पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/४३६

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मशीनें और माधुनिक उद्योग ४३३ सड़ी हुई थी। जब इस व्यवस्था का एक खास हद तक विकास हो गया, तो उसे इस नींव को, जो उसे पहले से तैयार मिली थी और वो इस बीच पुराने ढरें पर ही विकसित हो गयी थी, उतार देना पड़ा और अपने लिये खुद एक ऐसा भाषार तैयार करना पड़ा, बो उसके उत्पादन के तरीकों के अनुरूप था। जिस प्रकार जब तक मशीन केवल मनुष्य की शक्ति से ही चलती है, तब तक वह वामनाकार बनी रहती है, और जिस प्रकार जब तक प्राचीन काल की चालक शक्तियों का स्थान -अर्थात् पशुओं, हवा और यहां तक कि पानी का भी स्थान-भाप के इंजन में नहीं ले लिया, तब तक मशीनों को किसी भी संहति का अच्छी तरह विकास नहीं हो सका, उसी प्रकार जब तक माधुनिक उद्योग के उत्पादन के विशिष्ट साधन - मशीन -का अस्तित्व व्यक्तिगत बल और व्यक्तिगत निपुणता पर निर्भर था और जब तक उसका अस्तित्व हस्तनिर्माणों में तफसीली काम करने वाले मजदूरों और बस्तकारियों के हाथ से काम करने वाले कारीगरों की मांस-पेशियों के विकास, दृष्टि की तीक्ष्णता और अपने वामनाकार पोखारों से काम करने में उनकी हापं की सफाई पर निर्भर करता था, तब तक माधुनिक उद्योग के पूर्ण विकास को मानो लकवा मारे रहा। इस तरह वो मशीनें बनायी जाती थी, वे बहुत महंगी पड़ती थी, और यह एक ऐसी बात है, जिसका पूंजीपति को हमेशा खयाल रहता है। पर इसके अलावा यह बात मी साफ है कि मशीनों का इस्तेमाल करने वाले उद्योगों के विस्तार की और उत्पादन के नये क्षेत्रों पर मशीनों की पढ़ाई की सफलता इस बात पर निर्भर करती थी कि मजदूरों के एक खास वर्ग की संस्था में कितनी वृद्धि होती है, जब कि यह बाल वर्ग अपने बंधे के लगभग कलापूर्ण स्वल्प के कारण अपनी संख्या को एक ही झटके में नहीं, केवल धीरे-धीरे ही बढ़ा सकता था। इतना ही नहीं, विकास की एक विशेष अवस्था पर पहुंचकर प्राधुनिक उद्योग प्रौद्योगिक दृष्टि से उस प्राधार के साथ मेल नहीं ला पाया, जो बस्तकारी तथा हस्तनिर्माण ने उसके लिये तैयार किया था। मूल चालकों का, संचालक यंत्रों का और अब मशीनों का प्राकार बढ़ता गया। ये मशीनें जितनी ही हाप के श्रम से बनायी गयी उन प्राविम मशीनों के नमूनों से भिन्न होती गयीं और जितनी ही वे एक ऐसा रूप धारण करती गयीं, जो कार्य की परिस्थितियों के सिवा मोर किसी बात से प्रभावित नहीं होता, उनके छोटे-छोटे हिस्सों की जटिलता, अनेकरूपता और . शक्ति से चलने वाला करपा पहले मुख्यतया लकड़ी का बनाया जाता था। अपने सुधरे हुए रूप में वह लोहे का बनाया जाता है। उत्पादन के औजारों के पुराने रूप शुरू-शुरू में अपने नये रूपों को कितना अधिक प्रभावित करते थे, यह बात अन्य चीजों के अलावा शक्ति से चलने वाले मौजूदा करघे की पुराने करघे के साथ बहुत ही सतही ढंग से तुलना करने पर भी देखी जा सकती है। यह बात हवा-भट्ठी को धौंकने वाले आधुनिक यंत्र का साधारण धौंकनी की उस प्रथम निकम्मी यांत्रिक पुनरावृत्ति से मुकाबला करने पर भी स्पष्ट हो जाती है; और इस बात पर सबसे अधिक प्रकाश शायद उन कोशिशों से पड़ता है, जो रेल के वर्तमान इंजन का प्राविष्कार होने के पहले एक ऐसा इंजन बनाने के लिये की गयी थी, जिसके दो पैर ऐसे हों, जिनको वह घोड़े की तरह बारी-बारी से जमीन से उठा सके। जब यांत्रिकी के विज्ञान का काफ़ी विकास हो जाता है और बहुत सारा व्यावहारिक अनुभव इकट्ठा हो जाता है, केवल तभी किसी मशीन का रूप पूरी तरह यांत्रिक सिद्धान्तों के अनुसार तै हो पाता है और केवल तभी वह उस प्रौजार के परम्परागत रूप से मुक्त हो पाती है, जिसने उसको जन्म दिया है। . 28-45