काम का दिन ३०७ . . सामान्य लम्बाई के काम के दिन की स्थापना पूंजीपति और मजदूर के सदियों तक के संघर्ष का फल है। इस संघर्ष के इतिहास में दो विरोधी प्रवृत्तियां दिखाई देती हैं। मिसाल के लिये लीजिये, इंगलड के हमारे समाने के फैक्टरी-कानूनों की १४ वीं सदी से लेकर १८ वी सदी के बीच तक के मजदूर-नियमों से तुलना करके देखिये। जहां प्राधुनिक फेक्टरी-कानून काम के दिन को खबर्दस्ती छोटा कर देते हैं, वहां पुराने नियम उसे नर्वस्ती लम्बा करने की कोशिश करते थे। भ्रूणावस्था में, जब पूंजी का विकास प्रारम्भ होता है, तब उसे quantum sufficit (पर्याप्त मात्रा) में अतिरिक्त अम का अवशोषण करने का अधिकार केवल पार्षिक सम्बंधों के प्रताप से ही प्राप्त नहीं होता, बल्कि उसे राज्य की सहायता से यह अधिकार प्राप्त करना पड़ता है। उस काल में पूंजी बोदावे करती है, बे, बाहिर है, उन रियायतों के मुकाबले में बहुत छोटे मालूम पड़ते हैं, जो पूंजी को अपनी प्रौढावस्था में लड़ते-सगड़ते और गुरति हुए भी पाजिर बेनी ही पड़ती है। सदियां बीत जाती है, तब कहीं जाकर "स्वतंत्र" मजदूर पूंजीवादी उत्पादन के विकास के परिणामस्वरूप -इस बात के लिये तैयार होता है, पानी सामाजिक परिस्थितियों के द्वारा इस बात के लिये मजबूर कर दिया जाता है, कि जीवन के लिये प्रावश्यक बन्न वस्तुओं के नाम के एवज में अपना सम्पूर्ण सक्रिय बीवन , अपनी समस्त कार्य क्षमता बेच गले और अपने मूलभूत अधिकारों को कोरियों के मोल दे । इसलिये यह बात स्वाभाविक है कि १४ वीं सदी के मध्य से लेकर १७ वीं सदी के अन्त तक पूंजी ने राज्य के बनाये हुए नियमों के जरिये वयस्क मजदूरों के काम के दिन को खबर्दस्ती जितना लम्बा करने की कोशिश की पी, १९ वीं सदी के उत्तरार्ष में राज्य ने बच्चों के खून को पूंजी में ले जाने से रोकने के लिये काम के दिन को . है, फिर भी हमारे लिए यह सम्भव नहीं है कि कारखानेदारों के बीच किसी समझौते की योजना के द्वारा इन बुराइयों को दूर कर दें.. इन तमाम बातों पर गौर करके हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि इस सम्बंध में कोई कानून बनाने की जरूरत है।" ("Children's Employment Commission. Ist Report, 1863" ['बाल-सेवायोजन आयोग की पहली रिपोर्ट, १९६३'], पृ. ३२२।) एक बिल्कुल ताजा मिसाल इससे कहीं ज्यादा दिलचस्प है। सूती कपड़े के व्यवसाय में तेजी माने पर जब कपास के दाम बढ़ गये, तो ब्लैकबर्न के कारखानेदारों ने आपस की रजामन्दी से एक निश्चित अवधि के लिये अपनी मिलों के काम करने का समय कम कर दिया। यह अवधि नवम्बर १८७१ के पास-पास समाप्त हो गयी। इस बीच इस समझौते के फलस्वरूप उत्पादन में जो कमी पायी थी, उससे उन अधिक धनवान कारखानेदारों ने फ़ायदा उठाया, जो कताई के साथ- साथ बुनाई भी करते थे। उन्होंने अपने व्यापार का विस्तार बढ़ा लिया, और छोटे-छोटे मालिकों को पीछे धकेलकर ये लोग मोटे मुनाफ़े कमाने लगे। तब छोटे मालिकों ने परेशानी में मजदूरों से मदद मांगी और उनसे कहा कि पाप लोगों को ६ घण्टे की प्रणाली चालू करवाने के लिए डटकर पान्दोलन चलाना चाहिये और हम लोग इस काम में रुपये-पैसे से भी पाप लोगों की मदद करेंगे। 1इन मजदूर-परिनियमों की तरह के नियम उसी वक्त फ्रांस, नीदरलैण्ड्स तथा अन्य देशों में भी बनाये गये थे। इंगलैण्ड में उनको पहले-पहल १८१३ में रस्मी तौर पर मंसूत्र किया गया, हालांकि उत्पादन के तरीकों में जो परिवर्तन मा गये थे, उन्होंने इन परिनियमों को बहुत पहले ही बेकार कर दिया था। 20*
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