पूंजीवादी उत्पादन । मम के मौसार, अर्थात् मशीनें और मशीनों की संहतियां इतने अधिक मूल्य से लबी होती है कि रस्तकारियों और हस्तनिर्मागों में इस्तेमाल होने वाले प्रोवारों का उनसे कोई मुकाबला हो ही नहीं सकता। सब से पहली बात, जिसकी पोर हमें ध्यान देना चाहिये, यह है कि मशीनें भम-प्रक्रिया में सदा पूरी की पूरी प्रवेश करती हैं, पर मूल्य पैदा करने की प्रक्रिया में वे बोड़ा-पोड़ा करके प्रवेश करती हैं। वे घिसाई-छिनाई के फलस्वरूप प्रोसतन जितना मूल्य खो देती है, उससे अधिक मूल्य कमी पैदावार में नहीं जोड़तीं। इसलिये, किसी मशीन के मूल्य में और वह मशीन किसी निश्चित समय में जितना मूल्य पैदावार में स्थानांतरित कर देती है, उसमें बहुत बड़ा अन्तर होता है। श्रम-प्रक्रिया में मशीन के जीवन की अवधि जितनी लम्बी होती है, उतना ही यह अन्तर भी अधिक होता है। जैसा कि हम पर भी देख चुके हैं, यह निस्सन्देह सब है कि मम का प्रत्येक पोबार मम-क्रिया में पूरे का पूरा प्रवेश करता है, मगर मूल्य पैदा करने की मिया में वह केवल घोड़ा-पोड़ा करके और घिसाई-छिनाई के फलस्वरूप होने वाली अपनी अौसत दैनिक पति के अनुपात में ही प्रवेश करता है। लेकिन समूचे उपकरण और उसकी दैनिक घिसाई-छिजाई का यह अन्तर साधारण पौवार की अपेक्षा मशीन में कहीं ज्यादा होता है, क्योंकि एक तो मशीन स्थावा टिकाऊ पदार्थ की बनी हुई होने के कारण अधिक समय तक चलती है। दूसरे, उसका उपयोग विशुद्ध वैज्ञानिक नियमों द्वारा नियंत्रित होने के कारण उसके कल-पुत्रों की घिसाई कम होती है और उसके द्वारा उपभोग की जाने वाली सामग्री में मितव्ययिता होती है। और अन्तिम बात यह कि उसका उत्पादन का क्षेत्र प्राचार के क्षेत्र की तुलना में कहीं अधिक बड़ा होता है। चाहे मशीन हो और चाहे पोबार हो, यदि हम इसका हिसाब लगा लेते हैं कि उनकी मौसत दैनिक लागत कितनी बैठती है,-मानी ने अपनी पोसत रैनिक पिसाई के द्वारा कितना मूल्य उत्पादन में स्थानांतरित कर देते हैं, और यह भी समझ लेते हैं कि तेल, कोपला प्रावि सहायक पदार्थ खर्च करते हैं, उनपर कितन वर्ष होगा, तो उसके बार मशीन या प्रोवार अपना काम क उन शक्तियों की भांति मुक्त करते हैं, जिनको प्रकृति मनुष्य की सहायता के बिना प्रस्तुत कर देती है। प्राचार की तुलना में मशीनों की उत्पादक शक्ति जितनी अधिक होती है, प्राचार की अपेक्षा वे उतनी ही स्यादा मुक्त सेवा करती हैं। माधुनिक उद्योग में मनुष्य पहली बार अपने पिछले श्रम की पैदावार से बड़े पैमाने पर प्रकृति की शक्तियों की भांति मुफ्त काम कराने में सफल हुमा है। 9 मशीनों के इस प्रभाव पर रिकारों ने इतना अधिक जोर दिया है (हालांकि अन्य बातों में वह श्रम-प्रक्रिया और अतिरिक्त मूल्य पैदा करने की क्रिया के सामान्य अन्तर की भोर जितना अधिक ध्यान देते हैं, उन्होंने उससे अधिक ध्यान मशीनों की प्रोर नहीं दिया है ) कि कभी-कभी तो जो मूल्य मशीनें पैदावार को समर्पित कर देती है, वह उनकी दृष्टि से मोझल हो जाता है, और वह मशीनों को प्राकृतिक शक्तियों की हैसियत दे देते हैं। चुनांचे उन्होंने लिखा है : “प्राकृतिक शक्तियां और मशीनें हमारी जो सेवाएं करती है, ऐडम स्मिथ उनका महत्त्व कहीं पर भी कम करके नहीं मांकते ; लेकिन वे जो मूल्य मालों में जोड़ती है, स्मिथ उसके स्वरूप में जरूर फ़र्क करते है, जो उचित ही है . ये शक्तियां चूंकि अपना काम मुफ्त करती है, इसलिये वे हमें बो मदद देती है, उससे विनिमय-मूल्य में कोई वृद्धि नहीं होती।" (Ricardo, उप० पु.., पृ. ३३६, ३३७1) रिकार्गे का यह मत . - - 2
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