भाग ४ सापेक्ष अतिरिक्त मूल्य का उत्पादन बारहवां अध्याय अतिरिक्त मूल्य की धारणा सापेक्ष . . काम के बिन के उस भाग को, जिसम केवल उस मूल्य का सम-मूल्य पैदा होता है, जो पूंजीपति ने श्रम-शक्ति के एवज में दिया है, हम अभी तक सबा एक स्थिर मात्रा मानते पाये है। और उत्पादन की कुछ खास परिस्थितियों में तथा समाज के प्रार्षिक विकास की एक निश्चित अवस्था में यह सचमुच एक स्थिर मात्रा होती भी है। जैसा कि हमने ऊपर देखा था, काम के दिन के इस भाग के पागे, यानी अपने प्रावश्यक श्रम-काल के बाव, मजदूर २, ३, ४, ६ घण्टे काम कर सकता है, इत्यादि, इत्यादि। उसके मागे वह कितनी देर तक काम करता रहता है, इसपर अतिरिक्त मूल्य की बर और काम के दिन की लम्बाई निर्भर करती हैं। हमने यह भी देखा था कि पावश्यक श्रम-काल के स्थिर होते हुए काम के दिन की पूरी लम्बाई में परिवर्तन हो सकते हैं। अब मान लीजिये, हमें यह मालूम है कि काम के दिन की लम्बाई कितनी है और वह प्रावश्यक श्रम तथा अतिरिक्त श्रम के बीच किस तरह बंटी है। मिसाल के लिये, मान लीजिये कि 'क' से 'ग' तक की यह पूरी रेखा क -ख-ग १२ घण्टे के काम के दिन का प्रतिनिधित्व करती है और उसका 'क' से 'ख' तक का भाग १० घन्टे के प्रावश्यक भम का और 'ख' से 'ग' तक का भाग २ घन्टे के अतिरिक्त श्रम का प्रतिनिधित्व करता है। अब प्रश्न यह है कि अतिरिक्त मूल्य का उत्पादन कैसे बढ़ाया जा सकता है, अर्थात् 'क' से 'ग' तक की रेता को लम्बा किये बग्रेर, या उससे स्वतंत्र ढंग से, अतिरिक्त श्रम को कैसे लम्बा किया जा सकता है? हालांकि 'क' से तक की रेखा की लम्बाई पहले से निश्चित है, फिर भी लगता है कि 'ब' से 'ग' तक की रेता को और लम्बा किया जा सकता है। यदि उसे 'ग' से पागे जींचकर लम्बा करना सम्भव नहीं है, क्योंकि 'ग' काम के दिन का-प्रर्थात् से 'ग' तक की रेखा का भी-अन्तिम बिनु है, तो उसके प्रस्थान-बिनु 'ख' को की दिशा में पीछे धकेल कर उसे बलर सन्बा किया जा सकता है। मान लीजिये, रेखा 'कख'बग' का वाला भाग 'बग' का पाषा है, या एक घण्टे के भम-काल के बराबर है: . . 23
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