पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/१८२

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पांचवां अध्याय पूंजी के सामान्य सूत्र के विरोध . मुद्रा के पूंजी बन जाने पर परिचलन नो रूप धारण करता है, वह मालों, मूल्य और मुद्रा, और यहां तक कि स्वयं परिचलन के स्वभाव से सम्बंध रखने वाले उन तमाम नियमों का विरोध करता है, जिनका हमने अभी तक अध्ययन किया है। इस रूप और मालों के साधारण परिचलन के रूप में जास अन्तर यह है कि दोनों में वे बो परस्पर विरोधी क्रियाएं-विक्रय और क्य-एक दूसरे के उल्टे कम में सम्पन्न होती है। यह विशुद्ध रस्मी अन्तर इन प्रक्रियामों के स्वभाव को मानो जादू के खोर से बदल कैसे देता है? पर बात इतनी ही नहीं है। बो तीन व्यक्ति मिलकर व्यवसाय करते हैं, उनमें से दो के लिए यह उल्टा रूप कोई अस्तित्व नहीं रखता। पूंजीपति के रूप में मैं 'क' से माल खरीदता हूं और 'ख' के हाप उनको फिर बेच देता हूं, लेकिन मालों के साधारण मालिक के रूप में में उनको 'ब' के हाथ बेचता हूं और फिर 'क' से नये माल जरीब लेता हूं। 'क' और 'ब' को इन दो तरह के सौदों में कोई भेद नहीं दिखाई देता। वे तो मात्र प्राहक या विक्रेता ही रहते हैं। और मैं हर बार या तो मुद्रा के पोर या मालों के मात्र मालिक के रूप में, यानी था तो खरीदार की तरह पोर या बेचने वाले की तरह, उनसे मिलता हूं। और इससे भी बड़ी बात यह है कि दोनों तरह के सौदों में मैं 'क' का केवल खरीदार के रूप में और 'ख' का केवल बेचने वाले के म में सामना करता हूं में एक का सामना केवल मुद्रा के रूप में करता हूं और दूसरे का केवल मालों के रूप में। पर मैं पूंजी या पूंजीपति के रूप में, या किसी ऐसी चीन के प्रतिनिधि के रूप में दोनों में से किसी का सामना नहीं करता, जो मुद्रा अपना मालों से अधिक कुछ हो, या बो मुद्रा और मालों से भिन्न कोई प्रभाव गल सकती हो। मेरे लिए 'क' से खरीदना और 'ब' के हाप बेचना एक कम के भाग है। लेकिन इन दो कार्यो के बीच जो सम्बंध है, उसका अस्तित्व केवल मेरे ही लिये है। 'क' को इसकी कोई चिन्ता नहीं है कि 'ख' के साथ मैंने ज्या सौदा किया है, न ही को इसकी कोई परवाह है कि 'क' के साथ मैंने क्या लेन-देन किया है। और यदि में उनको यह समझाने लग जाऊं कि अभियानों के काम को उलटकर मैंने बहुत प्रशंसनीय काम किया है, तो ये शायद मुझसे यह कहेंगे कि नहाँ तक कियानों के काम का सम्बंध है, मैं गलती कर रहा हूं, क्योंकि पूरा सौरा रिम्न होने और विषय पर बातम होने के बजाय, उसके विपरीत, विश्य से प्रारम्भ हमा वा और भय के साथ बातम हुमा है। पर सचमुच मेरा पहला काम, अर्थात् भय, के दृष्टिकोन से विक्रय पा, और मेरा दूसरा कार्य, अर्थात् विषय, 'ब' के दृष्टिकोण से भय पा। इसने से संतुष्ट न होकर 'क' और 'ब' यह घोषणा करेंगे कि पूरा कम अनावश्यक और . . । 12