सहकारिता ३७३ 14 ही काम इतने ही समय में कराया जाये, तो जितने मजदूरों की प्रावश्यकता होगी, उससे यह संख्या हमेशा कम होगी। इस प्रकार की सहकारिता के प्रभाव का ही यह नतीजा है कि संयुक्त राज्य अमरीका के पश्चिमी भाग में बहुत सारा अनाज और भारत के उन हिस्सों में, जहां अंग्रेजी शासन ने पुराने प्राम-समुदायों को नष्ट कर दिया है, बहुत सारी कपास हर साल बरबाद हो जाती है।' सहकारिता के कारण एक मोर तो अधिक विस्तृत क्षेत्र में काम करना सम्भव होता है, जिसके फलस्वरूप कुछ खास तरह के कामों में सहकारिता नितान्त पावश्यक हो जाती है, जैसे पानी के निकास का बन्दोबस्त करने में, बांध बनाने में, सिंचाई का प्रबंध करने में और नहरें तथा सड़कें बनाने और रेले विछाने में। दूसरी मोर, सहकारिता से उत्पादन का अनुमाप बढ़ाने के साथ-साथ उसके क्षेत्र को अपेक्षाकृत कम करना सम्भव हो जाता है। उत्पादन के अनुमाप को बढ़ाने के साथ-साथ तथा उसके फलस्वरूप उसके क्षेत्र को कम कर देने से बहुत सा अनुपयोगी खर्च बच जाता है। यह सम्भव इसलिये होता है कि बहुत से मजदूर एक जगह इकट्ठा कर दिये जाते हैं, अनेक क्रियाएं एक साथ सम्पन्न हो जाती हैं और उत्पादन के साधन एक जगह संकेन्द्रित कर दिये जाते हैं।' इस काम को (खेती के काम को ) नाजुक क्षण में पूरा कर देने से उतना ही अधिक ar Etat I" ("An Inquiry into the Connection between the present Price of Provisions and the Size of Farms. By a Farmer." ['खाद्य-पदार्थों के मौजूदा दामों और खेतों के आकार के बीच पाये जाने वाले सम्बंध की जांच । एक काश्तकार द्वारा लिखित'], पृ. ६) "खेती में समय से अधिक महत्वपूर्ण और कोई चीज नहीं होती।" (Liebig, "Ueber Theorie und Praxis in der Landwirschaft", 1856, TO 731) ३" अगली बुराई वह है, जिसको हमें एक ऐसे देश में पाने की बहुत ही कम माशा हो सकती है, जो सम्भवतया चीन और इंगलैण्ड के सिवा दुनिया के और किसी भी देश से अधिक श्रम का निर्यात करता है। वह बहुत बुराई यह है कि यहां कपास चुनने के लिये पर्याप्त संख्या में मजदूर पाना असम्भव है। इसका नतीजा यह है कि बड़े भारी परिमाण में फ़सल बिना चुनी रह जाती है, और एक हिस्सा जमीन से उठाया जाता है, जो नीचे गिरकर बदरंग हो जाता है और कुछ हद तक सड़ जाता है। यानी मौसम के वक्त पर्याप्त श्रम न मिलने के कारण काश्तकार को प्रसल में उस फसल के एक बड़े हिस्से से हाथ धोने पड़ते हैं, जिसकी इंगलण्ड इतनी व्यग्रता के साथ प्रतीक्षा कर रहा है।" ("Bengal Hurkaru". Bi-Monthly Overland Summary of News, 22nd July 1861 ['बंगाल हरकारू'। स्थल-मार्ग से पाने वाला समाचारों का द्वैमासिक सारांश, २२ जुलाई १८६१]1) 'कृषि की प्रगति का यह परिणाम हुमा है कि "वह तमाम पूंजी और श्रम, जो पहले ५०० एकड़ में बिखरे रहते थे, और शायद उससे भी ज्यादा प्रब १०० एकड़ की ज्यादा अच्छी तरह जोताई करने के लिये संकेन्द्रित कर दिये जाते हैं।" यद्यपि “जितनी पूंजी और जितने श्रम से काम लिया जाता है, उनकी मात्रा को देखते हुए स्थान छोटा होता है, परन्तु पहले एक अकेला स्वतंत्र उत्पादन-कर्ता उत्पादन के जिस क्षेत्र का स्वामी होता था या वह जिस क्षेत्र पर काम करता था, उसकी तुलना में उत्पादन का क्षेत्र बड़ा हो जाता है।" (R. Jones, "An Essay on the Distribution of Wealth”, part I. "On Rent” [977 o oint, 'धन के वितरण पर एक निबंध,' भाग १, लगान के विषय में'], London, 1831, पृ. १९११)
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