पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/४४७

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पूंजीवादी उत्पादन . नहीं पड़ता कि इस श्रम का कितना भाग मजदूरों की मजदूरी पर सहमा है और कितना पूंजीपति का अतिरिक्त मूल्य बन गया है। इसलिए, मशीन की लागत यदि उस मम-शक्ति की लागत के बराबर है, जिसका वह स्थान ले लेती है, तो भी उसमें मूर्त हुमा भम उस पीवित श्रम से बहुत कम होता है, जिसका वह मशीन स्थान ले लेती है।' केवल पैदावार को सस्ता करने उद्देश्य से मशीनों का उपयोग इस तरह सीमित हो जाता है कि ये मशीनें जिस श्रम का स्थान लेंगी, उनको पैरा करने में उससे कम मम सर्च होना चाहिए। किन्तु पूंजीपति के लिए तो यह उपयोग और भी सीमित हो जाता है। वह श्रम की कीमत नहीं देता, बल्कि केवल उस भम-शक्ति का मूल्य देता है, जिससे वह काम लेता है। इसलिए वह किसी मशीन का कितना उपयोग कर पायेगा, यह इस बात से सीमित हो जाता है कि मशीन के मूल्य में और वह जिस श्रम-शक्ति का स्थान ले लेती है, उसके मूल्य में कितना अन्तर है। चूंकि दिन भर के काम का पावश्यक श्रम तथा प्रतिरिक्त श्रम में विभाजन अलग-अलग देशों में और यहां तक कि एक ही देश में अलग-अलग कालों में या उद्योग की अलग-अलग शालाओं में अलग-अलग ढंग से होता है और, इसके अलावा, मजबूर की वास्तविक मजबूरी एक समय उसकी मम-शक्ति के मूल्य के नीचे गिर जाती है और दूसरे समय उसके ऊपर उठ जाती है, इसलिए मशीन को तैयार करने के लिए जितना भम पावश्यक होता है और वह कुल जितने श्रम का स्थान ले लेती है, उनका अन्तर स्थिर रहते हुए भी यह मुमकिन है कि मशीन के मूल्य तथा जिस श्रम-शक्ति की जगह वह मशीन लेती है, उस भम-शक्ति के मूल्य का यह अन्तर बहुत घटता-बढ़ता रहे। परन्तु कोई माल तैयार करने में पूंजीपति को कितनी लागत लगानी पड़ती है, यह केवल इसी अन्तर से निर्धारित होता है, और यह प्रतियोगिता के दबाव के बरिये उसके प्राचरण को प्रभावित करता है। इसीलिए पानकल इंगलैग में जिन मशीनों का प्राविष्कार हो रहा है, वे केवल उत्तरी अमरीका में इस्तेमाल की जाती है। यह उसी तरह की बात है, जैसे सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दियों में बर्मनी में जिन मशीनों का माविष्कार होता था, वे केवल हालेख में इस्तेमाल की जाती थी, और अगरहवीं शताब्दी के बहुत से फांसीसी पाविष्कारों से केवल इंगलैण्ड में ही लाभ उठाया गया था। पुराने देशों में जब उद्योग की किन्हीं शालाओं में मशीनों का इस्तेमाल होने लगता है, तो वह दूसरी शालाओं में मम का ऐसा प्राधिक्य पैदा कर देता है कि इन शालाओं में मजदूरी भम-शक्ति के मूल्य के नीचे गिर जाती है और इस वजह से मशीनों का उपयोग करना कठिन हो जाता है, और पूंजीपति के दृष्टिकोण से, जिसका मुनाफा तमाम श्रम में कमी करके नहीं, बल्कि केवल उस श्रम में कमी करके पैदा होता है, जिसकी उसे क्रीमत देनी पड़ती है, मशीनों का उपयोग करना अनावश्यक और प्रासर असम्भव हो जाता है। इंगलैड में ऊनी उद्योग की कुछ शालाओं में बच्चों को नौकर रखने के सम्बन्ध में के में काफी कमी आ गयी है और कहीं-कहीं तो बच्चों का नौकर रखा जाना एकदम बन्द हो - "ये मूक साधन (मशीनें) जिस श्रम का स्थान ले लेते हैं, वे सदा उससे कहीं कम श्रम की पैदावार होते हैं, यहां तक कि जहां दोनों का मुद्रा-मूल्य बराबर होता है, वहां पर भी यही बात होती है।" (Ricardo, उप० पु०, पृ० ४०।) 'इसीलिए पूंजीवादी समाज में मशीनों के उपयोग की जितनी सम्भावना हो सकती है, साम्य- वादी समाज में उससे बहुत भिन्न प्रकार की सम्भावना होगी। 1