श्रम-शक्ति का क्रय और विक्रय २०१ करता है, जैसे वह मालों का एक साधारण मालिक भर हो, और यहां सभी सम-मूल्य का सम- मूल्य के साथ विनिमय करते हैं। सम्पत्ति का राज इसलिए कि हरेक केवल वही चीज बेचता है, वो उसकी अपनी चीज होती है। और यम का राज इसलिए कि हरेक केवल अपनी ही क्रिक करता है। केवल एक ही शक्ति है, जो उनको जोड़ती है और उनका एक दूसरे के साथ सम्बंध स्थापित करती है। वह है स्वार्थ-प्रेम, हरेक का अपना लाभ और हरेक के निजी हित। यहां हर मादमी महब अपनी फ्रिक करता है और दूसरे की फिक कोई नहीं करता, और क्योंकि वे ऐसा करते हैं, ठीक इसीलिये पूर्व स्थापित सामंजस्य के अनुसार या किसी सर्व विधाता के तत्त्वावधान में सब के सब एक साथ मिलकर पारस्परिक लाभ के लिए, सर्वकल्याण और सब के हित के लिए काम करते हैं। मालों के साधारण परिचलन या विनिमय के इस क्षेत्र से ही "स्वतंत्र व्यापार के बाजार सिद्धान्तकार" ("Free-trader Vulgaris") को उसके सारे विचार और मत प्राप्त होते हैं। उसी से उसको वह मापदण मिलता है, जिससे वह एक ऐसे समाज को मापता है, जो पूंजी और मजदूरी पर भाषारित है। इस क्षेत्र से अलग होने पर ही अपने dramatis personae (नाटक के पात्रों) की प्राकृति में कुछ परिवर्तन दिखाई देने लगता है। बह, जो पहले मुद्रा का मालिक था, अब पूंजीपति के रूप में पकड़ता हुमा मागे-मागे चल रहा है। प्रम-शक्ति का मालिक उसके मजदूर के रूप में उसका अनुकरण कर रहा है। एक अपनी शान दिलाता हुमा, दांत निकाले हुए, ऐसे चल रहा है, जैसे पान व्यापार करने पर तुला हुमा हो; दूसरा बबा- बबा, हिचकिचाता हुमा जा रहा है, जैसे खुद अपनी साल बेचने मण्डी में पाया हो और जैसे उसे सिवाय इसके और कोई उम्मीद न हो कि पब उसकी साल उघड़ी जायेगी। .
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