३४ भूमिका होता। वहाँ उखरण का उद्देश्य केवल यह बताना होता है कि विकास के दौरान में प्रमुक प्रार्षिक विचार को स्पष्ट रूप में सबसे पहले किसने, कहां और कब स्थापना की थी। ऐसे उतरण को चुनते समय केवल इसी बात को ध्यान में रखा गया है कि वह उदारण जिस प्रार्षिक धारणा से सम्बंध रखता है, उसका इस विज्ञान के इतिहास के लिये कुछ महत्त्व हो और वह अपने काल की प्रार्षिक परिस्थिति को सैदान्तिक रूप में कमोवेश पर्याप्त उंग से व्यक्त करती हो। लेकिन इस बात का कोई महत्व नहीं है कि लेखक के दृष्टिकोण से इस धारणा में मान भी कोई निरपेक्ष प्रयवा सापेक्ष सचाई है या वह एकदम गुबरे हुए इतिहास की चीन बन गयी है। प्रतएव, उबरण केवल मूल पाठ की धारावाहिक टीका का काम करते हैं, बो टीका प्रार्षिक विज्ञान के इतिहास से उधार ली गयी है, और प्रार्षिक सिवान्त के क्षेत्र में उठाये गये प्रगति के कुछ अधिक महत्वपूर्ण कदमों की तारीखों को तथा उनके पाविष्कारकों के नामों को निश्चित करते हैं। यह करना उस विज्ञान के लिये अत्यन्त आवश्यक वा, जिसके इतिहासकारों ने अभी तक केवल अपने पक्षपातपूर्ण प्रमान के लिये ही नाम कमाया है, जो कि पदलोलुपों का गुण होता है। और इससे यह बात भी समझ में पा जानी चाहिये कि दूसरे संस्करण के परिशिष्ट के अनुसार मार्स को क्यों केवल कुछ अत्यन्त प्रसाधारण प्रसंगों में ही जर्मन अशास्त्रियों को उदत करने की प्रावश्यकता पड़ी थी। प्राशा है कि द्वितीय सन्म १८४ के दौरान में प्रकाशित हो जायेगा। फ्रेडरिक एंगेल्स लन्दन, ७ नवम्बर १८८३।
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