मुद्रा, या मालों का परिचलन १२६ . , , मु- मा, जो कि खरीब है, साथ ही मा-म, पानी विकी, भी होती है। एक माल का अन्तिम स्पान्तरण किसी और माल का पहला रूपान्तरण होता है। वहाँ तक हमारे बुनकर का सम्बंध है, उसके माल की जिन्दगी बाइबल के साथ बातम हो जाती है, जिसमें उसने अपने २ पाँगे को बदल गला है। लेकिन मान लीजिये कि जिसने उसे बाइबल बेची है, वह बुनकर द्वारा मुक्त किये गये २ पोंगे को वाणी में बदल गलता है।मा-मु-मा (कपड़ा- मुद्रा-बाइबल) की अन्तिम अवस्था मु-मा साथ ही मा-मु-मा (बाइबल- मुद्रा-बाडी) की पहली अवस्था भी है। किसी खास माल को पैदा करने वाले के पास बेचने के लिए केवल एक ही माल होता है। उसे वह अकसर बहुत बड़े-बड़े परिमाणों में बेचता है। लेकिन उसकी नाना प्रकार की अनेक प्रावश्यकताएं उसे मजबूर करती है कि अपने माल के उसे जो बाम मिलें, या इस तरह जो रकम मुक्त हो, उसे वह बहुत सी रियों में बांटकर सर्च करे। चुनांचे, एक विकी के फलस्वरून विविध प्रकार की वस्तुओं की अनेक खरीदारियां होती हैं। इस प्रकार किसी एक माल के स्मान्तरण को अन्तिम अवस्था अन्य मालों के प्रथम रूपान्तरणों का जोड़ होती है। अब यदि हम किसी एक माल के सम्मूरित मान्तरण पर विचार करें, तो सबसे पहले तो यह प्रकट होता है कि वह दो विरोधी एवं पूरक प्रक्रियामों से मिलकर बना होता है, एक मा-मु और दूसरी मु-मा। माल के ये वो परस्पर विरोधी तत्त्वांतरण उसके मालिक के दो परस्पर विरोधी सामाजिक कृत्यों के फलस्वस्म होते हैं, और ये सामाजिक कृत्य पुर मालिक की को प्रार्षिक भूमिकाओं पर अपनी-अपनी छाप अंकित कर देते हैं। विक्री करने वाले व्यक्ति के रूप में वह बेचने वाला होता है, खरीद करने वाले व्यक्ति केस में वह खरीदार होता है। लेकिन जिस तरह किसी भी माल के इस प्रकार के तत्वांतरण के समय उसके दो म- माल-स्प और मुद्रा-कम-साथ-साब, मगर दो विरोपी ध्रुवों पर विद्यमान होते है, ठीक उसी प्रकार हर बेचने वाले के मुकाबले में एक खरीदार होता है और हर परीवार के मुकाबले में एक बेचने वाला होता है। जिस समय कोई खास माल बारी-बारी से अपने दो तत्त्वांतरणों में से गुखरता है,-पानी जब वह पहले माल से मुद्रा में और फिर मुद्रा से किसी और माल में बदलता है, उसी दौरान में माल के मालिक की भूमिका बेचने वाले से खरीदार की भूमिका में बदल जाती है। प्रतएव, बेचने वाले और खरीदार की ये भूमिकाएं स्थायी नहीं होती, बल्कि ये मालों के परिचलन में भाग लेने वाले अनेक व्यक्तियों से बारी-बारी से सम्बन्धित होती रहती हैं। किसी भी माल के सम्पूर्ण रूपान्तरण के यदि सबसे सरल स को लिया जाये, तो उसमें चार परमावस्थाएं और नाटक के तीन पात्र (three dramatis personae) होते हैं। पहले माल मुद्रा का सामना करता है, मुद्रा माल के मूल्य द्वारा धारण किया हुमा कम होती है और अपनी ठोस और वास्तविक शकल में खरीदार की बेब में होती है। इस प्रकार माल के मालिक का मुद्रा के मालिक से सम्पर्क कायम हो जाता है। अब जैसे ही माल मुद्रा में बदल दिया जाता है, वैसे ही मुद्रा उसका प्रत्यायी सम-मूल्य म बन जाती है, जिस सम-मूल्य म का उपयोग मूल्य अन्य मालों के शरीरों में पाया जाता है। पहले तत्वान्तरण का अन्तिम चरण, पानी मुद्रा दूसरे तत्त्वांतरण का प्रस्थान-विन्दु होती है। जो व्यक्ति पहले सोने में विस्ता होता है, वह, इस प्रकार, दूसरे सौदे में प्राहक बन जाता है, और 9_45
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