पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/३०१

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२९८ पूंजीवादी उत्पादन सैमसन को विशुद्ध हानि होने लगती है। "पर तब हमारा यह नुकसान होगा कि इतनी कीमती मशीनें पाये समय बेकार पड़ी रहा करेंगी, और मौचूना व्यवस्था के रहते हुए हम जितना काम कर लेते हैं, उतना काम करने के लिये हमें अपना कारखाना और मशीने पाच से दुगुनी कर देनी पड़ेंगी, जिसके फलस्वरूप हमें मान से दुगुनी पूंजी लगानी पड़ जायेगी।" परन्तु मेसर्स संग्डर्सन एक ऐसा विशेषाधिकार क्यों चाहते है, जो उन दूसरे पूंजीपतियों को नहीं प्राप्त है, वो केवल दिन में काम कराते हैं और इसलिये जिनकी इमारतें, मशीनें, कच्चा माल वगैरह रात को "कार" पड़े रहते हैं? मेसर्स संन्डसन जैसे सभी पूंजीपतियों की तरफ से है. एक सैमसन इस प्रश्न का यह उत्तर देते हैं: "यह सच है कि जिन कारखानों में केवल दिन में काम होता है, उनमें भी मशीन बेकार पड़ी रहती है और उससे इस तरह का नुकसान होता है। लेकिन हम चूंकि भट्टियों का इस्तेमाल करते हैं, इसलिये हमारा उनसे स्यादा नुकसान होगा। यदि हम भट्टियों को जलाये रखेंगे, तो ईधन बेकार सर्च होगा (जब कि मानकल केवल मजदूरों की जीवन-शक्ति खर्च होती है), और यदि हम उनको ठन्डा हो जाने देंगे, तो नये सिरे से मागे जलाने और भट्टियों को गरम करने में बहुत सा समय प्य वाया हो जायेगा (जब कि मा-पाठ वर्ष के बच्चों को भी यदि सोने का समय नहीं मिलता, तो उससे सैन्र्सनों की कौम को अतिरिक्त भम-काल मिल जाता है) और तापमान के परिवर्तन से खुद भट्ठियां बराब हो जायेंगी" (जब कि मजदूरों की दिन और रात की पालियों के बदलते रहने से इन भट्टियों की कोई हानि नहीं होगी। 1उप. , . पु०, ८५, पृ. XVIL (सत्रह)। कांच के कारखानों के मालिकों ने भी इसी प्रकार बड़ी सहृदयता का परिचय देते हुए बच्चों को नियत समय पर भोजन की छुट्टी देने के प्रस्ताव का इस बिना पर विरोध किया था कि यदि ऐसा किया गया, तो भट्टियों की गरमी का एक भाग "व्यर्थ जाया" हो जायेगा, जिससे उनका "सरासर नुकसान" होगा। इस दलील का जांच-कमिश्नर व्हाइट ने जवाब दिया है। उनका जवाब उरे, सीनियर मादि तथा रोश्चेर के ढंग के उनके जर्मन नालों जैसा नहीं है, जिनका हृदय पूंजीपति अपना सोना खर्च करने में जिस "परिवर्जन", जिस “अपरिग्रह" और जिस “मितव्ययिता" का परिचय देते हैं और मानव-जीवन का व्यय करने में जिस तैमूरशाही दरियादिली का प्रदर्शन करते है, उससे द्रवित हो उठता है। कमिश्नर व्हाइट ने लिखा है : “यह मुमकिन है कि यदि भोजन का समय निश्चित कर दिया जायेगा, तो जितनी गरमी इस वक्त जाया होती है , उससे पोड़ी ज्यादा गरमी जाया होने लगेगी, लेकिन यह नुकसान मुद्रा-मूल्य में शायद जीवन- शक्ति के उस अपव्यय ("the waste of animal power") के बराबर नहीं होगा, जो पूरे राज्य के कांच के कारखानों में नयी उम्र के लड़कों को पाराम से खाना खाने और खाने के बाद उसे हजम करने के लिये पर्याप्त विश्राम करने के लिये काफ़ी समय न देने के फलस्वरूप हो रहा है।" (उप० पु०, पृ. VLV (पैतालीस)।) और यह १८६५ के "प्रगति के वर्ष" में हो रहा है ! जिस शेड में बोतलें और सीस-कांच बनाया जाता है, उसमें काम करने वाले बच्चे को सामान उठाने और ले जाने में जो शक्ति वर्ष करनी पड़ती है, हम यदि उसकी मोर कोई ध्यान न दें, तो भी उस बच्चे को अपने काम के दौरान में हर ६ घण्टे में १५-२० मील चलना पड़ता है! और काम अक्सर १४ या १५ घण्टे तक चलता रहता है! मास्को की कताई-मिलों की तरह कांच के इन कारखानों में से अनेक में ६ घण्टे की पालियों की .