पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/४३८

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मशीनें और आधुनिक उद्योग . . है, शीघ्र ही असहनीय बापायें बन गये। इसलिये, समुद्र में चलने वाले बाप-जलपोतों की बनावट में गो मूलभूत परिवर्तन किये गये, उनके अलावा. नदियों में चलने वाले स्टीमरों, रेलों और समुद्र में चलने वाले वाप-जलपोतों की एक पूरी व्यवस्था और तार-प्रणाली के जन्म से संचार और परिवहन के साधन धीरे-धीरे यांत्रिक उद्योग की उत्पादन पद्धतियों के अनुरूप बन गये। लेकिन अब लोहे की जिन भारी राशियों को गढ़ना, जोड़ना, काटना, बरमाना और डालना पड़ता था, उनके लिये दैत्याकार मशीनों की पावश्यकता हुई, जिनको बनाने के लिये हस्तनिर्माण के काल के तरीके सर्वषा अपर्याप्त । चुनांचे, माधुनिक उद्योग को उत्पादन अपने इस विशिष्ट प्रोबार को-अर्थात् मशीन को -खुद अपने हाथ में लेना पड़ा और मशीनों के द्वारा मशीनें बनानी पड़ीं। जब तक उसने यह नहीं किया, तब तक वह अपने लिये एक समुचित प्राविधिक भाषार नहीं तैयार कर पाया और न अपने पैरों पर ही खड़ा हो पाया। घर मशीनों का उपयोग बढ़ता गया, उपर उसी के साथ-साप वर्तमान शताब्दी के शुरू के बीस-तीस वर्षों में मशीनों ने धीरे-धीरे मशीनों के निर्माण पर भी अधिकार कर लिया। लेकिन यह बात १८६६ के पहले के दस वर्षों में ही देखने में पायी कि रेलों और समुद्र में चलने वाले जहाजों का बहुत ही बड़े पैमाने पर निर्माण करने के लिये बैत्याकार मशीनें तैयार होने लगी, जो मानकल मूल चालकों के निर्माण में इस्तेमाल होती है। मशीनों द्वारा मशीनें तैयार करने के लिये सबसे अधिक खरी बीच यह थी कि कोई ऐसा मूल चालक मिले, जो किसी भी मात्रा में बल का प्रयोग कर सके और फिर भी को पूरी तरह नियंत्रण में रहे। भाप के इंजन ने यह बात पहले ही से पूरी कर दी थी। लेकिन इसके साथ-साथ मशीनों के तफसीली हिस्सों के लिये पावश्यक, रेखागणित की दृष्टि से बिल्कुल नपी-तुली सीवी रेखाएं, समतल, वृत, बेलन, कोन और गोले बनाने की प्रावश्यकता थी। यह समस्या हेनरी मौस्ले ने इस शताब्दी के पहले दशक में slide rest (फिसलने वाले माघार) का प्राविष्कार करके हल कर दी। यह पोबार शीघ्र ही स्वचालित बना दिया गया, और खराब के अलावा, जिसके लिये वह शुम्पाक में बनाया गया था, वह कुछ संशोषित रूप में कतिपय अन्य निर्माणकारी मशीनों में भी इस्तेमाल होने लगा। यह यांत्रिक उपकरण किसी विशेष प्रोबार का नहीं, बल्कि खुद पादमी के हाथ का स्थान ले लेता है। प्रावमी का हाप काटने वाले पौवार को पकड़कर उसकी चार लोहे या अन्य किसी पदार्थ से लगाता था और इस तरह उस पदार्य को कोई निश्चित रूप दे देता था। अब यह कामः यह यांत्रिक उपकरण करने लगता है। इस प्रकार, मशीनों के अलग-अलग हिस्सों को "इतनी प्रासानी और फुर्ती के साथ और इतने नपे-सुले ढंग से" बनाया जाने लगा, "जिसका अधिक से अधिक निपुण मजदूर के हाथ में संचित अनुभव भी मुकाबला नहीं कर सकता था।" . . 1 "The Industry of Nations" ('राष्ट्रों का उद्योग'), London, 1855, भाग २, पृ. २३९ । इस पुस्तक में यह भी लिखा है : "बरादों में लगा यह उपकरण ऊपर से चाहे जितना सरल और महत्त्वहीन प्रतीत होता हो, पर हमारा विचार है कि यदि हम यह कहें, तो कोई अतिशयोक्ति न होगी कि मशीनों के उपयोग का सुधार तथा विस्तार करने में इस उपकरण ने उतना ही प्रभाव गला है, जितना खुद भाप के इंजन में वाट्ट के किये सुधारों ने गला था। उसका इस्तेमाल होने पर सभी मशीनें तुरन्त ही पहले से अच्छी बन गयीं, सस्ती हो गयीं और माविष्कार तथा सुधार को बहुत प्रोत्साहन मिला।