मशीनें और माधुनिक उद्योग नियुक्त किये गये किसी गक्टर को उनकी उन की जांच करके प्रमाण-पत्र देना पड़ता था। इसलिए यह कारखानेगर ऐसे बच्चे चाहता है, वो देखने में प्रमी से १३ पर्व के मालूम हों। पटरियों में काम करने वाले १३ वर्ष से कम उम्र के बच्चों की संख्या में अक्सर बो यकायक भारी कमी मा जाती है और जो इंगलब के पिछले २० वर्ष के प्रांकड़ों में पाश्चर्यजनक म से व्यक्त हुई है, उसका अधिकतर भाग खुब फैक्टरी मंस्पेक्टरों के कषानुसार certifying surgeons (प्रमाण-पत्र देने वाले गक्टरों) के काम का परिणाम है। ये लोग पूंजीपति के शोषण के मोह और बच्चों के मां-बापों के घृणित लालच का सवाल करके बच्चों की उम्र ज्यादा लिल देते । बेषनल ग्रीन के बदनाम रिस्ट्रिक्ट में हर सोमवार और मंगलवार की सुबह को एक पैठ लगती है, जिसमें वर्ष और उससे अधिक उम्र के लड़के और लड़कियां अपने को रेशान के कारखानों के मालिकों के हाथ किराये पर उठाते हैं। "भाव पाम तौर पर होता है १ शिलिंग ८ पेन्स प्रति सप्ताह (यह राम मां-बापों की जेब में चली जाती है) और २ पेंस और चाय मेरे लिए।" यह करार केवल एक सप्ताह तक चलता है। इस पैठ में जिस भाषा का प्रयोग किया जाता है और जो दृश्य उपस्थित होता है, वह सचमुच लब्जा की बात है।' इंगलड में अक्सर ऐसा भी हुमा है कि औरतें मुहताज-सानों से बच्चों को ले गयी है और जो भी २ शिलिंग ६ पेंस प्रति सप्ताह देने को तैयार हुमा, उसी के हाच उनको सौंप दिया। जिटेन में तमाम कानूनों के बावजूद २,००० से अधिक लड़कों को उनके मां-बापों ने चिमनी साफ़ करने की जिन्दा मशीनों का काम करने के लिए बेच दिया है (हालांकि अब उनका स्थान लेने के लिए अनेक मशीनें मौजूद हैं)। मशीनों ने भम-शक्ति के प्राहक तथा विक्रेता के कानूनी सम्बंधों में जो क्रान्ति पैदा कर दी है और जिसके फलस्वरूप इस पूरे सौवे का रूप अब दो स्वतंत्र व्यक्तियों के करार का रूप नहीं रह गया है, उससे इंगलैग की संसद को न्याय के सिद्धान्तों के नाम पर कारखानों में राज्य के हस्तक्षेप के लिए बहाना मिल गया। जब कभी कानून किन्हीं ऐसे उद्योगों में बच्चों के भम पर ६ घण्टे की सीमा का प्रतिबंध लगाता है, जिनमें पहले ऐसा प्रतिबंध लागू नहीं था, तब कारखानेदार हमेशा छाती पीटने लगते हैं। कहते हैं कि जिस उचोग पर यह कानून लागू कर दिया जाता है, उसमें काम करने वाले बहुत से बच्चों को उनके मां-बाप वहां से हटाकर ऐसे उद्योगों में बेच पाते हैं, जिनमें अब भी 'मन की स्वतंत्रता" का राज्य है, पानी जहाँ १३ वर्ष से कम उम्र के बच्चों को वयस्क लोगों के बराबर काम करना पड़ता है और इसलिए वहां उनको स्यावा अंचे दामों पर बेचा जा सकता है। लेकिन पूंची कि अपने स्वभाववश सबको बराबर करती चलती है, चूंकि वह उत्पादन के प्रत्येक क्षेत्र में मम के शोषण की समान परिस्थितियों को लागू करती है, इसलिए . 1 "Children's Employment Commission, Fifth Report" ('aterhartt पायोग की पांचवीं रिपोर्ट'), London, 1866, पृ. ८१, अंक ३१। [चीचे संस्करण का फुटनोटः बेषनल ग्रीन का रेशम का उद्योग अब लगभग चौपट हो गया है।-के० एं०] a "Children's Employment Commission, Third Report" ('767-feiretoria पायोग की तीसरी रिपोर्ट') London, 1864, पृ० ५३, अंक १५। I. c., Fifth. Report ('बाल-सेवायोजन पायोग की पांचवीं रिपोर्ट'), पृ. XXII (बाईस), अंक १३७। 29-45
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