४४२ पूंजीवादी उत्पादन यह बात स्पष्ट है कि वहां पर किसी मशीन को तैयार करने में उतना ही मन लग जाता है, जितना श्रम उस मशीन का उपयोग करने से बचता है, वहां पर मम के स्थान- परिवर्तन के सिवा और कुछ नहीं होता। इसीलिये उससे किसी माल को तैयार करने के लिये मावश्यक कुल श्रम में कोई कमी नहीं पाती और न ही मन की उत्पादकता में कोई वृद्धि होती है। किन्तु यह बात स्पष्ट है कि किसी मशीन में जितना मन लगता है और उससे जितने श्रम की बचत होती है, इन दोनों का अन्तर, अर्थात् उसकी उत्पादकता इस बात पर निर्भर नहीं करती कि उसके अपने मूल्य में और जिस प्रोवार का वह स्थान ले लेती है, उसके मूल्य में कितना अन्तर है। जब तक किसी मशीन पर खर्च किया गया मम और चुनाचे उसके मूल्य का वह भाग, जो पैदावार में गुरु जाता है, उस मूल्य से कम रहता है, जो मजबूर अपने प्राचार से पैदावार में जोड़ देता था, तब तक मशीन के उपयोग से भम की सवा कुछ न कुछ बचत ही होती है। इसलिये किसी भी मशीन की उत्पादकता उस मानव-श्रम-शक्ति से नापी जाती है, जिसका वह मशीन स्थान ले लेती है। मि. बेन्स के हिसाब के अनुसार, तैयारी करने वाली मशीनों सहित ४५० म्यूल-तकुमों के लिये, बो एक प्रश्व-शक्ति के द्वारा चलाये जाते हैं, २१/२ मजदूरों की मावश्यकता होती है। प्रत्येक self-acting mule spindle (स्वचालित म्यूल-तकुमा) १० घन्टे काम करके (पोसत नम्बर या मोटाई का) १३ प्रॉस सूत तैयार करता है। इसलिये २ १/२ मजबूर हर हफ्ते ३६५ ५/८ पौष सूत कात देते हैं। प्रतएव, यदि काम के दौरान में वाया हो जाने वाली कपास की मोर ध्यान न दिया जाये, तो ३६६ पौस कपास सूत में बदले जाने के दौरान में केवल १५० घन्टे के मम का-पानी बस घण्टे रोजाना के हिसाब से केवल १५ दिन के भम का ही प्रवशोषण करती है। लेकिन यदि पर्चा इस्तेमाल करने पर मान लीजिये कि कोई हाप से कताई करने वाला मजदूर साठ घण्टे में तेरह प्राँस सूत तैयार करता है, तो वही ३६६ पाँउ कपास बस घन्टे रोजाना के हिसाब से २,७०० दिन के-या २७,००० घण्टे के-श्रम का अवशोषण करेगी छीट की छपाई (block-printing) का पुराना तरीका ठप्पों के बरिये हाथ से पाई करने का वा। जहां . 1 ने अपने दार्शनिकों के रूप में बेकन और होम्स का समर्थन किया था, जब कि बाद के काल में इंगलैण्ड, फ्रांस और इटली में लॉक को अर्थशास्त्र का rurkoriv (सर्वश्रेष्ठ) दार्शनिक माना जाता था। एस्सेन के व्यापार मंडल की वार्षिक रिपोर्ट (१८६३) के अनुसार, कुप्प के ढलवां इस्पात के कारखाने में, जिसमें १६१ भट्ठियां, बत्तीस भाप के इंजन (१८०० में लगभग कुल इतने ही भाप के इंजन पूरे मानचेस्टर में काम कर रहे थे), चौदह भाप के हथौड़े (जो कुल १,२३६ अश्व-शक्ति का प्रतिनिधित्व करते थे), उनचास भट्ठियां, २०३ यांत्रिक प्रोषार पोर लगभग २,४०० मजदूर थे, १८६२ में कुल १ करोड ३० लाख पौण्ड ढलवां इस्पात तैयार हुमा था। यहां एक प्रश्व-शक्ति के पीछे दो मजदूर भी नहीं होते। 'वेज का अनुमान है कि जावा में केवल कताई का श्रम कपास के मूल्य में ११७ प्रतिशत की वृद्धि कर देता है। इसी काल (१८३२) में महीन सूत के उद्योग में मशीनों ने और श्रम ने कुल मिलाकर कपास में जो मूल्य जोड़ा था, वह कपास के मूल्य के लगभग ३३ प्रतिशत के बराबर बैठा था। ("On the Economy of Machinery" ['मशीनों की प्रर्ष-प्रणाली के विषय में'], London, 1832, पृ० १६५, १६६।) -
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