१४८ पूंजीवादी उत्पादन . करते हैं। कागजी मुद्रा केवल उसी हब तक मूल्य का प्रतीक होती है, जिस हब तक कि वह सोने का प्रतिनिधित्व करती है, जिसका अन्य सब मालों की तरह मूल्य होता है।' अन्त में, कोई यह प्रश्न कर सकता है कि सोने में यह क्षमता क्यों है कि उसका स्थान ऐसे प्रतीक ले सकते हैं, जिनमें कोई मूल्य नहीं होता। किन्तु, जैसा कि हम पहले ही देख चुके हैं, उसमें यह समता केवल उसी हद तक होती है, जिस हद तक कि वह एकमात्र सिक्के की चालू माध्यम की तरह काम करता है और जिस हब तक कि वह और किसी रूप में काम नहीं करता। अब, मुद्रा के, इसके सिवा कुछ और भी काम होते हैं, और महब चालू माध्यम की तरह काम करने का यह अकेला कार्य ही सोने के सिक्के से सम्बंधित एकमात्र कार्य नहीं होता, हालांकि वो घिसे हुए सिक्के चालू रहते हैं, उनके बारे में यह बात सच है। मुद्रा का हर टुकड़ा केवल उतनी ही देर तक महज एक सिक्का या परिचलन का माध्यम रहता है, जितनी देर तक वह सचमुच परिचलन में भाग लेता है।पर सोने की उस उपरोक्त अल्पतम राशि के बारे में यही सच है, जिसमें इस बात की ममता होती है कि उसका स्थान काग्रजी मुद्रा ले ले। वह राशि बराबर परिचलन के क्षेत्र में ही रहती है, लगातार चालू माध्यम की तरह काम करती है, और उसका अस्तित्व ही केवल इस उद्देश्य-पूर्ति के लिए होता है। अतएव, उसकी गति इसके सिवा और किसी चीज का प्रतिनिधित्व नहीं करती कि रूपान्तरण मा-मु-मा की एक दूसरे को के उल्टी अवस्थाएं बारी-बारी से सामने माती रहती हैं, जिनमें माल अपने मूल्य-म्पों के मुकाबले में बड़े होते हैं और तत्काल ही फिर गायब हो जाते हैं। माल के विनिमय- मूल्य का स्वतंत्र अस्तित्व यहां एक क्षणिक घटना ही होती है, जिसके द्वारा तुरन्त ही एक माल का स्थान दूसरा माल ले लेता है। इसलिए इस मिया में, वो मुद्रा को लगातार एक हाप से दूसरे हाथ में घुमाती रहती है, मुद्रा का केवल प्रतीकात्मक अस्तित्व ही पर्याप्त होता है। उसका कार्य-गत अस्तित्व मानों उसके भौतिक अस्तित्व को हवन कर जाता है। मालों के रामों का एक मणिक एवं वस्तुगत प्रतिविम्ब होने के कारण वह केवल अपने प्रतीक के रूप में काम करती है, . . 11 - 'जहां तक मुद्रा के विभिन्न कार्यों को समझने का प्रश्न है, वहां तक मुद्रा पर लिखने वाले सबसे अच्छे लेखकों के विचारों में भी स्पष्टता का कितना प्रभाव है, इसका एक उदाहरण फुलाटन का निम्नलिखित अंश है : 'यह बात कि जहां तक हमारे घरेलू विनिमयों का सम्बंध है, मुद्रा के वे सारे काम , जो साधारणतया सोने और चांदी के सिक्कों से लिये जाते हैं, दे उतने ही कारगर ढंग से उन अपरिवर्तनीय नोटों के द्वारा भी सम्पन्न हो सकते हैं, जिनमें उस बनावटी और रूढ़िगत मूल्य के सिवा, जो उनको कानून से मिलता है, और कोई मूल्य नहीं होता,-यह एक ऐसा तथ्य है, जिससे , मैं समझता हूं, किसी तरह इनकार नहीं किया जा सकता। इस प्रकार के मूल्य से स्वाभाविक मूल्य के सारे काम लिये जा सकते है, और यदि केवल नोटों के निर्गम के परिमाण को उचित सीमा में रखा जाये, तो मापदण्ड की पावश्यकता तक समाप्त हो सकती है।" (Fullarton, "Regulation of Currencies" [फुलार्टन , 'मुद्रामों का नियमन'], London, 1845, पृ. २११) परिचलन में मुद्रा का काम करने वाले माल का स्थान चूंकि मूल्य के प्रतीक मान ले सकते है, इसलिए यहां पर यह घोषित कर दिया गया है कि मूल्य की माप और दामों के मापदण के रूप में उस माल के कार्य अनावश्यक होते है।
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