मुद्रा, या मालों का परिचलन १४७ . . राज्य कागज के कुछ ऐसे दुको चालू कर देता है, जिनपर उनकी अलग-अलग राशिया- बैसे १ पौड, ५ पौन इत्यादि-छपी रहती हैं। जिस हद तक कि ये कागज के टुकड़े सचमुच सोने की उतनी ही मात्रा का स्थान ले लेते हैं, उस हब तक उनकी गति उन्हीं नियमों के प्राचीन होती है, जिन के द्वारा स्वयं मुद्रा के चलन का नियमन होता है। केवल कागजी मुद्रा के परिचलन से खास तौर पर सम्बंध रखने वाला नियम केवल उस अनुपात का फल हो सकता है, जिस अनुपात में वह कागजी मुद्रा सोने का प्रतिनिधित्व करती है। ऐसा एक नियम है। उसे यदि सरल रूप में पेश किया जाय, तो वह नियम यह है कि कागजी मुद्रा का निर्गम सोने की (या, परिस्थिति के अनुसार, चांदी की) उस मात्रा से अधिक नहीं होना चाहिए, जो उस हालत में परिचलन में सचमुच भाग लेती, यदि उसका स्थान प्रतीक न ग्रहण कर लेते। अब, परिचलन सोने की जिस मात्रा को सपा सकता है, वह लगातार एक निश्चित स्तर के ऊपर-नीचे चढ़ा- गिरा करती है। फिर भी किसी भी देश में चालू माध्यम की राशि कभी एक अल्पतम स्तर से नीचे नहीं गिरती, और इस प्रल्पतम राशि का वास्तविक अनुभव से सहज ही पता लगाया जा सकता है। इस अल्पतम राशि की मात्रा में या उसके परिचलन की निरन्तरता में इस बात से, जाहिर है, कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह राशि जिन संघटक भागों से मिलकर बनी है, बराबर बदलते रहते हैं, या सोने के जो टुकड़े उसमें शामिल होते हैं, उनका स्थान बराबर नये टुकड़े लेते रहते हैं। इसलिए, इस प्रल्पतम राशि की जगह पर काग्रज के प्रतीक इस्तेमाल किये जा सकते हैं। दूसरी पोर, यदि परिचलन की नालियों को उनकी क्षमता के अनुसार माज कागजी मुद्रा से ठसाठस भर दिया जाये, तो कल को, मालों के परिचलन में कोई परिवर्तन होने के फलस्वरूप, कागजी मुद्रा नालियों के बाहर बह निकल सकती है। ऐसा होने पर कोई मापदण्ड नहीं रह जायेगा। यदि कागजी मुद्रा अपनी उचित सीमा से अधिक हो, यानी यदि वह उसी अभियान के सोने के सिक्कों की उस मात्रा से अधिक हो, जो सचमुच चलन में पा सकती है, तो उसे न केवल पाम बदनामी का खतरा मोल लेना होगा, बल्कि वह सोने की केवल उस मात्रा का प्रतिनिधित्व करेगी, जो मालों के परिचालन के नियमों के अनुसार जरूरी है और केवल जिसका कि कागजी मुद्रा प्रतिनिधित्व कर सकती है। कागजी मुद्रा की मात्रा जितनी होनी चाहिए, यदि उसकी दुगुनी काग्रजी मुद्रा जारी कर दी जाये, तो १ पौण १/४ प्रॉस सोने का नहीं, बल्कि, वास्तव में, १/८ प्रॉस सोने का नाम हो जायेगा। इसका उसी तरह का प्रभाव होगा, जैसे कि दामों के मापदण के रूप में सोने के कार्य में कोई परिवर्तन होने से होता है। जिन मूल्यों को पहले १ पौड का नाम व्यक्त करता था, उनको प्रब २ पौड का राम व्यक्त . करेगा। कागजी मुद्रा सोने का, अषवा मुद्रा का प्रतिनिधित्व करने वाला प्रतीक होती है। उसके और मालों के मूल्य के बीच यह सम्बंध होता है कि मालों के मूल्य भावात्मक ढंग से सोने की उन्हीं मात्रामों में व्यक्त होते हैं, जिनका कागज के ये टुकड़े प्रतीकात्मक ढंग से प्रतिनिधित्व के बारे में यह कहा है : "हर साल गिन्नियों की एक नयी श्रेणी बहुत ज्यादा हल्की हो जाती है। जो श्रेणी एक वर्ष पूरे वजन के साप चालू रहती है, वह साल भर में इतनी अधिक विस जाती है कि अगले वर्ष तराजू पर बोटी उतरती है।" (House of Lords' Committee, 1848, n. 429 [लाई-सभा की समिति , १८४८, अंक ४२६]) 10*
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