पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/३६५

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३६२ पूंजीवादी उत्पादन . अब केवल ५:३ रह जाता है। एक और तरह भी हम इस नतीजे पर पहुंच सकते हैं। १२ परे के काम के दिन की पैदावार का मूल्य बीस शिलिंग है। इसमें से बारह शिलिंग उत्पादन के साधनों के मूल्य के होते हैं, वो केवल पुनः प्रकट हुमा है। बचते हैं पाठ शिलिंग, बो मुद्रा के रूप में दिन भर में नये पैदा हुए मूल्य की अभिव्यक्ति है। इसी प्रकार का प्रोसत डंग का सामाजिक मम जिस रकम में अभिव्यक्त होता है, उससे यह रकम प्यादा है। प्रोसत ढंग का बारह घण्टे का सामाजिक बम केवल छ: शिलिंग में अभिव्यक्त होता है। जिस श्रम की उत्पादकता असामान्य ढंग से बढ़ गयी है, वह पहले से अधिक तीव्रता के साथ किये गये श्रम की तरह काम करता है। इसी प्रकार का पोसत अंग का सामाजिक भम एक निश्चित अवधि में जितना मूल्य पैदा करता है, यह मम उसी अवधि में उससे अधिक मूल्य पैदा कर देता है। (देखिये अध्याय १ अनुभाग २, पृ०५८-५९.) परन्तु हमारा पूंजीपति एक दिन की प्रम-शक्ति के मूल्य के तौर पर अब भी पहले की तरह केवल पांच शिलिंग ही देता है। इसलिये , इस मूल्य को पुनः पैदा करने के लिये अब मजदूर को १० घण्टे के बजाय केवल ७ घन्टे ही काम करना पड़ता है। चुनांचे उसके अतिरिक्त श्रम में २. . २ . घन्टे की वृद्धि हो जाती है, और वह जो अतिरिक्त मूल्य पैदा करता है, वह एक शिलिंग से बढ़कर तीन शिलिंग हो जाता है। इसलिये, जो पूंजीपति उत्पादन की उन्नत पद्धति का प्रयोग करता है, वह उसी बंधे के अन्य पूंजीपतियों की अपेक्षा काम के दिन के ज्यादा बड़े हिस्से पर अतिरिक्त भन के रूप में अधिकार कर लेता है। सापेक्ष अतिरिक्त मूल्य के उत्पादन में लगे हुए सभी पूंजीपति सामूहिक रूप से जो कुछ करते हैं, वही यह पूंजीपति व्यक्तिगत रूप से कर गलता है। किन्तु, दूसरी पोर, जैसे ही उत्पावन की यह नयी पद्धति पूरे पंधे की सामान्य पति बन जाती है और उसके फलस्वरूप जैसे ही पहले की अपेक्षा सस्ते में तैयार हो जाने वाले माल के व्यक्तिगत मूल्य तथा उसके सामाजिक मूल्य का अन्तर जाता रहता है, वैसे ही यह फालतू अतिरिक्त मूल्य भी गायब हो जाता है। मम-काल के द्वारा मूल्य के निर्धारित होने का नियम, जो उत्पादन की नयी पद्धति का प्रयोग करने वाले पूंजीपति पर इस तरह लागू होता है कि वह उसे अपना माल सामाजिक मूल्य से कम पर बेचने के लिये मजबूर कर देता है, वही नियम प्रतियोगिता के सबस्ती अमल में पाने वाले नियम के रूप में उसके प्रतिदंतियों को भी इस नयी पद्धति का प्रयोग करने के लिये मजबूर कर देता है। इसलिये, अतिरिक्त मूल्य की सामान्य बर पर इस पूरी प्रक्रिया का केवल उसी समय प्रभाव पड़ता है, जब श्रम की . . 1"यदि मेरा पड़ोसी कम श्रम से ज्यादा पैदावार तैयार कराके अपना माल सस्ते दामों में बेच सकता है, तो मुझे भी किसी न किसी तरकीब से उतने ही सस्ते भाव पर अपना माल बेचना चाहिये। चुनांचे जब कभी कोई कला, धंधा या मशीन अपेक्षाकृत कम मजदूरों के श्रम से और चुनांचे पहले से अधिक सस्ते में काम करने लगती है, तब दूसरे लोगों में भी इस बात की चाह या होड़ सी पैदा हो जाती है कि या तो उसी तरह की कला, धंधे अथवा मशीन का प्रयोग करें और या उससे मिलती-जुलती कोई और चीज़ खोज निकालें, ताकि हर पादमी की स्थिति बराबर हो जाये और कोई प्रादमी अपने पड़ोसी से सस्ते भाव पर माल न बेच सके।" ("The Advantages of the East India Trade to England" ['इंगलैण्ड को ईस्ट इण्डिया के व्यापार से होने वाला लाभ'], London, 1720, पृ० ६७१)