पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/२४७

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२४ पूंजीवावी उत्पादन म एक तरफ चूंकि अस्थिर पूंची का मूल्य तथा उस मूल्य द्वारा खरीदी हुई मम शक्ति का मूल्य बराबर होते हैं और इस भम-शक्ति का मूल्य काम के दिन के प्रावश्यक भाग को निर्धारित करता है और दूसरी तरफ कि अतिरिक्त मूल्य काम के दिन के अतिरिक्त भाग के द्वारा निर्धारित होता है, इसलिए इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि अस्थिर पूंजी के साथ अतिरिक्त मूल्य का वही अनुपात होता है, वो भावश्यक भन के साथ अतिरिक्त मम का होता है, या, दूसरे अतिरिक्त श्रम शब्दों में, अतिरिक्त मूल्य की र, अर्थात् अस्थि मावश्यक श्रम ये दोनों अनुपात, अतिरिक्त श्रम और अस्थि मावश्यक श्रम एक ही चीन को दो अलग-अलग ढंग से व्यक्त करते हैं। एक सूरत में यही बीच मूर्त रूप प्राप्त, समाविष्ट भम केस में, और दूसरी सूरत में बह जीवित, प्रवाहमान बम के रूप में व्यक्त की जाती है। प्रतः अतिरिक्त मूल्य की पर बिल्कुल ठीक-ठीक यह बताती है कि पूंजी द्वारा भम-शक्ति का-या पूंजीपति द्वारा मजदूर का-किस मात्रा में शोषण हो रहा है।' हम अपने उदाहरण में यह मानकर चल रहे हैं कि पैदावार का मूल्य-४१० पाच स्थिर पूंजी+९० पौणपस्थिर पूंजी+६० पौड प्रतिरिक्त मूल्य और मूल पूंजी-५०० पौष। चूंकि अतिरिक्त मूल्य -१० पौड और मूल पूंबी-५०० पोख, इसलिए यदि हम प्रचलित ढंग से हिसाव करें, जिसमें अतिरिक्त मूल्य की बर को मनाने की पर के सांप गड़बढ़ा दिया जाता है, तो अतिरिक्त मूल्य की दर १८ प्रतिशत बैठती है, जो कि इतनी नीची है कि शायद मि० केरी तमा अन्य समन्वयवादियों (harmonisers) को भी इसकी जानकारी से सुखर पाश्चर्य हो। लेकिन असल में अतिरिक्त मूल्य की पर या पूं' स्थि+पस्थि' के बराबर नहीं होती, अस्थि के बराबर होती है। और इसलिए यहाँ पर वह नहीं, बलि पानी १०० प्रतिशत है, जो कि शोषण की विसावटी बर की पांच गुनी बैठती है। जो उपाहा हम मानकर चल रहे हैं, उसमें यद्यपि हमको काम के दिन की वास्तविक लम्बाई का मान नहीं है और न ही इसका ज्ञान है कि वह मम-प्रक्रिया कितने दिन या कितने सप्ताह चलती है और कुल कितने मजदूरों से काम लिया जा रहा है, फिर भी अतिरिक्त . भ ५०० स्वायों के वकील होने के नाते ये लोग मूल्य तथा प्रतिरिक्त मूल्य का वैज्ञानिक विश्लेषण करने और उससे किसी ऐसे नतीजे पर पहुंचने से घबराते हैं, जो हो सकता है कि सत्ताधिकारियों को पसंद न पाये। यद्यपि अतिरिक्त मूल्य की दर बिल्कुल ठीक-ठीक यह बता देती है कि श्रम-शक्ति का किस मात्रा में शोषण हो रहा है, परन्तु उससे यह कदापि नहीं मालूम होता कि कुल निरपेक्ष शोषण कितना हुआ है। मिसाल के लिए, यदि प्रावश्यक श्रम-५ घण्टे और अतिरिक्त श्रम-५ घण्टे, तो शोषण की दर १०० प्रतिशत है। परन्तु कुल शोषण ५ घण्टे का हुमा है। दूसरी भोर, यदि मावश्यक श्रम-६ घण्टे और अतिरिक्त श्रम-६ घण्टे , तो शोषण की दर तो पहले की तरह १०० प्रतिशत ही रहती है, मगर कुल शोषण भव २० प्रतिशत बढ़ जाता है और ५ से ६ घण्टे का हो जाता है। 1