अतिरिक्त मूल्य की दर और .अतिरिक्त मूल्य की राशि ३५१ . . पूंजीपति में स्मान्तरित हो जाने से रोकने की जबर्दस्ती कोशिश करते थे, और इसके लिये उन्होंने एक उस्ताद अधिक से अधिक कितने मजदूरों को नौकर रख सकता है, इसपर एक सीमा लगा दी पी और इस सीमा को बहुत नीचा रखा था। ऐसी सूरत में मुद्रा अथवा मालों का मालिक केवल उसी हालत में सचमुच पूंजीपति बन सकता है, जब उत्पादन में लगायी गयी कम से कम रकम मध्य युग की अधिकतम सीमा से बहुत अधिक हो। प्राकृतिक विज्ञान की तरह यहां भी ('तर्कशास्त्र'. में) हेगेल द्वारा प्राविष्कृत उस नियम की सत्यता सिद्ध हो जाती है कि केवल परिमाणात्मक भेद एक बिन्दु से मागे पहुंचकर गुणात्मक परिवर्तनों में बदल जाते हैं। मुद्रा अथवा मालों वाले किसी एक व्यक्ति के पास अपने को पूंजीपति में रूपान्तरित कर गलने के लिये मूल्य की कम से कम नो रकम होनी चाहिये, वह पूंजीवादी उत्पावन के विकास की अलग-अलग प्रवस्थानों में बदलती रहती है, और किसी खास अवस्था में भी उत्पादन के अलग-अलग क्षेत्रों में उनकी विशिष्ट एवं प्राविधिक परिस्थितियों के अनुसार अलग-अलग राक्रमों की पावश्यकता होती है। उत्पादन के कुछ खास क्षेत्रों में पूंजीवादी उत्पादन के प्रारम्भ में ही कम से कम इतनी पूंजी की पावश्यकता होती है, जो उस वक्त तक किसी एक व्यक्ति के पास नहीं होती। इससे कुछ हद तक तो व्यक्तियों को राज्य की मोर से सहायता देने की प्रथा उत्पन्न होती है, जैसा कि कोलबर्ट के काल में फ्रांस में देखने में पाया था और जैसा कि बहुत . , ("छोटे काश्तकार") के मुकाबले में ऐसा काश्तकार खुद अपनी तारीफ़ों के कैसे पुल बांधता है। "पूंजीपतियों का वर्ग शुरू से ही हाथ की मेहनत करने की प्रावश्यकता से प्रांशिक रूप से मुक्त रहता है, और अन्त में जाकर तो वह उससे पूर्णतया मुक्त हो जाता है।" ("Textbook of Lectures on the Political Economy of Nations. By the Rev. Richard Jones" ['राष्ट्रों के अर्थशास्त्र के विषय में कुछ भाषणों की पाठ्य-पुस्तक। रेवरेण्ड रिचर्ड जोन्स द्वारा लिखित'], Hertford, 1852. Lecture III [तीसरा भाषण ], पृ. ३६ ।) आधुनिक रसायन-विज्ञान का व्यूहाणविक सिद्धान्त , जिसका वैज्ञानिक प्रतिपादन पहली बार लोरेंत और गैरहाईट ने किया था, किसी अन्य नियम पर आधारित नहीं है। (तीसरे संस्करण में जोड़ा गया हिस्सा।)-जो रसायनज्ञ नहीं हैं , उनके लिये यह वाक्य बहुत स्पष्ट नहीं है। उसके स्पष्टीकरण के लिये हम यह बताते हैं कि यहां लेखक कार्बन के यौगिकों की उन सजातीय मालाओं (the homologous series of carbon compounds) की चर्चा कर रहा है, जिनको यह नाम पहले-पहल सी • गेरहाईट ने १८४३ में दिया था और जिनमें से प्रत्येक माला का अपना अलग बीजगणित का सामान्य सूत्र होता है। जैसे पैरेफ़िनों की माला का सूत्र है CH+, साधारण एलकोहलों का C"Hin+so, साधारण फैटी एसिडों का C"HO' और इसी तरह और भी बहुत से सूत्र हैं। इन मिसालों में व्यूहाणु-सूत्र में केवल परिमाणात्मक ढंग से CH: जोड़ देने पर हर बार गुणात्मक दृष्टि से एक बिल्कुल नया पदार्थ तैयार हो जाता है। इस महत्वपूर्ण तथ्य का पता लगाने में लौरेंत और गैरहाईट का कितना भाग था (मार्स ने उसके महत्व को अधिक प्रांका है), यह जानने के लिये Kopp की रचना “Entuicklung der Chemie" Munchen, 1873, पृ० ७०६, ७१६, और Schorlemmer (शोर्लेम्मेर) की रचना "The Rise and Development of Organic Chemistry" ('कार्बनिक रसायन विज्ञान का अभ्युदय और विकास'), London, 1879, पृ० ५४ देखिये।-के. ए. .
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