पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/१३६

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मुद्रा, या मालों का परिचलन १३३ . ब) मुद्रा का चलन आम की भौतिक पैदावार का परिचलन रूप-परिवर्तन मा-मु-मा के द्वारा सम्पन्न होता है। इस रूप-परिवर्तन के लिये प्रावश्यक होता है कि एक निश्चित मूल्य एक माल के म में किया को प्रारम्भ करे और माल केस में ही उसे समाप्त कर । पुनाचे माल की गति एक परिपत्र में होती है। दूसरी ओर, इस गति का रूप ऐसा है कि वह मुद्रा को पूरे परिपत्र में से नहीं गुजरने देता। परिणाम यह होता है कि मुद्रा वापिस नहीं लौटती, बल्कि अपने प्रस्थान-विन्तु से बराबर अधिकाधिक दूर होती जाती है। जब तक बेचने वाला अपनी मुद्रा से चिपका रहता है, जो कि उसके माल की बबली हुई शकल होती है, तब तक वह माल अपने स्मान्तरण की पहली अवस्था में ही रहता है और रूपान्तरण के केवल माघे भाग को ही पूरा कर पाता है। लेकिन विता जैसे ही इस प्रक्रिया को पूरा कर देता है, जैसे ही वह अपनी बिक्री के अनुपूरक के रूप में खरीद भी कर गलता है, वैसे ही मुद्रा अपने मालिक हाय से फिर निकल जाती है। यह सच है कि यदि बाइबल जरीबने के बाद सुनकर घोड़ा और कपड़ा बेच गलता है, तो मुद्रा उसके हाथों में लौट पाती है। लेकिन उसका यह लौट माना पहले २० गड कपड़े के परिचलन के कारण नहीं होता; उस परिचलन का तो यह नतीजा निकला था कि मुद्रा बाइबल बेचने वाले के हाथों में पहुंच गयी थी। बुनकर के हाथों में मुद्रा केवल उस वक्त लोटती है, जब नये माल को लेकर परिचलन की क्रिया को बोहराया माता है या उसका नवीकरण किया जाता है। और यह बोहरायी हुई क्रिया भी उसी नतीजे के साथ समाप्त हो जाती है, जिस नतीजे के साथ उसकी पूर्वगामी क्रिया समाप्त हो गयी थी। प्रतएव, मालों का परिचलन प्रत्यक्ष ढंगों से मुद्रा में जिस गति का संचार करता है, वह एक ऐसी अनवरत गति होती है, जिसके द्वारा मुद्रा अपने प्रस्थान-बिंदु से अधिकाधिक दूर हटती जाती है और जिसके बौरान में यह माल के एक मालिक के हाथ से दूसरे मालिक के हाथ में घूमती रहती है। गति के इस पत्र को मुद्रा का चलन (cours de la monnale) कहते हैं। मुद्रा के चलन में एक ही क्रिया लगातार एक ही नीरस ढंग से दोहरायी जाती है। माल हमेशा विक्रेता के हाथ में रहता है, मुद्रा, परीदने के साधन के रूप में, सदा प्राहक के हाथ में रहती है। मुद्रा माल के नाम को वास्तविक प प्रदान करके सवा खरीदने के साधन का काम करती है। बाम के वास्तविक रूप प्राप्त करने के फलस्वरूप माल विकता के पास से प्राहक के पास पहुंच जाता है और मुद्रा प्राहक के हाथ से निकलकर विक्रेता के हाप में पहुंच जाती है, वहाँ किसी और माल के साथ बह फिर उसी प्रश्यिा में से गुवरती है। इस तस्य पर सदा पर्वा पर जाता है कि मुद्रा की गति का यह एकमुखी स्वस्म माल की गति के दोमुली स्वरूप से उत्पन्न होता है। मालों के परिवलन की कुछ प्रकृति ही ऐसी है कि देखने में बात इसकी उल्टी मालूम होती है। किसी भी माल का पहला पान्तरण ऊपर से देखने में न सिर्फ़ मुद्रा की ही, बल्कि पुर माल की हरकत भी मालूम होता है। दूसरे , . प्रणालियों में किन बास-मास बातों का अन्तर है, और न ही तब हम उनपर कोई निर्णय दे सकते हैं। बहुत ही घिसे-पिटे सत्यों को लेकर जैसा हंगामा मशास्त्र में बरपा किया जाता है, वैसा और किसी विज्ञान में नहीं। उदाहरण के लिए, जे. बी. से को चूंकि यह मासूम है कि माल पैदावार होती है, इसलिए वह संकटों के अधिकारी विद्वान बन बैठे हैं।