पाठवां अध्याय स्थिर पूंजी और अस्थिर पूंजी . भम-प्रक्रिया के विभिन्न उपकरण पैदावार के मूल्य की रचना में अलग-अलग भूमिका प्रया करते हैं। मजदूर अपने श्रम की विषय-वस्तु पर नये भम की एक निश्चित माना खर्च करके उसमें नया मूल्य बोड़ देता है। यहां इस बात का कोई महत्व नहीं होता कि उस बम का विशिष्ट स्वरूप एवं उपयोग क्या है। दूसरी ओर, अम-प्रक्रिया के दौरान में खर्च कर दिये गये उत्पादन के साधनों के मूल्य सुरक्षित रहते हैं, और वे पैदावार के मूल्य के संघटक भागों के रूप में नये सिरे से सामने पाते हैं। उदाहरण के लिए, कपास और तकुए के मूल्य एक बार फिर से सूत के मूल्य में सामने पाते हैं। प्रतएव, उत्पादन के साधनों का मूल्य पैरावार में स्थानांतरित हो जाता है और इस प्रकार सुरक्षित रहता है। यह स्थानांतरण इन साधनों के पैदावार में बदले जाने के समय, यानी श्रम-प्रक्रिया के दौरान में, होता है। वह श्रम द्वारा सम्पन्न किया जाता है। परन्तु प्रश्न यह है कि किस तरह? मजदूर एक साथ दो क्रियाएं नहीं करता। ऐसा नहीं होता कि वह एक क्रिया के द्वारा कपास में मूल्य जोड़ता हो और दूसरी पिया के द्वारा उत्पादन के साधनों के मूल्य को सुरक्षित रखता हो, या, जो कि एक ही बात है, पैदावार में, यानी सूत में, उस कपास का मूल्य, जिसपर वह काम करता है, और उस तकुए. के मूल्य का एक अंश स्थानांतरित कर देता हो, जिससे वह काम करता है। उसके बजाय, वह नया मूल्य जोड़ने की क्रिया के द्वारा ही उनके पुराने मूल्यों को सुरक्षित रखता है। लेकिन अपने मन की विषय-वस्तु में नया मूल्य बोड़ना और उसके पुराने मूल्य को सुरक्षित रखना चूंकि वो बिल्कुल अलग-अलग परिणाम हैं, जिनको मजदूर एक साब पोर एक ही क्रिया के दौरान में पैदा करता है, इसलिए यह स्पष्ट है कि परिणाम का यह बोहरा स्वरूप उसके श्रम के दोहरे स्वरूप के माधार पर ही समझ में पा सकता है। एक ही समय में एक स्वरूप में उसके मन को मूल्य पैदा करना चाहिए और एक दूसरे स्वरूप में उसे मूल्य को सुरक्षित रखना या स्थानांतरित कर देना चाहिए। प्रब प्रश्न यह उठता है कि हर मजदूर नया श्रम और उसके परिणामस्वरूप नया मूल्य किस उंग से जोड़ता है? जाहिर है कि वह केवल एक विशिष्ट उंग से उत्पादक मम करके हो नया मम पौर नया मूल्य जोड़ता है,-कातने वाला कताई करके, बुनने वाला बुनकर और लोहार गढ़कर। लेकिन इस प्रकार सामान्य रूप से श्रम का- अर्थात् मूल्य का-अपने में समावेश करते हुए उत्पादन के साधन-मानी कपास और तकुमा, या सूत और करपा, या लोहा और निहाई-केवल मन के विशिष्ट म के द्वारा ही-मानी केवल कताई, बुनाई और गढ़ाई के 15-45
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