३५८ पूंजीवादी उत्पादन घन्टे के एक काम के दिन में एक जोड़ी जूते तैयार कर देता है। यदि उसे इतने ही समय में दो गोड़ी जूते तैयार करने हैं, तो उसके लिये बरी है कि उसके मन की उत्पादकता पहले से दुगुनी हो जाये। और यह उस बात तक नहीं हो सकता, जब तक कि उसके प्राचारों में या उसके काम करने के उंग में या दोनों बातों में कुछ परिवर्तन नहीं पा जाता। इसलिये, उसके मम की उत्पादकता को दुगुना करने के लिये खबरी है कि उत्पादन की परिस्थितियों में, यानी उसकी उत्पादन की प्रणाली में और खुद भम-प्रक्यिा में, कान्ति हो गयी हो। मम की उत्पादकता के बढ़ जाने से हमारा पाम तौर पर यह मतलब होता है कि भम-अख्यिा में कोई ऐसा परिवर्तन हो गया है, जिससे किसी माल के उत्पादन के लिये सामाजिक दृष्टि से प्रावश्यक श्रम-काल में कमी मा गयी है और श्रम की एक निश्चित मात्रा को पहले से अधिक मात्रा में उपयोग-मूल्य पैदा करने की क्षमता प्राप्त हो गयी है। केवल काम के दिन को लम्बा करके पैदा किये गये अतिरिक्त मूल्य पर विचार करते हुए हम अभी तक सदा यह मानकर चलते रहे हैं कि उत्पादन की प्रणाली पहले से निश्चित है और उसमें किसी तरह का परिवर्तन नहीं हो सकता। लेकिन जब पावश्यक भम को अतिरिक्त श्रम में परिणत करके अतिरिक्त मूल्य पैदा करना होता है, तब पूंजी के लिये यह हरगिज काफी नहीं होता कि ऐतिहासिक दृष्टि से उसे जिस रूप में बम-प्रक्रिया मिली है, उसी रूप में उसे स्वीकार कर ले और फिर केवल प्रक्रिया की अवधि को बढ़ा है। पहले उसे श्रम-प्रक्रिया की प्राविधिक एवं सामाजिक परिस्थितियों में और उसके फलस्वरूप स्वयं उत्पादन की प्रणाली में कान्ति पैदा करनी होगी, उसके बाद ही श्रम की उत्पादकता बढ़ सकेगी। श्रम शक्ति का मूल्य केवल इसी तरह घटाया जा सकता है, और काम के दिन का जो भाग इस मूल्य के पुनरुत्पादन के लिये प्रावश्यक है, उसे छोटा किया जा सकता है। काम के दिन को लम्बा करके जो अतिरिक्त मूल्य पैदा किया जाता है, उसे मैंने निरपेक्ष अतिरिक्त मूल्य का नाम दिया है। दूसरी मोर, जो अतिरिक्त मूल्य प्रावश्यक बम-काल के घटा दिये जाने और काम के बिन के दो हिस्सों की लम्बाई में तदनुरूप परिवर्तन हो जाने के फलस्वरूप पैदा होता है, उसे में सापेम अतिरिक्त मूल्य की संज्ञा देता हूं। श्रम-शक्ति के मूल्य को कम करने के लिये उद्योग की उन शालाओं में श्रम की उत्पादकता में वृद्धि होनी चाहिये, जिनकी पैदावार श्रम शक्ति के मूल्य को निर्धारित करती है और, इसलिये, - . . . 1 “Quando si perfezionano le arti, che non è altro che la scoperta di nuove vie, onde si possa compiere una manufattura con meno gente o (che è lo stes- so) in niinor tempo di prima." ["जब कलाओं का विकास होता है, उसका मतलब यह होता है कि कुछ ऐसे नये तरीके ईजाद हो जाते हैं, जिनसे कोई चीज़ पहले से कम मजदूरों की मदद से या (जो एक ही बात है) पहले से कम समय में तैयार की जा सकती है।"] (Galiani, “Della Moneta", sia 3; Custodi ME “Scrittori Classici Italiani di Economia Politica", Parte Moderna. Milano, 1803, q° 985, 9481) "L'éco- nomie sur les frais de production ne peu donc être autre chose que l'économie sur la quantité de travail employe pour produire." ["केवल उत्पादन में उपयोग किये जाने वाले श्रम की मात्रा में बचत करके ही उत्पादन के खर्च में बचत की जा सकती है।"] (Sismondi, “Etudes, etc.", ग्रंथ १, पृ० २२।)
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