पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/३४२

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काम का दिन ३३९ - . . . चाहे जैसे परिवर्तन हो जायें, उनसे इस बात में कोई अन्तर नहीं पाता। पाठक को याद होगा कि अभी हम जहाँ तक पाये हैं, वहां तक केवल स्वतंत्र मजबूर हो और, इसलिये , केवल वही मजदूर, जिसे अपने मामलों का खुद प्रबंध करने का कानूनी अधिकार प्राप्त है, एक माल के विक्रेता के रूप में पूंजीपति के साथ एक करार करता है। इसलिये, हमने जो ऐतिहासिक रूपरेला प्रस्तुत की है, उसमें यदि एक तरफ़ माधुनिक उद्योग की और दूसरी तरफ़ उन लोगों के श्रम की, जो शारीरिक एवं कानूनी दृष्टि से नाबालिग है, महत्त्वपूर्ण भूमिकाएं हैं, तो पहला हमारी नजरों में श्रम के शोषण का एक खास विभाग मात्र था और दूसरा उस शोषण का एक विशेष रूप से उल्लेखनीय उदाहरण भर पा। लेकिन, मागे हमारी खोज किस दिशा में बढ़ेगी, इसपर अभी कुछ न कहकर, हम केवल उन ऐतिहासिक तथ्यों के प्रान्तरिक सम्बंधों से भी कुछ निष्कर्ष निकाल सकते हैं, जो हमारे सामने मौजूद हैं: पहली बात। पूंजी में काम के दिन का अंधाधुंध और सीमाहीन विस्तार करने की जो प्रबल इच्छा होती है, वह पहली बार उन उद्योगों में पूरी होती है, जिनमें पानी की ताकत , भाप और मशीनों ने सबसे शुरू में क्रान्ति पैदा कर दी थी, वह सर्वप्रथम उत्पादन की माधुनिक प्रणाली की प्रथम कृतियों में, यानी कपास, ऊन, सन और रेशम की कताई और बुनाई के उद्योगों में पूरी होती है। उत्पावन की भौतिक प्रणाली में जो परिवर्तन हुए और उनके अनुरूप उत्पादकों के सामाजिक सम्बंधों में जो तबदीलियां पायीं,' उनसे पहले तो काम के दिन को हव से ज्यादा लम्बा खींचने की प्रवृत्ति पैदा हुई और फिर उसके विरोध में यह मांग उठी कि इस प्रवृत्ति पर समाज को नियंत्रण रखना चाहिये और काम के दिन को तथा विराम के समय को कानून बनाकर सीमित कर देना चाहिये, उनका नियमन करना चाहिये और उनको सबके लिये एक सा बना देना चाहिये। इसलिये समाज द्वारा यह नियंत्रण उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ष में केवल अपवाद-स्वरूप बनाये गये कानूनों का रूप लेता है। जब उत्पावन की नयी प्रणाली के इस प्रादिम क्षेत्र को जीत लिया गया, तो पता चला कि इस बीच में न केवल उत्पादन की अन्य बहुत सी शालाओं में फेक्टरी-व्यवस्था जारी कर दी गयी है, बल्कि जिन उद्योगों में कमोबेश ऐसे तरीके इस्तेमाल होते हैं, जो एकदम व्यवहारातीत हो गये है, जैसे मिट्टी के बर्तन बनाने के उद्योग, कांच बनाने के उद्योग प्रादि में तथा रोटी बनाने की तरह की पुराने ढंग की दस्तकारियों में और यहां तक कि कोलें बनाने जैसे तथाकषित घरेलू उद्योगों में भी बहुत समय पहले से पूंजीवावी शोषण का वैसा ही पूर्ण प्रभुत्व कायम हो गया 'इन वर्गों (पूंजीपतियों और मजदूरों) में से प्रत्येक का आचरण उस सापेक्ष परिस्थिति का फल है, जिसमें वह वर्ग अपने को पाता है।" ("Reports, &c., for 31st October, 1848" ['रिपोर्ट, इत्यादि, ३१ अक्तूबर १८४८'], पृ० ११३ ।) ३"जिन धंधों में मजदूरों के काम पर प्रतिबंध लगाये गये , वे भाप या पानी की ताक़त से कपड़ा बनाने से सम्बंधित थे। दो बातें थीं, जिनसे कोई भी उद्योग सरकारी निरीक्षण में मा जाता था: एक , भाप या पानी की ताक़त का प्रयोग, और, दूसरे, कुछ खास तरह के कपड़ों का बनाया जाना।" ("Reports, &c., for 31st October, 1864" ["रिपोर्ट, इत्यादि, ३१ अक्तूबर १८६४'], पृ. ८ ।) तथाकथित घरेलू उद्योगों की हालत के बारे में "Children's Employment Co- mmission" ("बाल-सेवायोजन प्रायोग") की सबसे ताजा रिपोर्टों में विशेष रूप से मूल्यवान सामग्री मिलती है। 1 11

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