पहले जर्मन संस्करण की भूमिका १६ है। इसलिये और किसी भी दृष्टिकोण की अपेक्षा मेरा दृष्टिकोण व्यक्ति पर उन सम्बंधों की कम जिम्मेवारी गलेगा, जिनका वह सामाजिक दृष्टि से सवा बास बना रहता है, भले ही उसने मनोगत दृष्टि से अपने को उनसे चाहे जितना ऊपर उठा लिया हो। अर्थशास्त्र के क्षेत्र में स्वतंत्र वैज्ञानिक खोज को केवल अन्य सभी क्षेत्रों में सामने प्राने पाले शत्रुओं का ही सामना नहीं करना पड़ता। यहां उसे जिस विशेष प्रकार की सामग्री की छानबीन करनी पड़ती है, उसका स्वरूप ही ऐसा है कि मानव-हदय के सबसे हिंसक, नीच पौर घृणित पावेग-निजी स्वार्थ की राक्षसी प्रवृतियां- उसके शत्रुओं के रूप में मैदान में उतर पड़ते हैं। उदाहरण के लिये, इंगलैग के संगठित ईसाई धर्म की पदि ३६ में से ३८ धाराओं पर भी हमला हो, तो वह उसे ज्यादा जल्दी माफ कर देगा, लेकिन उसकी प्रामदनी के ३९ हिस्से पर चोट होने से वह ऐसा नहीं करेगा। मानकल मौजूबा सम्पति-सम्बंधों को पालोचना के मुकाबले में तो खुद अनीश्वरवाद भी culpa levis (भम्य पाप) है। फिर भी एक बात में स्पष्ट रूप से प्रगति हुई है। मैं, मिसाल के लिये, यहां उस सरकारी प्रकाशन का हवाला देता हूं, जो पिछले चन्द सप्ताहों में ही निकला है। उसका नाम है “Corres. pondence with Her Majesty's Missions Abroad, regarding Indu- strial Questions and Trades' Unions" ('atalfire seat ate go-g facent के विषय में महारानी के विदेश स्थित दूत मन्डलों के साथ पत्र-व्यवहार')। इस प्रकाशन में विवेशी इलाकों में तैनात अंग्रेस रानी के प्रतिनिषियों ने यह साफ़-साफ कहा है कि जर्मनी में, फ्रांस में,-पौर संक्षेप में कहा जाय, तो योरपीय महाद्वीप के सभी सभ्य देशों में, -पूंजी और मम के मौजूदा सम्बंधों में मूलभूत परिवर्तन इंगलग की भांति स्पष्ट और अनिवार्य हैं। इसके साथ-साथ, पटलाष्टिक महासागर के उस पार, अमरीका के उप-राष्ट्रपति मि० बेर में सार्वजनिक सभामों में 'एलान किया है कि दास प्रथा का अन्त कर देने के बाद अब अगला काम पूंजी के और भूमि पर निजी स्वामित्व के सम्बंधों को मौलिक रूप से बदल देना है। ये समय के चिन्ह है, बिनको पारियों के न तो लाल और न काले चोगे छिपा सकते है। उनका यह पर्व नहीं है कि कल कोई अलौकिक चमत्कार हो जायेगा। उनसे यह प्रकट होता है कि खुब शासक वर्गों के भीतर अब यह पूर्वानास पैदा होने लगा है कि मौजूदा समान कोई गेस स्फटिक नहीं है, बल्कि वह एक ऐसा संघटन है, जो बदल सकता है और बराबर बदल रहा है। इस रचना के दूसरे पग में पूंजी के परिचलन की प्रक्यिा का' (दूसरी पुस्तक में) और पूंजी अपने विकास के दौरान में बो विविष रूप धारण करती है, उनका (तीसरी पुस्तक में) विवेचन किया जायेगा और तीसरे तथा अन्तिम सम (पौषो पुस्तक) में सिद्धान्तों के इतिहास पर प्रकाश गला जायेगा। में ज्ञानिक मालोचना पर भाषारित प्रत्येक मत का स्वागत करता हूं। जहां तक तथाकषित लोकमत के पूर्वग्रहों का सम्बंध हैं, जिनके लिये मैंने कभी कोई रियायत नहीं की, पहले की तरह प्राण भी उस महान फ्लोरेंसवासी का यह सिद्धान्त ही मेरा भी सिद्धान्त है कि "Segul il tuo corso, e lascla dir le gentil" ("तुम अपनी राह पर चलते चलो, लोग कुछ भी कहें, कहने दो!") नन्दन, २५ जुलाई १८६७॥ कार्ल मार्क्स 1पृ. ६३४ परलेखक ने बताया है कि इस मद में वह किन-किन चीजों को शामिल करता है
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