सहकारिता . है, पल्तु यदि मिया में उनके कार्य-क्षेत्र की व्यापकता की दृष्टि से देखा जाये, तो उनका मूल्य अपेक्षाकृत कम होता है। इस कारण स्थिर पूंजी के एक भाग का मूल्य गिर जाता है, और जितना अधिक यह मूल्य गिरता है, उसी अनुपात में माल का कुल मूल्य भी कम हो जाता है। प्रसर उत्पावन के साधनों की लागत कम हो जाने के समान होता है। इन साधनों के इस्तेमाल में बो बचत होती है, उसका एकमात्र कारण यह है कि मजदूरों की एक बड़ी संस्था मिलकर उनका उपयोग करती है। इतना ही नहीं, सामाजिक बम की एक मावश्यक शर्त होने का यह खास गुण, जिसके कारण इन साधनों में और अलग-अलग काम करने वाले स्वतंत्र मजदूरों या छोटे-छोटे मालिकों के बिखरे हुए तथा अपेक्षाकृत अधिक महंगे उत्पादन के साधनों में एक विशेष अन्तर पैदा हो जाता है, यह गुण उस सूरत में भी इन सापनों में मा जाता है, जब एक जगह पर इकट्ठा बहुत से मजदूर एक दूसरे की मदद नहीं करते, बल्कि केवल एक स्थान पर काम करते हैं। श्रम के प्राचारों का एक. भाग जुद अम-प्रक्रिया के पहले ही यह सामाजिक स्वरूप प्राप्त कर लेता है। उत्पादन के साधनों के उपयोग में जो मितव्ययिता बरती जाती है, उसपर दो पहलुमों से विचार करना बरी है। एक तो यह कि उससे माल सस्ते हो जाते हैं और इस तरह मम-शक्ति का मूल्य गिर जाता है। दूसरे यह कि उससे व्यवसाय में लगायी गयी कुल पूंजी के साथ, पानी स्थिर और मस्थिर पूंजी के मूल्यों के जोड़ के साथ, अतिरिक्त मूल्य का अनुपात बदल जाता है। जब तक हम तीसरी पुस्तक पर नहीं पहुंचते; तब तक हम इस दूसरे पहलू पर विचार नहीं करेंगे। वर्तमान प्रश्न से सम्बंधित बहुत सी अन्य बातों को भी हम उसी पुस्तक के लिये छोड़े दे रहे हैं, ताकि वहां पर सही संदर्भ में उनपर विचार कर सकें। हमारा विश्लेषण जिस प्रकार मागे बढ़ रहा है, वह हमें विषय-वस्तु को इस तरह बांट देने के लिये मजबूर कर रहा है, और इस तरह का बंटवारा पूंजीवादी उत्पादन की भावना के सर्वचा अनुरूप है। कारण कि उत्पादन की इस प्रणाली में चूंकि मजदूर को श्रम के प्राचार अपने से स्वतंत्र, और व्यक्ति की सम्पति के रूप में विद्यमान हैं, इसलिये जहाँ तक इस मजदूर का सम्बंध है, इन प्राचारों के उपयोग में जो मितव्ययिता बरती जाती है, वह एक अलग किया होती है, जिसका उससे कोई ताल्लुक नहीं होता और इसलिये जिसका मजदूर की अपनी व्यक्तिगत उत्पादकता को बढ़ाने के तरीकों से भी कोई सम्बंध नहीं होता। जब बहुत से मजदूर इकट्ठा साथ-साथ काम करते हैं, तब वे सब चाहे एक ही प्रकिया में या अलग-अलग, परन्तु सम्बंधित प्रक्रियाओं में भाग लेते हों, तो कहा जाता है कि ये लोग सहकारी हैं, या सहकारी ढंग से काम कर रहे हैं।' जिस प्रकार घुड़सवार सेना के एक रस्ते की प्राक्रमण-शाक्ति या पैदल सेना की एक रेजिमेण्ट की रसा-शक्ति अलग-अलग पुरसबार या पैरल सैनिकों की प्राममन अपवा रखा. शक्तियों के बोड़ से बुनियादी तौर पर भिन्न होती है, उसी प्रकार अलग-अलग काम करने वाले मजदूरों की यांत्रिक शक्तियों का कुल चोड़ उस सामाजिक शक्ति से बिल्कुल भिन्न होता है, वो उस समय पैदा होती है, जब बहुत से मजबूर एक ही पविभाजित किया में, जैसे कि भारी बोझ उगने, पहिया घुमाने या कोई रुकावट हटाने में, एक साप हिस्सा लेते . - 1 «Concours de forces" [" IRRAT TATA "]":(Destutt de Tracy, "Traité de la Volonté et de ses Effets", Paris, 1826, q • 501) 24-45
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