२७२ पूंजीवादी उत्पादन - लेनोना होनर ने बताया है कि "पहले छ: महीनों में मेरे जिले में १२२ मिलों के मालिकों ने उनसे नाता तोड़ लिया है, १४३ बन्द पड़ी है," और फिर भी मजदूरों से कानूनी तौर पर निश्चित समय से अधिक काम लिया जाता है। मि० होवेल ने बताया है: "बहुत दिनों तक तो व्यापार की मन्दी के कारण बहुत सी फैक्टरियां एकदम बन्द पड़ी रही और उनसे भी अधिक संख्या में कम समय तक काम करने लगीं। लेकिन इसकी शिकायतें मेरे पास अब भी पहले जितनी ही माती रहती हैं कि कानूनी तौर पर वो समय मजदूरों के विमान करने तथा भोजन के लिए नियत है, उसमें से हेरा-फेरी से दिन भर में प्राधे घण्टे या पौन घण्टे तक का उनका समय छीन लिया जाता है (snatched)rs १८६१ से १८६५ तक कपास का जो भयानक संकट पाया था, उस वक्त भी यही बात कुछ छोटे पैमाने पर देखने में पायी थी। "जब किसी फैक्टरी में लोग भोजन के समय या किसी और गैरकानूनी समय पर काम करते हुए पाये जाते हैं, तो कभी-कभी यह बहाना बनाया जाता है कि क्या किया जाये, ये लोग नियत समय पर मिल के बाहर नहीं निकलते, और बास तौर पर शनिवार को तीसरे पहर के बात इन लोगों को काम (अपनी मशीनें साफ़ करने मादि का काम) बन्द करने के वास्ते मजबूर करने के लिए उनके साथ जबर्दस्ती करनी पड़ती है। मशीन बन्द हो जाने के बाद भी मजबूर फैक्टरी में ही काम करते रहते हैं, पर...अगर मशीनें साफ़ करने प्रादि के लिए या तो सुबह छः बजे के पहले (जी हाँ! ) और या शनिवार को तीसरे पहर के २ बजे के पहले काफी समय अलग कर दिया जाता, तो मजदूरों से इस तरह का काम न लेना पड़ता।" . . 4 . 1 “Reports, etc.” ('रिपोर्ट, इत्यादि'), उप० पु०, पृ. १०॥ "Reports, etc." ('रिपोर्ट, इत्यादि'), उप. पु. पृ० २५ । 8 "Reports, &c., for the half year ending 30th April, 1861" (Roaster १९६१ को समाप्त होने वाली छमाही की रिपोर्ट, इत्यादि')। देखिये “Reports, &c., 31st October 1862" ('रिपोर्ट, इत्यादि, ३१ अक्तूबर १८६२') का परिशिष्ट नं० २, पृ० ७, ५२, ५३ । १८६३ की दूसरी छमाही में फैक्टरी-कानूनों का प्रतिक्रमण करने वाली घटनामों की संख्या बहुत बढ़ गयी। देखिये “Reports, &c., ending 31st October, 1863,' (३१ अक्तूबर १८६३ को समाप्त होने वाली छमाही की रिपोर्ट, इत्यादि'), पृ. ७। "Reports, &c., 31st October 18607 ('रिपोर्ट, इत्यादि, ३१ अक्तूबर १८६०'), पृ. २३ । अदालतों के सामने कारखानेदारों द्वारा दिये हुए बयानों के अनुसार, यदि मजदूरों के श्रम को बीच में रोकने की कोई भी कोशिश की जाती है, तो मजदूर एकदम बौखलाकर उसका विरोध करते है। एक विचित्र उदाहरण से यह बात स्पष्ट हो जाती है। जून १८३६ के प्रारम्भ में ड्यूजबरी (योर्कशायर) के मजिस्ट्रेटों को सूचना मिली कि बेटले के पास-पास की ८ बड़ी मिलों के मालिकों ने फेक्टरी-कानूनों को तोड़ा है। इनमें से कुछ महानुभावों पर यह मारोप लगाया गया था कि उन्होंने १२ वर्ष से लेकर १५ वर्ष तक की उम्र के ५ लड़कों से शुक्रवार को सुबह ६ बजे प्रारम्भ करके शनिवार को शाम के चार बजे तक काम लिया और उनको भोजन करने का समय तथा प्राधी रात को एक घण्टा सोने का समय छोड़कर और एक भी मिनट पाराम करने के लिए नहीं दिया। और इन बच्चों को ३० घण्टे का यह अनवरत श्रम "रद्दी- पर" ("shoddy-hole") के अन्दर करना पड़ा। "रद्दी-घर" उस छोटी सी कोठरी को 11
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