दूसरे जर्मन संस्करण का परिशिष्ट २३ . . . और डरावना रूप धारण करता गया। इसने वैज्ञानिक पूंजीवादी अर्थशास्त्र की मौत की घष्टी बजा दी। उस वक्त से ही सवाल यह नहीं रह गया कि अमुक प्रमेय सही है या नहीं, बल्कि सवाल यह हो गया कि वह पूंजी के लिये हितकर है या हानिकारक, उपयोगी है या अनुपयोगी, राजनीतिक दृष्टि से खतरनाक है या नहीं। तटस्थ भाव से छान-चीन करने वालों की जगह किराये के पहलवानों ने ले ली; सच्ची वैज्ञानिक खोज का स्थान पूंजी के समर्थकों के, अपने को अपराधी समझने वाले, अन्तःकरण तथा बुरे उद्देश्य ने ग्रहण कर लिया। इसके बावजूब लोगों का ध्यान जबर्दस्ती अपनी मोर खींच लेने वाली उन पुस्तिकामों का भी यदि वैज्ञानिक नहीं, तो ऐतिहासिक महत्त्व पर है, जिनसे कोवन और नाइट नामक कारखानेदारों के नेतृत्व में चलने वाली अनाज-कानून-विरोधी लीग ने दुनिया को पाट दिया था। उनका ऐतिहासिक महत्त्व इसलिए है कि उनमें अभिजात-वर्गीय भूस्वामियों का लण्डन किया गया था। लेकिन उसके बाद से स्वतंत्र व्यापार के कानूनों ने, जिनका उद्घाटन सर रोबर्ट पील ने किया था, घटिया किस्म के प्रशास्त्र के इस प्राखिरी कांटे को भी निकाल दिया है। १८४८-४९ में योरपीय महाद्वीप में जो क्रान्ति हुई, उसकी प्रतिक्रिया इंगलैड में भी हुई। जो लोग अब भी वैज्ञानिक होने का बोला-बहुत दावा करते थे और महल शासक वर्गों के घर-जरीब दार्शनिकों तथा मुसाहबों से कुछ प्रषिक बनना चाहते थे, उन्होंने पूंजी के अर्थशास्त्र का सर्वहारा के उन दावों के साप ताल-मेल बंगने की कोशिश की, जिनकी प्रब अवहेलना नहीं की जा सकती थी। इससे एक छिछला समन्वयवाद प्रारम्भ हुमा, जिसके सबसे अच्छे प्रतिनिषि जान स्टुअर्ट मिल है। इस प्रकार पूंजीवादी अर्थशास्त्र ने अपने दिवालियापन की घोषणा कर दी थी। महान रूसी विद्वान एवं पालोचक नि० चे शेक्स्की ने अपनी रचना "मिल के अनुसार अर्थशास्त्र की रूपरेखा' में एक महान मस्तिष्क की सहायता से इस घटना पर एक अधिकारी के रूप में प्रकाश डाला है। इसलिये, जर्मनी में उत्पावन की पूंजीवादी प्रणाली उस बात सामने पायी, जब उसका परस्पर-विरोधी स्वरूप इंगलड और फ्रांस में पहले ही वर्गों के भीषण संघर्ष में प्रकट हो चुका था। इसके अलावा, इसी बीच जर्मन सर्वहारा वर्ग ने जर्मन पूंजीपति वर्ग की अपेक्षा कहीं अधिक स्पष्ट वर्ग-चेतना प्राप्त कर ली थी। इस प्रकार, जब माखिर वह घड़ी पायी कि जर्मनी में पर्यशास्त्र का पूंजीवादी विज्ञान सम्भव प्रतीत होने लगा, क उसी समय वह वास्तव में फिर असम्भव हो गया था। ऐसी परिस्थिति में अर्थशास्त्र के पूंजीवादी विज्ञान के प्रोफेसर दो बलों में बंट गये। एक जिसमें व्यावहारिक ढंग के, हर चीख से चौकस व्यवसायी लोग थे, बास्तियात के मजे के नीचे इकट्ठा हो गया, जो कि घटिया किस्म के प्रर्षशास्त्र का सबसे ज्यारा सतही और इसलिये सबसे ज्यादा अधिकारी प्रतिनिधि है। दूसरा बल, जिसे अपने विज्ञान की प्रोफेसराना प्रतिष्ठा का गर्व था, मान स्टुअर्ट मिल का अनुसरण करते हुए ऐसी चीजों में समझौता कराने की कोशिश करने लगा, जिनमें कभी समझौता नहीं हो सकता। जिस तरह पूंजीवादी प्रशास्त्र के अम्युबप के काल में जर्मन लोग महब स्कूली लड़के, नकाल, पिछलग्गू और पोक व्यापार करने वाली विदेशी कम्पनियों का अपने देश में फुटकर ढंग से और फेरी लगाकर माल बेचने बाले मनिहार बनकर रह गये थे, क वही हाल उनका प्रब पूंजीवादी अर्थशास्त्र के पतन के काल में हुआ। बल, .
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