बन्दोबस्त भीमती ऐन किलिन के हाथ में था। हमने जब उनसे अपने नाम का वर्ण-विन्यास करने को कहा, तो वह फौरन गलती कर बैठीं। उन्होंने अपने नाम को "सी" (C) अक्षर से शुरू किया। लेकिन उसके बाद फौरन ही उन्होंने अपनी भूल सुपारी और कहा कि उनका नाम "के" (K) प्रमर से शुरू होता है। किन्तु स्कूल के प्रमाण-पत्रों में जब हमने उनके हस्ताक्षर देले, तो पता चला कि वे अपने नाम को तरह-तरह से मिलती रही हैं और उनकी लिखावट से इस बात में तनिक भी सन्देह नहीं रहा कि उनमें बच्चों को पढ़ाने की योग्यता नहीं है। यह बात तो उन्होंने खुद भी स्वीकार की कि रजिस्टर भरना उनके बस की बात नहीं है एक दूसरे स्कूल में मैंने देखा कि स्कूल का कमरा १५ फ्रीट लम्बा और १० फीट चौड़ा है और इतने स्थान में ७५ बच्चे भरे हुए कुछ बड़बड़-बड़बड़ कर रहे हैं, जिसे सुनकर समाना असम्भव है। लेकिन यह केवल इन उपर्युक्त दयनीय स्थानों में ही नहीं होता कि बच्चों को किसी काम को शिक्षा नहीं मिलती और फिर भी स्कूल में हाजिरी के प्रमाण-पत्र दे दिये जाते हैं। बहुत से स्कूलों में शिक्षक योग्य है, पर उसकी सब कोशिशें बेकार रहती हैं, क्योंकि ३ वर्ष के शिशुषों से शुरू करके सभी उत्रों के बच्चों की वह बेशुमार भीड़ उसको कुछ नहीं करने देती। वह बहुत मुश्किल से ही अपनी गुजर-बसर कर पाता है, और यह भी इस बात पर निर्भर करता है कि उस रा से स्थान में वह अधिक से अधिक कितने बच्चों को ढूंस सकता है, क्योंकि इन बच्चों से मिलने वाली पेनियों के सहारे ही उसकी बीविका चलती है। फिर यह भी ध्यान में रखना चाहिये कि इन स्कूलों में फर्नीचर का प्रभाव होता है, किताबों की और पढ़ाई की अन्य सामग्री की कमी रहती है और घुटन . . - bratare state ; “Reports of Inspectors of Factories for 31st October, 1855" ('फेक्टरियों के इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट, ३१ अक्तूबर १८५५'), पृ० १८, १९ । 'सर जान किनकेड; "Rep. of Insp. of Fact. for 31st Oct., 1858" ('फैक्टरियों इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट, ३१ अक्तूबर १८५८'), पृ. ३१, ३२ । .
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