मुद्रा, या मालों का परिचलन . १२७ विरोधी प्रब के दृष्टिकोण से देखिये, तो वह परीब है। दूसरे शबों में, विकी खरीद भी, पानी मा-मु मु-मा, होती है।' यहाँ तक हमने मनुष्यों की केवल एक ही पार्विक स्थिति पर विचार किया है, और वह है उनकी मालों के मालिकों की स्थिति, जिस स्थिति में वे खुद अपने मन की पैदावार को हस्तांतरित करके दूसरों के श्रम की पैदावार को हस्तगत कर लेते हैं। इसलिए यदि माल का एक मालिक किसी दूसरे ऐसे मालिक से मिलना चाहता है, जिसके पास मुद्रा हो, तो उसके लिए बरी है कि या तो उस दूसरे व्यक्ति के-प्रर्थात् खरीदार के-मम की पैदावार खुद मुद्रा हो, यानी सोना अथवा वह पदार्थ हो, जिससे मुद्रा बनती है, और या उसकी पैदावार पहले से अपना चोला बदल चुकी हो और उपयोगी वस्तु का अपना मूल रूप त्याग चुकी हो। मुद्रा की भूमिका अदा करने के लिए, बाहिर है, यह बरी है कि सोना किसी न किसी स्थान पर मजी में प्रवेश कर जाये। यह स्थान सोने का उत्पावन स्थल होता है, वहां इस पातु की, भम की तात्कालिक पैदावार के रूप में, समान मूल्य की किसी अन्य पैदावार के साथ अबला- बदली होती है। बस इसी मण से सोना सवा किसी न किसी माल के मूर्त रूप प्राप्त वाम का प्रतिनिधित्व करता है। अपने उत्पादन-स्थल पर अन्य मालों के साथ सोने का बो विनिमय होता है, उसके अलावा, सोना चाहे जिसके हाथ में हो, वह किसी ऐसे माल का परिवर्तित स्प होता है, जिसे उसके मालिक ने हस्तांतरित कर दिया है। वह बिक्री की, अथवा पहले पान्तरण मा-मु की पैदावार होता है। जैसा कि हमने ऊपर देखा पा, सोना इसलिए भावगत मुद्रा, अषवा मूल्यों की माप, हो गया कि सब माल उससे अपने मुल्यों को मापने लगे वे और इस प्रकार उपयोगी वस्तुओं के तौर पर उनके प्राकृतिक रूप उससे भावगत ढंग से मुकाबला करने लगे थे, और उसे उन्होंने अपने मूल्य का स्म बना लिया था। वह वास्तविक मुद्रा बना है मालों के ग्राम हस्तांतरण के फलस्वरूप उपयोगी वस्तुओं के रूप में मालों के प्राकृतिक मों से स्थान परिवर्तन करके और इस प्रकार वास्तव में उनके मूल्यों का मूर्त स्म बनकर। जब माल यह मुद्रा-रूप धारण करते हैं, तब वे अपने को सजातीय मानव-श्रम के सम-स एवं सामाजिक दृष्टि से मान्य अवतारों में पान्तरित करने के लिए अपने प्राकृतिक उपयोग-मूल्य को और उस विशेष डंग के श्रम को, जिससे वे उत्पन्न हुए. है, इस तरह अपने से अलग कर देते हैं कि उनका लेश मात्र भी बाक़ी नहीं रहता। किसी सिक्के को महब . 1 «Toute vente est achat” [“ 7 fait apie gleit "l (Dr. Quesnay: “Dialo- gues sur le Commerce et les Travaux des Artisans." Physiocrates ed. Daire at संस्करण, भाग १, Paris, 1846, पृ० १७०), या, जैसा कि क्वेजने ने अपनी रचना "Maximes generales" में कहा है, "Vendre est acheter" ["बेचना खरीदना है"]। 3 "Le prix d'une marchandise ne pouvant être payé que par le prix d'une autre marchandise" ["किसी माल का दाम अदा करने का केवल एक यही तरीका है कि किसी और माल के दाम के द्वारा उसे निपटा दिया जाये"] (Mercier de la Riviere: "L'Ordre naturel et essentiel de sociétés politiques". Pnysiocrates ed. Daire #T संस्करण, भाग २, पृ० ५५४)। 8 «Pour avoir cet argent, il faut avoir vendu" ["FA TETT Elfeet tot के लिए उसने जरूर कोई चीज बेची होगी"] ( उप० पु०, पृ. ५४३)।
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