पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/४०३

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४०० पूंजीवादी उत्पादन . » अधिकाधिक बढ़ता जाता है। यदि किसी ऐसे उद्योग पर, जो पहले अन्य उद्योगों के साप सम्बंषित अवस्था में-या तो एक प्रमुख या एक गोल उद्योग के रूप में-किसी एक उत्पादक के द्वारा चलाया जाता था, हस्तनिर्माण-प्रणाली का अधिकार हो जाता है, तो इन उद्योगों का पारस्परिक सम्बंध तत्काल ही टूट जाता है और वे एक दूसरे से स्वतंत्र हो जाते हैं। यदि यह प्रणाली किसी माल के उत्पावन की किसी एक खास अवस्था पर अधिकार कर लेती है, तो उसके उत्पादन की बाकी अवस्थाएं स्वतंत्र उद्योगों में बदल जाती है। हम पहले ही यह कह चुके हैं कि जहां तैयार वस्तु महन मापस में जोड़ दिये गये कई-एक भागों की बनी होती है, वहां पर तफसीली काम खुब पुनः सचमुच अलग-अलग वस्तकारियों का रूप धारण कर सकते हैं। हस्तनिर्माण में श्रम-विभाजन को और अच्छी तरह कार्यान्वित करने के लिए उत्पादन की कोई एक शाला उसके कच्चे माल के विभिन्न प्रकारों के अनुसार अथवा एक ही कच्चे माल द्वारा धारण किये गये विभिन्न रूपों के अनुसार बहुत से और कुछ हद तक तो सर्वथा नये हस्तनिर्माणों में बांट दी जाती है। चुनांचे, अकेले फ्रांस में १८ वीं सदी के पूर्वार्ड में १०० अलग-अलग प्रकार के रेशमी कपड़े बुने जाते थे, और एविग्नान में तो यह कानून लागू पा कि "हर शागिर्द को केवल एक किस्म का कपड़ा तैयार करना सीखना चाहिए और उसे एक साथ कई किस्म के कपड़े तैयार करना नहीं सीखना चाहिए। श्रम के क्षेत्रीय विभाजन को, जो उत्पादन की कुछ खास शाखामों को देश के कुछ खास जिलों तक सीमित कर देता है, हस्तनिर्माण की प्रणाली से नया प्रोत्साहन प्राप्त होता है, क्योंकि यह प्रणाली हर प्रकार की विशेष सुविधा से लाभ उठाती है। हस्तनिर्माण के युग के लिए जिन सामान्य परिस्थितियों का होना मावश्यक है, उनमें औपनिवेशिक व्यवस्था तथा दुनिया की मणियों का खुल जाना भी शामिल हैं, और इन दोनों ही बातों से समाज में श्रम-विभाजन के विकास को बहुत मदद मिलती है। यहां हम इस बात पर पूरी तरह विचार नहीं कर सकते कि मम-विभाजन किस प्रकार न केवल पार्षिक क्षेत्र पर, बल्कि समाज के अन्य तमाम क्षेत्रों पर भी अधिकार कर लेता है और हर जगह वह किस तरह भादमियों को छांटने और उनका विशिष्टीकरण करने और मनुष्य को अन्य तमाम क्षमताओं को नष्ट करके उसकी केवल एक समता का विकास करने की सर्वग्राही प्रणाली की नींव गलता है, जिसे देखकर ही ऐग्न स्मिथ के गुरू ए० फर्गुसन ने यह कहा था कि "हमारी कोम गुलामों की क्रोम बन गयी है, और हमारे यहां कोई स्वतंत्र नागरिक नहीं है।" चुनांचे बुनकरों की परकियां बनाना १७ वीं सदी में ही हालैण्ड के उद्योग की एक विशेष शाखा बन गया था। 'क्या इंगलैण्ड का ऊनी हस्तनिर्माण कई-एक ऐसे हिस्सों या शाखामों में नहीं बंट गया है, जिनपर उन खास स्थानों का अधिकार हो गया है, जहां केवल अथवा मुख्यतया उसी प्रकार का सामान तैयार होता है, जैसे सोमरसेटशायर में महीन कपड़े, योर्कशायर में मोटा कपड़ा, एकसटर में लम्बा कपड़ा, सडबरी में स्वा नामक कपड़ा, नौरविक में केप, केण्डल में सूत के ताने और ऊन के बाने का कपड़ा, व्हिटनी में कम्बल और उसी तरह अन्य प्रकार के कपड़े अन्य स्थानों में तैयार होते है।" (Berkeley, "The Querist" [वर्कले, 'प्रश्नकर्ता'], 1750, पैराग्राफ़ ५२०।) A. Ferguson, History of Civil Society" (ए. फर्गुसन, 'सभ्य समाज का इतिहास'), Edinburgh, 1767, भाग ४, अनुभाग २, पृ० २८५। 1 -