१४० पूंजीवादी उत्पादन . किसी निश्चित अवधि में बालू माध्यम का काम करने पाली मुद्रा की कुल मात्रा एक मोर तो चालू मालों के नामों के पोड़ से निर्धारित होती है, और, पूसरी ओर, यह इस बात से निर्धारित होती है कि रूपान्तरणों की परस्पर विरोधी अवस्थाएं किस तेजी के साथ एक दूसरे का अनुसरण करती है। इस तेबी पर ही यह निर्भर करता है कि हर अलग-अलग सिक्का दामों के बोर्ड के मौसतन कितने भाग को मूर्त रूप दे सकता है। लेकिन बालू मालों के नामों का बोर मालों के नामों के साथ-साथ उनकी मात्रा पर भी निर्भर करता है। किन्तु ये तीनों तत्त्व-बामों की हालत, बालू मालों की मात्रा और मुद्रा के चलन का वेग- परिवर्तनशील होते हैं। इसलिए जिन दामों को मूर्त रूप दिया जाना है, उनका गोर और चुनाचे इस मोड़ पर निर्भर करने वाली चालू माध्यम की मात्रा-ये दोनों चीजें, इन तीनों तत्वों में कुल मिलाकर जो अनेक परिवर्तन होते हैं, उनके साथ बदलती जायेंगी। इन परिवर्तनों में से हम केवल उनपर विचार करेंगे, जिनका नामों के इतिहास में सबसे अधिक महत्व रहा है। यदि बाम स्थिर रहते है, तो चालू माध्यम की मात्रा या तो इसलिए बढ़ सकती है कि चालू मालों की संख्या बढ़ गयी हो, या इसलिए कि चलन का वेग कम हो गया हो, और या वह इन दोनों बातों के सम्मिलित प्रभाव का परिणाम हो सकता है। दूसरी पोर, चालू माध्यम की मात्रा या तो इसलिए घट सकती है कि बालू मालों की संख्या घट गयी हो, और या इसलिए कि उनके परिचलन की तेजी बढ़ गयी हो। मालों के रामों में पाम बढ़ाव मा जाने पर भी चालू माध्यम की मात्रा स्थिर रहेगी, बशर्ते कि दामों में जितनी वृद्धि हुई हो, उसी अनुपात में परिचलन में शामिल मालों की संख्या में कमी पा जाये, या परिचलन में शामिल मालों की संख्या के स्थिर रहते हुए बामों में जितना पड़ाव माया हो, मुद्रा के बलन के बेग में उतनी ही तेती मा जाये। चालू माध्यम की मात्रा कम हो सकती है, यदि नामों के चढ़ाव की अपेक्षा मालों की संख्या प्यावा तेजी से गिर बाये या यदि नामों के चढ़ाव की अपेक्षा बलन का बेग ज्यादा तेजी से बढ़ जाये। मालों के दामों में ग्राम कमी हो जाने पर भी चालू माध्यम की मात्रा स्थिर रहेगी, बशर्ते कि दामों में जितनी कमी हुई हो, उसी अनुपात में मालों की संख्या में वृद्धि हो जाये, . इसी तरह ... कारणों में से बाजार को सचमुच ठण्डा करने वाले कारण को दूर करना होगा. सौदागर पौर दूकानदार भी मुद्रा चाहते हैं, यानी वे जिन चीजों का व्यापार करते हैं, उनकी निकासी चाहते है, क्योंकि मण्डियां ठण्डी पड़ गयी है ..." "जब धन एक हाथ से दूसरे हाथ में घूमता है, तब (कोई क्रोम) जितना फलती-फूलती है, उतना वह और कभी नहीं फलती-फूलती।" (Sir Dudley North, “Discourses upon Trade" [सर रडली नर्थ, 'व्यापार सम्बन्धी लेब'], London, 1691, पृ० ११-१५, जगह-जगह पर।) हेनरवाण्ड की विचित्र धारणामों का कुल निचोड़ महज यह है कि मालों की प्रकृति से जो विरोध उत्पन्न होता है और जो फिर उनके परिचलन में भी दिखाई पड़ता है, वह पालू माध्यम को बढ़ाकर दूर किया जा सकता है। लेकिन यदि, एक मोर, पालू माध्यम की कमी को उत्पादन और परिचलन के ठहराव का कारण समझना एक लोकप्रिय भ्रम है, तो, दूसरी पोर, उससे यह निष्कर्ष कदापि नहीं निकलता कि यदि, मिसाल के लिए, कानून के परिये पलन का. नियमन करने (regulation of currency) की अनाड़ीपन से भरी कोशिशों के फलस्वरूप पानू माध्यम की सचमुच कमी हो पाये, तो उससे इस तरह का ठहराव नहीं पैदा हो सकता।
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