पूंजीवादी उत्पादन मजदूर और पूंजीपति के बीच जो करार होता है, जो उनके पारस्परिक सम्बंधों को विधिवत् निश्चित करता है, मशीनें उसमें भी एक पूरीकान्ति पैदा कर देती हैं।मालों के विनिमय को अपना प्राधार बनाते हुए हम सबसे पहले यह मानकर चल रहे थे कि पूंजीपति और मजदूर स्वतंत्र व्यक्तियों के रूप में, मालों के स्वतंत्र मालिकों की तरह, एक दूसरे से मिलते हैं। एक के पास मुद्रा और उत्पादन के साधन होते हैं, दूसरे के पास श्रम-शक्ति। परन्तु अब पूंजीपति बच्चों और कम-उन्न लड़के सकियों को खरीदने लगती है। पहले मजदूर खुद अपनी मम-शक्ति बेचता था, जिसका वह कम से कम नाम मात्र के लिए एक स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में सौदा कर सकता था। पर अब वह अपनी पत्नी और अपने बच्चे को बेचने लगता है। वह गुलामों का व्यापार करने वाला बन जाता है। बच्चों के मन की मांग का रूप अक्सर हबशी गुलामों की मांग के समान होता है, जिनके बारे में पहले अमरीकी पत्र-पत्रिकामों में विज्ञापन निकला करते थे। इंगलैग के एक फैक्टरी-मंस्पेक्टर ने कहा है : “मेरे रिस्ट्रिक्ट के एक सबसे महत्वपूर्ण प्रौद्योगिक नगर के स्थानीय पत्र में प्रकाशित एक विज्ञापन की पोर मेरा ध्यान माकर्षित किया गया है। इस विज्ञापन की नाल इस तरह है : १२ से २० तक लड़के लड़कियां चाहिये ; बेखने में १३ वर्ष से कम के नहीं मालूम होने चाहिए। मजदूरी ४ शिलिंग प्रति सप्ताह होगी। दरखास्त भेजिये, इत्यादि। "देखने में १३ वर्ष से कम के नहीं मालूम होने चाहिए" इसलिए लिखा गया है कि Factory Act (पटरी-कानून) के मुताविक १३ वर्ष से कम उम्र के बच्चों को केवल ६ घन्टे काम करने की इजाजत दी। सरकारी तौर पर .. 1 इंगलैण्ड की फैक्टरियों में काम करने वाली स्त्रियों और बच्चों के श्रम के घण्टों को पुरुष मजदूरों ने पूंजी से जबर्दस्ती कम कराया था। परन्तु इस महत्वपूर्ण तथ्य के बिल्कुल विपरीत “Children's Employment Commission" ('बाल-सेवायोजन प्रायोग') की सबसे ताजा रिपोर्टों में बच्चों की खरीद-फरोख्त के सम्बंध में मजदूर मां-बापों में कुछ ऐसी प्रवृत्तियों का प्रमाण मिलता है, जिनको देखकर सचमुच बहुत ग्लानि होती है और जो गुलामों का व्यापार करने वालों की प्रवृत्तियों से बिल्कुल मिलती हैं। परन्तु इन्हीं रिपोर्टों से यह भी पता चलता है कि बगुलाभगत पूंजीपति इस पाशविकता की निन्दा करने में कभी नहीं हिचकिचाता, जिसे खुद उसी ने पैदा किया है, जिसको वह सदा कायम रखता है, जिससे वह लाभ उठाता है और, इसके अतिरिक्त , जिसको उसने "श्रम की स्वतंत्रता" का सुन्दर नाम दे रखा है। “वे खुद अपनी रोटी कमाने तक के लिए भी... शिशु-श्रम की सहायता लेते हैं। इन बच्चों में इतनी शक्ति नहीं होती कि वयस्कों के योग्य इस मेहनत को बर्दाश्त कर सकें, अपने भावी जीवन के लिए उनको किसी से शिक्षा नहीं मिलती, इसलिए वे भौतिक और नैतिक दृष्टि से एक दूषित परिस्थिति में डाल दिये गये हैं। एक यहूदी इतिहासकार ने टाइटस द्वारा जेरुसलम को जीत लेने की चर्चा करते हुए लिखा है कि जब हम यह देखते हैं कि जेरुसलम की एक निर्दयी मां ने सर्वभक्षी भूख को संतुष्ट करने के लिए खुद अपनी सन्तान की बलि दे दी थी, तब हमें इस बात पर कोई पाश्चर्य नहीं होता कि जेरुसलम को इस बुरी तरह नष्ट कर दिया गया। ("Public Economy Concentrated" l' aroufars fara at ara'], Carlisle, 1833, पृ०६६।) 'ए. रेव ; “Rep. of. Insp. of Fact., 31st Oct., 18581 ('फैक्टरियों के इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट, ३१ अक्तूबर १८५८'), पृ० ४०, ४१। . -
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