श्रम-शक्ति का क्रय और विक्रय १९९ भुगतान के सापन का, इससे मालों के विनिमय के स्वरूप में कोई तबदीली नहीं पाती। श्रम- शक्ति का नाम करार द्वारा होता है, हालांकि मकान के किराये की तरह बह कुछ समय बीतने के पहले बसूल नहीं होता। बम-शक्ति बेच दी जाती है, हालांकि उसका नाम बाद को - . . - इत्यादि'] की जांच करने के वास्ते नियुक्त किये गये जांच-कमिश्नर एच० एस० ट्रेमेनहीर की सरकारी रिपोर्ट ("Report") का पृष्ठ बत्तीस , London, 18621) सस्ती रोटी बेचने वाले, लगभग बिना किसी अपवाद के, रोटी में फिटकरी, साबुन, सज्जी, चाक मिट्टी, उर्बीशायर के पत्थरों का चूरा और इसी तरह के अन्य सुखद, पुष्टिकारक एवं स्वास्थ्यप्रद पदार्थ मिलाकर बेचते हैं। (उपरोक्त सरकारी रिपोर्ट देखिये और उसके साथ-साथ "the committee of 1855 on the adulteration of bread" ["रोटी में मिलावट की जांच करने के लिए बनायी गयी १८५५ की कमिटी'] की रिपोर्ट तथा डा० हैस्सल की रचना "Adulterations Detected" ('पकड़ी गयी मिलावट') का दूसरा संस्करण, London, 1861, भी देखिये।) १८५५ की कमिटी के सामने बयान देते हुए सर जान गार्डन ने कहा था कि इन मिलावटों के परिणामस्वरूप रोजाना दो पाँड रोटी के सहारे जिन्दा रहने वाले गरीब आदमी को भब पौष्टिक पदार्थ का चौथाई हिस्सा भी नहीं मिलता, और उसके स्वास्थ्य पर जो बुरा असर होता है, वह अलग है।" ट्रेमेनहीर ने कहा है (देखिये उप० पु०, पृष्ठ पड़तालीस) कि मजदूर- वर्ग का अधिकांश इस मिलावट के बारे में अच्छी तरह जानते हुए भी इस फिटकरी, पत्थरों के चूरे मादि को क्यों स्वीकार करता है, इसका कारण यह है कि उनके लिए "यह जरूरी होता है कि उनका रोटीवाला या मोदी की दूकान (chandler's shop) उनको जैसी रोटी दे, वे वैसी मंजूर कर लें।" मजदूरों को चूंकि सप्ताह के ख़तम होने पर मजदूरी मिलती है, इसलिए 'उनके परिवार के लोग जिस रोटी का उपभोग करते हैं, उसके दाम वे सप्ताह के दौरान में, सप्ताह ख़तम होने के पहले," नहीं प्रदा कर पाते। और इसके मागे ट्रेमेनहीर ने कुछ गवाहियों के आधार पर यह भी कहा है कि "यह एक जानी-मानी बात है कि इन मिलावटों के द्वारा बनायी गयी रोटी खास तौर पर इसी ढंग से बचने के लिए बनायी जाती है" ("It is no- torious that bread composed of those mixtures, is made expressly for sale in this manner")। "इंगलैण्ड के बहुत से कृषि प्रधान जिलों में और उससे भी बड़ी संख्या में स्कॉटलैण्ड के कृषि प्रधान जिलों में मजदूरी पखवाड़े में एक बार और यहां तक कि महीने में एक बार दी जाती है। हर बार इतने लम्बे समय के बाद मजदूरी पाने के कारण खेतिहर मजदूर को मजबूर होकर चीजें उधार खरीदनी पड़ती हैं ... उसे ऊंचे दाम देने पड़ते हैं, और सच पूछिये, तो वह उस दूकान से बंध जाता है, जो उसे उधार देती है। मिसाल के लिए, विल्टस में होनियम नामक स्थान पर, जहां मजदूरी महीने में एक बार दी जाती है, मजदूर जो पाटा किसी दूसरी जगह पर १ शिलिंग १० पेंस फी स्टोन (१४ पौण्ड) के भाव पर खरीद सकता था, वह वहां पर उसे २ शिलिंग ४ पेंस फी स्टोन (१४ पौण्ड) के भाव पर पाता है। ("The Medical Officer of the Privy Council, etc., 1864" ['प्रिवी काउंसिल के मेडिकल भोफिसर, इत्यादि, १८६४'] की "Public Health" [ 'सार्वजनिक स्वास्थ्य'] के बारे में “Sixth Report" ['छठी रिपोर्ट '], पृ. २६४ ।) "पैजली और किल्मारनोक नामक स्थानों के कपड़ा छापने वाले मजदूरों ने हड़ताल करके यह बात ते करायी कि उनको महीने में एक बार के बजाय पखवाड़े
- get a Hugt ti" ("Reports of the Inspectors of Factories for 31st