श्रम का विभाजन और हस्तनिर्माण ४०१ . . लेकिन, समान में पाये जाने वाले भम-विभाजन और एक वर्कशाप के भीतर पाये जाने वाले सम-विभाजन के बीच वो बहुत सी समानताएं और सम्बंध विताई देते हैं, उन सब के बावजूद ये दोनों न केवल मात्रा में, बल्कि मूल प्रकृति में भी भिन्न होते हैं। दोनों का सादृश्य सबसे अधिक निर्विवाद रूप में वहां सामने प्राता है, जहां व्यवसाय की विभिन्न शालाएं एक प्रवृत्य सम्बंध से पड़ी होती हैं। उदाहरण के लिए, होर पालने वाला सालें तैयार करता है, चमड़ा पकाने वाला सालों से चमड़ा तैयार करता है और मोची चमड़े के जूते बनाता है। यहां पर प्रत्येक बो वस्तु तैयार करता है, उसे बनाकर वह केवल उसके अन्तिम रूप की पोर एक कदम उठाता है, और यह अन्तिम रुप सब के संयुक्त मम की पैदावार होता है। इसके अलावा, वे तमाम उद्योग भी हैं, जो डोर पालने वाले, चमड़ा पकाने वाले और मोची को उत्पादन के साधन उपलब्ध कराते हैं। अब ऐग्म स्मिथ की तरह हम भी बड़ी प्रासानी से यह कल्पना कर सकते हैं कि उपर्युक्त सामाविक प्रम-विभाजन और हस्तनिर्माण में पाये जाने वाले भम-विभाजन का अन्तर केवल एक मनोगत अन्तर है, जिसका अस्तित्व केवल वर्शक के लिए ही है। हस्तनिर्माण में वर्शक एक दृष्टि में तमाम क्रियाओं को एक ही स्थान में सम्पन्न होते हुए देख सकता है, जब कि पर जो उदाहरण दिया गया है, उसमें काम चूंकि बहुत लम्बे-चौड़े क्षेत्र में फैला हुमा होता है और श्रम की प्रत्येक शाखा में चूंकि लोगों की एक बड़ी संख्या काम करती है, इसलिए इन शालाओं का सम्बंध प्रांतों से मोझल हो जाता है। लेकिन डोर पालने वाले, चमड़ा पकाने वाले और मोची के स्वतंत्र प्रमों को जोड़ने वाली क्या चीख है? वह यह तय है कि इन सब की अलग-अलग पैदावार माल होती है। दूसरी मोर, हस्तनिर्माण में पाये जाने वाले श्रम-विभाजन का खास लमण बनने वाली क्या चीज होती है? यह तय कि तफ़सीली काम करने वाला मजदूर कोई माल तैयार नहीं करता।' तफसीली काम . 1 ऐडम स्मिथ ने कहा है कि जिसे सचमुच हस्तनिर्माण कहा जा सकता है, उसमें इसलिए अधिक श्रम-विभाजन मालूम पड़ता है कि "जो लोग काम की अलग-अलग शाखामों में नौकर रखे जाते हैं, वे अक्सर एक ही वर्कशाप में इकट्ठा किये जा सकते हैं और तुरन्त दर्शक की निगाह के सामने लाये जा सकते हैं। इसके विपरीत, उन बड़े-बड़े हस्तनिर्माणों में (!), जिनको अधिकतर लोगों की अधिकतर आवश्यकताओं को पूरा करना है, काम की प्रत्येक अलग-अलग शाखा में इतनी बड़ी संख्या में मजदूरों को नौकर रखा जाता है कि उन सब को एक वर्कशाप में इकट्ठा करना असम्भव होता है ... इनमें विभाजन इतना स्पष्ट नहीं होता।" (A. Smith, “Wealth of Nations" [ऐ० स्मिय, 'राष्ट्रों का धन'], पुस्तक १, अध्याय ११) इसी अध्याय का वह प्रसिद्ध अंश, जो इन शब्दों के साथ भारम्भ होता है कि "किसी सभ्य तथा समृद्ध देश में किसी अत्यन्त साधारण कारीगर या दिन-मजदूर के निवास स्थान को देखिये", इत्यादि, और जिसमें आगे चलकर यह वर्णन मिलता है कि एक साधारण मजदूर की मावश्यकताओं को पूरा करने में विभिन्न प्रकार के कितने अधिक उद्योग भाग लेते हैं,- यह पूरा अंश लगभग शब्दशः बी० दे Hat mit "Fable of the Bees, or Private Vices, Public Benefits” ('मधु-मक्खियों की उपकथा, अथवा निजी व्यसन, सार्वजनिक लाभ') में उनकी "टिप्पणियों" से लिया गया है (पहला संस्करण, बिना टिप्पणियों के, १७०६ ; टिप्पणियों सहित , १७१४)। 'अब कोई ऐसी चीज नहीं रह जाती , जिसे हम व्यक्तिगत श्रम का स्वाभाविक पुरस्कार कह सकें। अब तो प्रत्येक मजदूर एक पूरी इकाई का कोई न कोई भाग पैदा करता है, और 26-45
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