पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/३१६

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काम का दिन ३१३ - . - "परि हर सातवें दिन को श्री का दिन मानना एक इश्वरीय विधान है, तो चूंकि उसका मतलब यह भी होता है कि बाकी क दिन मेहनत के" (जैसा कि हम बार को देखेंगे, उसका मतलब है पूंचीके) “दिन माने जाने चाहिये, इसलिये माशा की जाती है कि इस नियम को लागू करने में कोई बेरहमी की बात नहीं समझी जायेगी... यह बात हम कल-कारखानों में काम करने वाली मावावी के अपने दुलद अनुभव से जानते है कि इनसान में पाम तौर पर पाराम- तलवी और काहिली की प्रवृत्ति होती है। जब तक जाने-पीने की पीयें बहुत ज्यादा महंगी नहीं हो जाती, तब तक ये लोग पीसतन हाते में चार दिन से ज्यादा काम नहीं करते... गरीबों के लिये जितनी पी बरी हैं, उन सबको एक मद में मान लीजिये मिसाल के लिये, उन सब को गेहूं कह लीजिये, या मान लीजिये कि...एक बुशल गेहूं की कीमत ५ शिलिंग है और बह (एक कारीगर) अपनी दिन भर की मेहनत से १ शिलिंग कमाता है। ऐसी हालत में उसे सप्ताह में केवल पांच दिन काम करना पड़ेगा। यदि एक बुझल गेहूं की कीमत महज चार शिलिंग रह जाये, तो उसको केवल चार दिन काम करना पड़ेगा। लेकिन चूंकि इस राज्य में जीवन के लिये प्रावश्यक वस्तुओं के नामों की अपेक्षा मजबूरी की दरें कहीं अधिक ऊंची है... इसलिये बोकारीगर चार दिन मेहनत करता है, उसके पास इतनी अतिरिक्त मुद्रा हो जाती है कि हफ्ते के बाकी दिन वह लोट लगा सकता है...मैं माशा करता हूं कि मैंने यह प्रमाणित करने के लिए काफी तर्क देविये हैं कि हाते में छदिन प्रोसत बर्वे की मेहनत करना गुलामी नहीं है। हमारे खेत मजदूर यही करते हैं, और वहां तक कोई देत. सकता है, हमारे देश में जितने भी मेहनत करने वाले गरीबसोग (labouring poor) है, उनमें खेत-मजदूर सबसे ज्यादा सुती हैं। लेकिन ब लोगों के देश में कल-कारखानों में काम करने वाले मजदूर भी इतनी ही मेहनत करते हैं और बहुत सुली प्रतीत होते हैं। फ्रांसीसी लोग छुट्टियों को छोड़कर ही इतनी मेहनत करते हैं... लेकिन हमारे देश के लोगों ने अपना यह विचार बना लिया है कि अंग्रेज होने के कारण उनको योरप के और किसी भी देश के निवासियों से अधिक स्वतंत्र और भावान रहने का जन्मसिद्ध अधिकार प्राप्त है। अब इस विचार से हमारे सैनिकों की वीरता पर जो अच्छा प्रभाव पड़ता है, यहां तक यह कुछ लाभप्रद हो सकता है, पर हमारे कल-कारखानों में काम करने वाले गरीबों के दिमागों में यह विचार जितना कम स्थान पायेगा, जुद उनका और राज्य का उतना ही प्रषिक हित होगा। मेहनतकशों को अपने से बड़ों से खुद को स्वतंत्र ("Independent of their superiors") नहीं मानना चाहिये... हमारे वैसे एक व्यापारी देश में, जहां पाठ में से सात हिस्से पावारी उन लोगों की है, जिनके पास कोई सम्पत्ति नहीं है और यदि है, तो नाम मात्र के लिये, भीड़ को बावड़ा . . 1"An Essay, &c." ('व्यापार और वाणिज्य पर एक निबन्ध , इत्यादि'), London,17701 लेखक ने इसी पुस्तिका के पृ० ६६ पर खुद यह बताया है कि १७७० में इंगलैण्ड के खेत- मजदूरों का "सुख" किन-किन बातों में निहित था। उसी के शब्दों में, "उनकी शक्तियां ("their powers") हमेशा तनी रहती ("upon the stretch") हैं; वे जितने कम पैसों में अपनी गुजर-बसर करते हैं, उनसे कम पैसों में गुजर करना असम्भव है ("they cannot live che than they do"); वे जितनी सलत मेहनत करते हैं, उससे ज्यादा मेहनत करना atsufan ("nor work harder")," 'लगभग सभी परम्परागत छुट्टियों को काम के दिनों में बदलकर प्रोटेस्टेंट मत पूंजी की उत्पत्ति में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।