३६० पूंजीवादी उत्पादन . . निर्देशक के रूप में प्रवेश करते हैं,-इस विषय पर विचार करने का हमारा यहाँ कोईराबा नहीं है। लेकिन इतनी बात साफ है कि जिस तरह ग्रहों और नक्षत्रों की प्रकट गति को केवल यही पावनी समझ सकता है, जो उनकी वास्तविक गति से परिचित है, अर्थात् जो उनकी उस गति से परिचित है, जिसका इनियों को प्रत्यन बोष नहीं होता, उसी तरह प्रतियोगिता का वैज्ञानिक विश्लेषण उस बात तक सम्भव नहीं है, जब तक कि हमें पूंजी के प्रान्तरिक स्वभाव का मान न हो। फिर भी, सापेन अतिरिक्त मूल्य के उत्पावन को बेहतर ढंग से समझने के लिये हम नीचे लिखी बातें और कहे देते हैं, जिनके प्राचार के तौर पर हम ऊपर बिन नतीजों पर पहुंच चुके हैं, उनके सिवा और कोई बात मानकर नहीं चल रहे हैं। यदि एक घन्टे का मन छ: पेन्स में निहित होता है, तो १२ घण्टे के एक काम के दिन में छः शिलिंग का मूल्य तैयार होगा। मान लीजिये कि मम की वर्तमान उत्पादकता के साथ इन १२ घण्टों में १२ वस्तुएं तैयार होती है। पौर मान लीजिये कि इन में से हर वस्तु के उत्पादन में उत्पादन के वो साधन खर्च होते हैं, उनका मूल्य छः पेन्स है। ऐसी हालत में हर वस्तु का मूल्य एक शिलिंग होगा : छः पेन्स उत्पादन के साधनों के मूल्य के और छः पेन्स उस नये मूल्य के, मो इन साधनों से काम करते समय पड़ गया है। अब मान लीजिये कि कोई पूंजीपति श्रम की उत्पादकता को दुगुनी कर देने में कामयाब हो जाता है और १२ घन्टे के काम के दिन में १२ वस्तुओं की जगह पर २४ वस्तुएं तैयार करने लगता है। तब यदि उत्पावन के साधनों का मूल्य पहले जितना ही रहता है, तो हर वस्तु का मूल्य घटकर नो पेन्स रह जायेगा, जिसमें से छ: पेन्स उत्पादन के साधनों के मूल्य के होंगे और ३ पेन्स उन नये मूल्य के होंगे, जो भम ने उनमें जोड़ दिया है। श्रम की उत्पादकता के दुगुनी हो पाने के बावजूद बिन भर का श्रम प्रब भी पहले की तरह : शिलिंग का ही नया मूल्य पैरा करता है, उससे अधिक नहीं; किन्तु अब पह: शिलिंग का नया मूल्य पहले से दुगुनी वस्तुओं में बंट जाता है। प्रब हर वस्तु में इस १२ भाग निहित होता है, अब हर बस्तु में छः पेन्स के २४ बजाय केवल तीन पेन्स का मूल्य निहित होता है, या,-बो कि एक ही बात है,-यूं कहिये कि उत्पादन के साधनों के प्रत्येक वस्तु में मान्तरित होते समय प्रब एक घण्टे के श्रम-काल के बजाय केवल आधे घण्टे का भम-काल ही उनमें नया जुड़ता है। अब इन वस्तुओं में से प्रत्येक का अलग-अलग मूल्य उनके सामाजिक मूल्य से कम हो गया है। दूसरे शब्दों में, मौसत ढंग की सामाजिक परिस्थितियों में इस प्रकार की अधिकांश बस्तुनों के उत्पादन में जितना अम-काल खर्च होता है, इन वस्तुओं में उससे कम श्रम-काल सर्च हुमा है। पीसतन हर बस्तु की लागत १ शिलिंग होती है, और वह २ घन्टे के सामाजिक श्रम का प्रतिनिधित्व करती है। परन्तु उत्पादन की बदली हुई प्रणाली का प्रयोग होने पर हरेक में केवल नो पेन्स की लागत लगती घण्टे का बम निहित होता है। परन्तु किसी भी माल का वास्तविक मूल्य उसका व्यक्तिगत मूल्य नहीं, बल्कि सामाजिक मूल्य होता है, अर्थात् किसी भी माल का वास्तविक मूल्य इससे नहीं निर्धारित होता कि हर अलग-अलग सूरत में उत्पादक को उस बस्तु पर कितना मन-काल सर्च करना पड़ा है, बल्कि वह इससे निर्धारित होता है कि उसके माल के उत्पादन के लिये सा- माविक दृष्टि से कितना भम-काल मावश्यक है। इसलिये, विस पूंजीपति मे नवी पति का उपयोग किया है, वह यदि अपना माल उसके एक शिलिंग के सामाजिक मूल्य पर बेचता है, तो वह उसे मूल्य के .
पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/३६३
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।