पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/३१८

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काम का दिन ३१५ करने दिया जाता। पारगी में १३ वर्ष और १६ वर्ष के बीच की उनके बच्चों के काम का समय १८६२ में १२६ षष्टे से घटाकर १२ घण्टे कर दिया गया था। आस्ट्रिया में १४ वर्ष से १६ वर्ष तक के बच्चों का काम का समय १८६० में १२ में १२६ घण्टे से १२ घण्टे कर दिया गया।' इसपर शायद मकोले "exultation" (गोल्लास) से चिल्लाकर कहेंगे : वाह ! १७७० से अब तक "कितनी जबर्दस्त प्रगति" हुई है। १७७० की पूंजीवादी पात्मा कंगालों के लिये जिस "मातंक-गृह" का केवल सपना देता करती थी, वह उसके बन्द साल बाद खुब प्रौद्योगिक मजदूरों के लिये एक विराट " मुहताब- जाने" के रूप में चरितार्थ हो गया। इस "मुहतान-बाने" का नाम है "फेक्टरी"। और इस बार मावळ वास्तविकता के सामने फीका पड़ गया था। अनुभाग ६ - काम का सामान्य दिन प्राप्त करने का संघर्ष । काम के समय का कानून द्वारा अनिवार्य रूप से सीमित कर दिया जाना। इंगलैण्ड के फैक्टरी-कानून-१८३३ से १८६४ तक काम के दिन को बढ़ाकर उसकी सामान्य अधिकतम सीमा तक और फिर उससे भी पागे, १२ घन्टे के प्राकृतिक बिन की सीमा तक ले जाने में पूंजी को कई शताब्बियों का समय लग गया। उसके बाद, १८ वीं सदी की अन्तिम तिहाई में, मशीनों की तथा माधुनिक उद्योग- . - ५ सितम्बर १८५० का बारह घण्टे का बिल, जो २ मार्च १८४८ की प्रस्थायी सरकार के एक फ़रमान का पूंजीवादी संस्करण है, बिना किसी अपवाद के सभी कारखानों पर लागू है। इस कानून के पहले फ्रांस में काम के दिन की कोई निश्चित सीमा नहीं थी। फैक्टरियों में १४ घण्टे, १५ घण्टे या उससे भी ज्यादा देर तक काम कराया जाता था। देखिये "Des clas- ses ouvrières en France, pendant l'année 1848. Par M. Blanqui", he percent ब्लांक्वी है, क्रान्तिकारी ब्लांक्वी दूसरे थे। इन सज्जन को सरकार ने मजदूर-वर्ग की हालत की जांच करने का काम सौंपा था। काम के दिन के नियमन के मामले में बेल्जियम मादर्श पूंजीवादी राज्य है। ब्रसेल्स में इंगलण्ड के राजदूत वेल्डेन के लाई होवई ने १२ मई १८६२ को Foreign Office (विदेश सचिवालय) को यह रिपोर्ट भेजी थी कि “मोशिये रोजर नामक मंत्री ने मुझे बताया है कि उनके देश में बच्चों के श्रम पर न तो किसी सामान्य कानून ने कोई सीमा लगा रखी है और न किसी स्थानीय कानून ने। उन्होंने मुझे बताया कि पिछले तीन वर्ष से सरकार संसद के प्रत्येक अधिवेशन में इस विषय का एक बिल पेश करने की सोचती आयी है, पर श्रम की अनियंत्रित स्वतंत्र के सिद्धान्त से टकराने वाले किसी भी बिल का इतना जबर्दस्त विरोध होता है कि उसके सामने सरकार कुछ नहीं कर सकती।" 'यह निश्चय ही बड़े दुःख की बात है कि किसी भी वर्ग को १२ घण्टे रोजाना मेहनत करनी पड़े। इसमें यदि भोजन का समय और घर से कारखाने तक पाने-जाने का समय और 311