२५० पूंजीवादी उत्पादन . १ - 9 1 कातने वाला १२ घण्टे में २० पौण्ड सूत, या १ घण्टे में है। पौष्ण सूत तैयार करता है। चुनांचे बह ८ घन्टे में पौड, या एक ऐसी मांशिक पैदावार तैयार करता है, जो मूल्य में उस तमाम कपास के बराबर होती है, वो दिन भर में काती जाती है। इसी तरह अगले १ घण्टे और ३६ मिनट की आंशिक पैदावार २२ पौण्ड सूत होती है। यह श्रम के उन प्रौबारों के मूल्य का प्रतिनिधित्व करती है, वो १२ घण्टे में खर्च हो जाते हैं। उसके बाद के १ घण्टे १२ मिनट में कातने वाला ३ शिलिंग की कीमत का २ पौण सूत तैयार करता है। यह मूल्य उस पूरे मूल्य के बराबर होता है, जो वह अपने ६ घन्टे के भावश्यक भन से पैदा करता है। अन्त में, वह पाखिरी घण्टे तवा १२ मिनट में २ पास पार सूत तैयार कर देता है, जिसका मूल्य उस अतिरिक्त मूल्य के बराबर होता है, वो उसका अतिरिक्त भम प्राधे दिन में पैदा कर देता है। हिसाब का यह दंग अंग्रेस कारखानेदार के रोजमर्रा के काम में पाता है। वह कहेगा कि इस तरह उसे यह पता चल जाता है कि पहले ८ घण्टों में, काम के दिन के पहले भाग में, उसे अपनी कपास का मूल्य वापिस मिल जाता है और इस तरह बाकी घण्टों में उसे और चीजों का मूल्य मिलता जाता है। साथ ही यह हिसाब जोड़ने का बिल्कुल सही तरीका है। क्योंकि सच पूछिये तो यह वही तरीका है, वो ऊपर बताया जा चुका है। इतना है कि ऊपर यह तरीका उस स्थान पर लागू किया गया था, जिसमें सम्पूर्ण पैदावार के अलग-अलग भाग मानो बराबर-बराबर पड़े हुए थे, और यहां पर उसे उस काल पर लागू किया गया है, जिसमें ये अलग-अलग भाग मानो समानुसार तैयार होते हैं। परन्तु हिसाब के इस ढंग के साथ-साथ दिमाग में कुछ बहुत ही बर्बर विचार भी पा सकते हैं,-खास कर उन दिमागों में, जिनको न्यावह दृष्टि से मूल्य से मूल्य पैदा करने की प्रक्रिया में उतनी ही दिलचस्पी है, जितनी कि खान्तिक दृष्टि से इस प्रक्रिया को गलत ढंग से समझने में है। ऐसे लोगों के दिमागों में यह विचार पैदा हो सकता है कि, मिसाल के लिए, एक कातने वाला अपने काम के दिन के पहले ८ पडों में कपास का मूल्य पैदा करता है, या उसे बहाल करता है, अगले १ घण्टे और ३६ मिनट में वह मम के पिस पाने वाले प्राचारों का मूल्य पैदा करता है, या उसे बहाल करता है। उसके बाद के १ घण्टे और १२ मिनट में यह मजदूरी का मूल्य पैदा करता है, या उसे लौटाता है, और कारखानेदार के लिए अतिरिक्त मूल्य पैदा करने में वह केवल वह सुप्रसिद्ध "अन्तिम घन्टा" ही लगाता है। इस तरह, उस बेचारे कातने वाले से यह बोहरा चमत्कार सम्पन्न कराया माता है कि वह न केवल कपास, तकुमों, भाप के इंजन, कोयले तवा तेल प्रादि से कताई करने के साथ-साथ इन तमाम चीजों को पैदा भी करता. जाता है, बल्कि वह काम के एक दिन को पांच दिनों में बदल देता है। कारण कि जिस उदाहरण पर हम विचार कर रहें हैं, उसमें कच्चे माल तवा श्रम के प्राचारों के उत्पादन में बारह बारह बजे के चार काम के दिनों की और उनको सूत में बदलने के लिए बारह घन्टे के ही एक और दिन की जरूरत होती है। मुनाने के मोह में पड़कर मनुष्य सहन ही ऐसे चमत्कारों में विश्वास करने लगता है, और 'उनको सत्व सिद्ध करने के लिए पादुनार सिद्धान्तवेतामों की कमी कमी नहीं होती। इसका प्रमाण ऐतिहासिक स्याति की यह निम्नलिखित घटना है। .
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