पूंजीवादी उत्पादन मूल्प होना चाहिये। प्रतएव, हस्तनिर्माण में भम-पाक्तियों का एक भेणी-कम विकसित हो जाता है, जिसके अनुरूप मजबूरियों का भी एक कम होता है। यदि, एक मोर, अलग-अलग मजबूर पूरे जीवन के लिये एक सीमित डंग के काम के लिये बात हो जाते हैं, तो, दूसरी मोर, भेगी-कम की अलग-अलग क्रियाएं मजदूरों की स्वाभाविक तथा उपार्जित , दोनों प्रकार की ममतामों के अनुसार उनमें बांट दी जाती है। किन्तु उत्पादन की प्रत्येक क्रिया में कुछ ऐसे सरल काम भी होते हैं, जिनको करने की क्षमता हर पादमी में होती है। पर अब इन कामों का भी क्रियाशीलता के अपेक्षाकृत अधिक सारगर्मित क्षणों से सम्बन्ध विच्छेद हो जाता है और खास तौर पर नियुक्त किये गये मजदूरों के विशिष्ट काम बनकर रह जाते हैं। इसलिये हस्तनिर्माण जिस बस्तकारी पर भी अधिकार कर लेता है, उसी में वह तथाकषित पनिपुण मजदूरों का एक वर्ग पैदा कर देता है, जब कि बस्तकारी में इस वर्ग के लिये कभी कोई स्थान नहीं होता था। यदि हस्तनिर्माण प्रावनी की सम्पूर्ण कार्य-शक्ति को खतम करके उसकी एकांगी विशेषता को पूर्णतया विकसित कर देता है, तो उसके साथ-साथ वह सभी प्रकार के विकास के प्रभाव को भी एक विशेषता में परिणत करना प्रारम्भ कर देता है। मजदूरों के श्रेणी-कम के साथ-साथ निपुण तथा प्रनिपुण मजदूरों का यह सरल विभाजन भी सामने आता है। मनिपुण मजदूरों के लिये काम सीलने के काल के खर्च की जरूरत नहीं रहती ; निपुण मजदूरों के लिये दस्तकारों की तुलना में यह बर्चा कम हो जाता है, क्योंकि उनके काम पहले से अधिक सरल हो जाते हैं। दोनों पूरतों में श्रम-शक्ति का मूल्य गिर जाता है। जब कभी श्रम-क्रिया के विच्छेदन के फलस्वरूप ऐसे नये और व्यापक काम पैदा हो जाते हैं, जिनका वस्तकारियों में या तो कोई स्थान नहीं पा या पा, तो बहुत कम, तब यह नियम लागू नहीं होता। काम को सोलने की अवधि का खर्चा कम हो जाने या बिल्कुल ग्रायब हो जाने से अम-शक्ति के मूल्य में जो गिराव पाता है, उसका मतलब यह होता है कि पूंजी के हित में अतिरिक्त मूल्य - 1डा. उरे ने अपनी जिस रचना में मशीनों से चलने वाले उद्योग को ईश्वरीय चमत्कार के पद पर पासीन कर दिया है, उसमें उन्होंने हस्तनिर्माण के विशिष्ट स्वरूप की पोर निर्देश करने में अपने से पहले के अर्थशास्त्रियों की अपेक्षा, जिनकी इस विषय का खण्डन-मण्डन करने में डा० उरे जैसी रुचि नहीं थी, अधिक कुशाग्रता का परिचय दिया है और यहां तक कि अपने समकालीन अर्थशास्त्रियों से भी अधिक कुशाग्रता दिखायी है। उदाहरण के लिये बैबेज को ही लीजिये, जो गणितज्ञ तथा यांत्रिकी-विज्ञान के विद्वान के रूप में उरे से श्रेष्ठ हैं, पर जिन्होंने मशीनों से चलने वाले उद्योग की विवेचना केवल हस्तनिर्माण की दृष्टि से की है। उरे ने लिखा है : “प्रत्येक प्रकार के श्रम को समुचित मूल्य तथा लागत का एक मजदूर स्वाभाविक ढंग से मिल जाता है। यह चीज़ श्रम-विभाजन का सार-तत्व है।" दूसरी भोर, उरे ने इस विभाजन को “मनुष्यों की अलग-अलग ढंग की योग्यताओं के अनुरूप श्रम का अनुकूलन" कहा है और अन्त में उन्होंने पूरी हस्तनिर्माण प्रणाली का "श्रम के विभाजन अथवा क्रम-स्थापन की प्रणाली" तथा "निपुणता की अलग-अलग मात्रामों में श्रम के विभाजन" इत्यादि के रूप में वर्णन किया है। (Ure, उप० पु., पृ० १९-२३, विभिन्न स्थानों पर।) 'हर दस्तकार क्योंकि...अब एक काम में अभ्यास द्वारा पारंगत बन सकता है , इसलिये .. वह पहले से सस्ता मजदूर हो जाता है। (Ure, उप० पु०, पृ. १९।)
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