पूंजीवादी उत्पादन . अलग मजदूर की अपने प्राचारों से काम लेने की शक्ति, निपुणता, फुर्ती और बनता पर निर्भर करती है। मापार प्रब भी दस्तकारी का ही रहता है। इस संकुषित प्राविधिक प्राधार के कारण प्रौद्योगिक उत्पादन की किसी भी बास प्रक्रिया का सचमुच कोई वैमानिक विश्लेषण करना असम्भव होता है। कारण कि अब भी यह बात पावश्यक होती है कि पैरावार दिन तफसीली प्रक्रियाओं में से गुजरती है, उनमें से हरेक को इस लाया होना चाहिये कि उसे हाथ से किया जा सके, और उनमें से हरेक प्रक्रिया को अपने ढंग से एक अलग रस्तकारी बन जाने के योग्य होना चाहिये। इस तरह, चूंकि उत्पादन की प्रक्रिया का प्राचार अब भी बस्तकार की निपुणता ही रहती है, इसीलिये हर मजबूर को केवल एक पाक्षिक कार्य जास तौर पर साँप दिया जाता है और उसके बाकी जीवन के लिये उसकी मम-शक्ति इस तफसीली कार्य को सम्पन्न करने का साधन बन जाती है। दूसरी बात यह है कि मम का यह विभाजन एक खास उंग की सहकारिता होता है, और उसकी बहुत सी उपलब्धियां सहकारिता के सामान्य स्वरूप से, न कि उसके इस विशिष्ट रूप से प्राप्त होती है। . अनुभाग २- तफ़सीली काम करने वाला मजदूर और उसके औजार अब यदि हम पोड़े और विस्तार के साथ इस मामले पर विचार करें, तो पहले तो यह बात साफ है कि वो मजबूर अपनी सारी जिन्दगी एक ही सरल सा काम करता रहता है, वह अपने पूरे शरीर को उस काम के एक विशिष्टीकृत एवं स्वसंचालित यंत्र में बदल देता है। चुनांचे, उसे यह काम पूरा करने में उस कारीगर की अपेक्षा कम समय लगता है, वो बहुत से काम बारी-बारी से करता है। लेकिन वह सामूहिक मजदूर, गो हस्तनिर्माण का सजीव यंत्र होता है, केवल इस प्रकार के, तक्रसीली काम करने वाले, विशिष्टीकृत मजदूरों का ही समूह होता है। इसलिये, स्वतंत्र दस्तकारी की अपेक्षा हस्तनिर्माण एक निश्चित समय में अधिक पैदावार तैयार कर देता है, या यूं कहिये कि उसमें श्रम की उत्पादक शक्ति बढ़ जाती है। इसके अलावा, यह पांशिक कार्य जब एक बार एक विशिष्ट व्यक्ति की खास चिम्मेवारी बन जाता है, तब उसमें वो तरीके इस्तेमाल किये जाते हैं, उनका भी पूर्ण विकास हो जाता है। मजदूर चूंकि बारबार वही एक सरल कार्य करता है और उसपर अपना सारा ध्यान केनित किये रहता है, इसलिये उसका अपना अनुभव उसे यह सिता देता है कि कम से कम मेहनत करके मनीष्ट गल्य की प्राप्ति कैसे सम्भव है। लेकिन चूंकि किसी भी एक बात में मजदूरों की कई पीढ़ियां उपस्थित होती है और किसी खास वस्तु के हस्तनिर्माण में साथ मिलकर काम करती है, इसलिये इस तरह को प्राविधिक निपुणता प्राप्त होती है, मजदूर पंधे से सम्बन्धित को गुर सीखते हैं, वे स्थायित्व 1 1"कोई ऐसा हस्तनिर्माण, जिसमें तरह-तरह के काम करने होते है, जितनी अधिक अच्छी तरह विभिन्न कारीगरों में बांट दिया जायेगा,मोर उनको सौंप दिया जायेगा, वह लाजिमी तौर पर उतने ही बेहतर ढंग से होगा, उसमें उतनी ही अधिक फुर्ती विवाई देगी और उतना ही कम वक्त तथा कम श्रम वर्ष होगा।" ("The Advantages of the East India Trader ["ईस्ट इण्डिया के व्यापार के लाभ'], London, 1720, पृ०७१।)
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